अमिताभ श्रीवास्तव-
‘ताड़न के अधिकारी’ तो न्यूज़ चैनल भी हैं, सबसे ज़्यादा। देश की फजीहत कराने में इनका भी हाथ है। सुनियोजित तरीके से समाज में नफ़रत फैलाने का काम तो यही कर रहे हैं। नूपुर शर्मा जैसों को आमंत्रित करना और फिर उन्हें उन्हीं जैसे मुस्लिम धर्मगुरुओं या नेताओं से लड़वाकर आपत्तिजनक बातें कहलवाना सोची समझी नीति है। इनके ख़िलाफ़ भी सरकार को सख्त रवैया अपनाना चाहिए।
विष्णु नागर-
भारत के 18- 20 प्रतिशत मुसलिम और धर्मनिरपेक्ष बिरादरी कहती थी कि ये नफरत का तूमार मत बाँधो, तो समझ में नहीं आता था। विदेशी मीडिया कहता था तो भी समझ में नहीं आता था। पश्चिमी देशों के नेता, वहाँ की संस्थाएँ कहती थीं, तो भी अकल पर पत्थर पड़े रहे।
कानपुर में इस कारण दंगा भड़का,तब भी पत्थर बने रहे।भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा अपने पद पर बनी रहीं।दिल्ली भाजपा की मीडिया सेल के प्रभारी नवीन कुमार जिंदल भी बने रहे।एक पत्ता तक नहीं हिला। जब कतर, कुवैत तथा ईरान ने स्थानीय भारतीय राजदूतों को बुलाया और विरोध दर्ज किया। वहाँ भारतीय सामान का बायकॉट शुरू हो गया, भारत सरकार तक से माफी माँगने को कहा गया, तब भाजपा को सभी धर्मों का वह समान रूप से सम्मान करती है, किसी धार्मिक पुरुष का अपमान करने को वह निंदनीय मानती है, संविधान की भी उसे याद आ गई। नुपूर शर्मा साहिबा को पार्टी के प्रवक्ता पद से सस्पेंड किया और जिंदल साहब को बाहर का रास्ता दिखाया गया।
मगर क्या नफरती राजनीति भाजपा छोड़ेगी? कतई नहीं। बस नबी और मोहम्मद साहब तक बात नहीं ले जाई जाएगी, ताकि अरब देशों के कोप से बचा जा सके। इनका कोप भारत की डगमगाती अर्थव्यवस्था को धराशायी कर सकता है। आयात-निर्यात का,तेल का मामला ही नहीं है, लाखों भारतीय भी इन देशों में काम कर रहे हैं।इससे सब प्रभावित होते-ह़िंदू-मुसलमान सब। इस कारण समझ में कुछ -कुछ आया।
तो ये जनता की नहीं सुनते, विरोधियों को धमकाते हैं, फँसाते हैं तो भाषा भी इन्हें इसी प्रकार की समझ में आती है।