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सुख-दुख

सरकार सोशल मीडिया पर आनेवाले कार्टून बहुत गौर से देखती है!

राकेश कायस्थ-

केंद्र सरकार एक और शिकायत लेकर ट्विटर के पास पहुंची है। सरकार का कहना है कि कार्टूनिस्ट मंजुल का ट्विटर हैंडिल देश के कानूनों का उल्लंघन करता है।

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इस शिकायत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सरकार जीडीपी के आंकड़े देखे या ना देखे, सोशल मीडिया पर आनेवाले कार्टून ज़रूर बहुत गौर से देखती है।

सरकार मर रहे लोगों की चीखें सुने या सुने स्टैंड अप कॉमेडियंस के लतीफे ज़रूर बहुत ध्यान से सुनती है। सरकार ही क्यों इस देश की बड़ी अदालत के माननीय न्यायधीशों ने भी बार-बार यही साबित किया है कि वे संविधान पढ़ें या ना पढ़ें ट्वीट ज़रूर पढ़ते हैं।

जब कोई सत्तातंत्र हेडलाइन मैनेजमेंट पर आश्रित हो जाता है, तो उसके साथ ऐसा ही होता है। उसके लिए हत्या होना मायने नहीं रखती है, उसे चिंता इस बात की होती है कि हत्या की ख़बर बाहर ना आ जाये।

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ट्विटर के भेजे गये नोटिस में सरकार ने यह नहीं बताया है कि उसे मंजुल के किस कार्टून से तकलीफ है बल्कि उसका कहना है कि ट्विटर हैंडिल ही कानून विरोधी है। यह उसी तर्क की अगली कड़ी है, जिसके तहत प्रधानमंत्री ने दंगाइयों को कपड़ों से पहचानने की हिदायत दी थी।
यह बहुत साफ है कि अगर कोरोना की दूसरी लहर ना आई होती तो सरकार सबकुछ छोड़कर स्वतंत्र रूप से चल रही छोटी वेबसाइट्स और बहुत से सोशल मीडिया एकाउंट बंद करवा रही होती।
उसका मानना है कि आवाज़ दबा देने से सवाल भी खत्म हो जाते हैं। यकीन मानिये आनेवाले दिनों में विरोधियों को सबक सिखाने की मुहिम और तेज़ होगी।

अब सवाल ये है कि असहमति रखने वालों और अपनी बात कहने वालों के पास रास्ता क्या है? अगस्त क्रांति से ठीक पहले दिये गये गांधीजी के भाषण का एक वाक्य याद रखिये– `आज़ादी कायरों को नहीं मिलती।’

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लोकतंत्र की एक कीमत होती है। अभिव्यक्ति की आज़ादी की भी कीमत है। यह कीमत आपको ट्रोलिंग से लेकर करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों की नाराज़गी और फिर सोशल मीडिया से बेदखली तक से चुकानी पड़ सकती है। अगर सरकार को आपकी आवाज़ बिल्कुल ही नापसंद हो तो फिर देशद्रोह का फर्जी मुकदमा भी झेलना पड़ सकता है।

इस अगर बोलना चाहते हैं तो कीमत चुकाने के लिए तैयार रहिये। बाकी लोगों के लिए बाबा नागार्जुन लिख गये हैं–

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गूंगे रहोगे गुड़ मिलेगा
रूत हंसेगी दिल खिलेगा


अपूर्व भारद्वाज-

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एक बार जर्मनी में प्रसिद्ध यहूदी कवि गिरफ़्तार किए गए.

3 साल की बेटी ने माँ से पूछा-पापा को पकड़ कर क्यों ले गये?

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माँ बोली-पापा ने हिटलर के खिलाफ़ कविता लिखी है.

बच्ची बोली-वो भी पापा के ख़िलाफ़ कविता लिख देता.

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माँ ने कहा- वो लिख पाता तो इतना खून ख़राबा क्यों करता !

यह घटना अब इतिहास का हिस्सा है लेकिन इतना बताने के लिए काफी है कि दूसरों के इतिहास से नहीं सीखने वाले देश खुद इतिहास हो जाते हैं। मैं कम लिखा हूँ आप ज्यादा समझना!

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