प्रतीक्षा पांडेय-
आज सुबह मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई. बोसा के लाख मना करने के बावजूद मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया क्योंकि कमरे में एसी चल रहा था और बोसा की पूंछ दरवाजे में आ गई. वो जोर से चीखा और मेरी भी वैसी ही चीख निकल गई और हमने पाया कि उसकी पूंछ से उसके फ़र का छोटा सा गुच्छा अलग हो गया है. कुछ मिनटों तक बोसा दुबका रहा और मैं दूर से ही माफ़ी मांगती रही. बिल्लियों में माफ़ी नहीं होती और न ही उन्हें पता चल पाता है अगले को गिल्ट हो रहा है.चूंकि बिल्लियों में खुद कोई अपराधबोध नहीं होता, उन्हें इस चिड़िया का नाम नहीं पता.
15 मिनट में वो वैसा ही हो गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं. इंसानों के साथ हम कोई गलती कर बैठें तो कई दिन, महीने, साल, कभी कभी पूरी उम्र भुगतना पड़ता है, अपराधबोध में जीना पड़ता है. इंसान अपराधबोध भी समझते हैं और उनमें माफ़ी भी होती है. लेकिन दूसरों की अपराधबोध से जन्मी पीड़ा को देखकर अक्सर अगला इंसान तुष्ट होता है.
हमें कष्ट पहुंचाने वाले अपराधबोध न महसूस करें हमें तब और भी बुरा लगता है.
हम अपना अपराधबोध जताने से चूकते नहीं हैं. ताकि अगला ये समझे कि हम गलती कर लज्जित हैं और वो हमें माफ़ कर दे. माफ़ी माँगना और माफ़ कर देना, दोनों ही छलावा हैं क्योंकि दोनों ही खुद को तुष्ट करने के लिए किए जाते हैं, अगले को नहीं.
बिल्लियां इस छलावे से परे हैं.
एक बार एक अर्जेंट ट्रिप के चलते हमने बोसा को 15 दिन के लिए हमारी कुक के भरोसे छोड़ दिया. वे आतीं और बोसा को दोनों टाइम खिलातीं लेकिन चिपककर सोने के लिए बोसा के पास कोई नहीं था. कुक ने बताया कि दीदी आप जाती हैं तो बोसा खेलना छोड़ देता है. मैं जितने दिन शहर के बाहर रही, अपराधबोध लौट-लौटकर आता रहा और कभी कभी तो जी इतना घबराने लगता कि पहाड़ों की साफ़ हवा और हरियाली कष्टकारी लगने लगी. जब 15 दिन बाद अपराधबोध से भरे हुए लौटे तो बोसा ने एक लंबा सा ‘म्याऊं’ निकाला, मानों कह रहा हो-“ये कोई वक़्त है आने का?” मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े लेकिन बोसा कुछ ही देर में यूं हो गया जैसे हम कभी गए ही नहीं थे.
लोग कहते हैं बिल्लियां स्वार्थी होती हैं. वे आपके हाथ से खाना खाती हैं लेकिन प्यार नहीं जतातीं. मैं कहती हूं कि हमें बिल्लियों का एहसान मानना चाहिए कि हमसे अत्यधिक दुलार पाकर भी वो अपनी सच्चाइयां नहीं भूलतीं. वे अपने मन में ज्यादा समय के लिए कुछ नहीं रखतीं. बोसा हर बार खाना खिलाने पर लगभग तुरंत ही दांत गड़ाकर शुक्रिया कह देता है, उसे आगे के लिए नहीं टालता. बाहर जाते हुए वो हमें पंजा मारकर रोकता ज़रूर है लेकिन घर वापस आने पर कभी ये नहीं पूछता कि जब मैंने रोका था तब क्यों नहीं रुके. कहता है कि चलो अब लौट ही आए हो तो ज़रा सी मालिश कर दो.
हम सभी अगर इंसानी रिश्तों में थोड़ी बिल्लियत ले आएं तो हमारे सारे इमोशनल बैगेज ख़त्म हो जाएंगे.