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सलाखों के भय से ‘चंडीगढ़ इंडियन एक्सप्रेस’ ने मजीठिया आधा-अधूरा लागू किया, …लेकिन भास्कर कर्मियों का क्या होगा?

सबके दुख-सुख, विपदा-विपत्ति, परेशानी-मुसीबत, संकट-कष्ट, मुश्किल-दिक्कत, आपत्ति-आफत आदि-इत्यादि को अपनी कलम-लेखनी, कंप्यूटर के की-बोर्ड से स्टोरी-आर्टिकल, समाचार-खबर की आकृति में ढाल कर अखबारों, समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की अनवरत मशक्कत-कसरत करने वाले मीडिया कर्मियों को अपने ही गुजारे के लिए मिलने वाली पगार अमृत समान हो गई है। हां जी, अमृत समान! मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लेकर अखबारों के कर्मचारियों और मालिकान के बीच चल रही लड़ाई शायद इसी पौराणिक कथा का दूसरा, पर परिवर्तित रूप लगती है।

<p>सबके दुख-सुख, विपदा-विपत्ति, परेशानी-मुसीबत, संकट-कष्ट, मुश्किल-दिक्कत, आपत्ति-आफत आदि-इत्यादि को अपनी कलम-लेखनी, कंप्यूटर के की-बोर्ड से स्टोरी-आर्टिकल, समाचार-खबर की आकृति में ढाल कर अखबारों, समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की अनवरत मशक्कत-कसरत करने वाले मीडिया कर्मियों को अपने ही गुजारे के लिए मिलने वाली पगार अमृत समान हो गई है। हां जी, अमृत समान! मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लेकर अखबारों के कर्मचारियों और मालिकान के बीच चल रही लड़ाई शायद इसी पौराणिक कथा का दूसरा, पर परिवर्तित रूप लगती है।</p>

सबके दुख-सुख, विपदा-विपत्ति, परेशानी-मुसीबत, संकट-कष्ट, मुश्किल-दिक्कत, आपत्ति-आफत आदि-इत्यादि को अपनी कलम-लेखनी, कंप्यूटर के की-बोर्ड से स्टोरी-आर्टिकल, समाचार-खबर की आकृति में ढाल कर अखबारों, समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की अनवरत मशक्कत-कसरत करने वाले मीडिया कर्मियों को अपने ही गुजारे के लिए मिलने वाली पगार अमृत समान हो गई है। हां जी, अमृत समान! मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लेकर अखबारों के कर्मचारियों और मालिकान के बीच चल रही लड़ाई शायद इसी पौराणिक कथा का दूसरा, पर परिवर्तित रूप लगती है।

लंबे और अथक संघर्ष के बाद कर्मचारियों के समक्ष मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियां प्रकट हुईं लेकिन उस पर अमल कराने, उसे हासिल करने के लिए कर्मचारियों को फिर सर्वोच्च अदालत की शरण में जाना पड़ा। ठीक है, गए। सर्वोच्च अदालत ने कर्मचारियों-कामगारों की पीड़ा को समझते हुए मालिकान को तत्काल आदेश दिया कि दो महीने में मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से कर्मचारियों को वेतन, बकाया और उससे जुड़े समस्त लाभ अदा करो और अपने किए का लेखा-जोखा अगली तारीख 2 जनवरी, 2015 को हमारे समक्ष प्रस्तुत करो। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़, दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण के कर्मचारियों की अवमानना याचिकाओं पर बीते 13 अक्टूबर को दिया था। अपने को कानून-व्यवस्था, यहां तक कि भगवान से भी स्वयं को ऊपर समझने वाले अखबार मालिकों के होश इस आदेश ने उड़ा दिए क्यों कि इसका पालन नहीं करने का अर्थ है सलाखों के पीछे भेजे जाने की सजा।

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इससे डरे इंडियन एक्सप्रेस के मालिक विवेक गोयनका ने आखिरकार मजीठिया लागू कर दिया है। क्यों कि दो महीने की अवधि 13 दिसंबर को समाप्त हो रही है और इसी अवधि में लागू करना है। चलिए, लागू तो कर दिया है, पर जिस तरह, जिस तरीके से लागू किया है उससे वेतन की स्थिति कहीं और बिगड़ गई है। इस वेज बोर्ड के सुझावों के मुताबिक वेतन-पगार कई गुना बढऩी चाहिए, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ के इस वेज बोर्ड की परिधि में आने वाले 69 कर्मचारियों में से 38 का वेतन पहले से हजारों रुपए कम हो गया है, उनका वेतन माइनस में चला गया है। यही नहीं क्लासीफिकेशन के हिसाब से पहले यह अखबार क्लास 2 में था, जिसे अब क्लास में 3 में कर दिया है। इसके पीछे वही चिरपरिचित दलील कि अखबार की कमाई घट गई है और ऊपर मजीठिया की तलवार लटक गई है। जब कि सच तो यह है कि विवेक गोयनका की बेहद मोटी गर्दन और उससे भी कहीं मोटी खाल को मजाल क्या कि ये तलवार खरोंच भी लगा सके! फिर भी रोना वही का वही। हालांकि इन घडिय़ाली आंसुओं की हकीकत किसी से छिपी नहीं है।

इस वेज बोर्ड में कर्मचारियों को नियमित पदोन्नति देने, इन्क्रीमेंट देने का पूरा बंदोबस्त किया गया है, लेकिन एक्सप्रेस प्रबंधन की आंखों में यह चुभ रहा है। वह इस पर अमल से विमुख होती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक चार समान किस्तों में एरियर का भुगतान करना है, पर विवेक गोयनका साहब का इस पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं है। माननीय मजीठिया जी ने कर्मचारियों को उनकी योग्यता, काबिलियत के हिसाब से एश्योर्ड करिअॅर डेवलपमेंट का प्रावधान किया है। लेकिन स्व.रामनाथ गोयनका के महामहिम दत्तक पुत्र को यह प्रावधान निरर्थक, बेमतलब, बेकार लगता है। यही नहीं, प्रबंधन ने मजीठिया देने के एवज में कर्मचारियों को पहले से मिल रहीं अनेक या कहें कि वो तमाम भत्ते-सुविधाएं छीनने की तैयारी कर ली है, या कि छीन ली है जिसे कर्मचारियों ने लंबे संघर्ष के बाद हासिल किया है। इन सुविधाओं-सहूलियतों में कई तो ऐसी हैं कि जिनके बगैर अखबार का काम हो ही नहीं सकता। खासकर इंडिसन एक्सप्रेस की जिसके लिए, जिसकी बिना पर एक अलग पहचान है, वह तो इन संबंधित सुविधाओं के छिन जाने के बाद एक्सप्रेस की छवि मटियामेट हो जाएगी। विवेक साहब का न जाने कैसा विवेक है कि इस सच को नहीं जान-समझ पा रहा है कि मात्र मशीनों-टेक्नोलॉजी से अखबार नहीं छपते-निकलते हैं। उसमें मानवीय श्रम, मस्तिष्क, ऊर्जा, ज्ञान, समझ, विवेक आदि की खपत होती है तब कहीं अपने पाठकों तक पहुंचता है। और तब लोग उसे लपक कर पढ़ते हैं और अपने मतलब-रुचि की पाठ्य सामग्री में गोता लगाते हैं।

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चंडीगढ़ इंडियन एक्सप्रेस इंप्लाई यूनियन ने मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के क्रियान्वयन के लिए अपने साथियों के संग मिलकर बहुत मजबूत, अटल-अटूट लड़ाई लड़ी है। लेकिन मैनेजमेंट की नई बदमाशियों, करतूतों, शरारतों से नए सिरे से लडऩे की कटिबद्धता, तत्परता एक बार फिर अनिवार्य हो गई है। हालांकि प्रबंधन फूट डालो और अपना हित साधो की प्राचीन रीति, डगर पर चलने से पीछे नहीं हटेगी। ऐसे में कर्मचारियों का अपने बुनियादी हक के लिए फिर से मैदान में उतरना लाजिमी लगने लगा है।

… लेकिन दैनिक भास्कर कर्मियों का क्या होगा?
 अब यह गोपनीय नहीं रह गया है कि दैनिक भास्कर के महामहिम मालिकान भी अपने कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों से उपकृत करने जा रहे हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार एक जनवरी 2015 से इन संस्तुतियों पर क्रियान्वयन की मंशा-नीयत उन्होंने जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार दो महीने की मियाद तो 13 दिसंबर को खत्म हो रही है। तो फिर जनवरी में अमल का ऐलान भास्कर के महानुभावों ने जो किया उसका अर्थ-निहितार्थ क्या है, क्या हो सकता है, इसे भास्कर का कोई भी कर्मचारी बता पाने, व्याख्यायित कर पाने में असमर्थ है। वैसे भी, खासकर चंडीगढ़ संस्करण के कर्मचारियों को मजीठिया से शुरू से कोई मतलब नहीं रहा है। यदि दबे-छिपे किसी को रहा भी है तो वह समझ ही नहीं पाया कि मजीठिया है क्या बला। क्यों कि यहां जिसको भी जो और जितनी पगार मिलती है, वह वेज बोर्ड के नियमों के अनुसार-अनुकूल नहीं होती है। बल्कि वह पहुंच-पहचान और सिफारिश के मुताबिक होती है। एक ही पद के व्यक्तियों-शख्सों का वेतन अलग-अलग होता है। यहां अनुभव, वरिष्ठता, कनिष्ठता, योग्यता आदि का कोई मतलब नहीं होता है। यहां का माहौल-कल्चर है मानव रूपी कर्मचारी को मशीन-यंत्र में तब्दील कर देना। बुदबुदाते रहो, पर खुल कर बोलना मना है। ऐसा करना गंभीर गुनाह के समान है। अफसरों को सर, सर कहते रहो। जो कहें सुनते-गुनते रहो।

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बहरहाल मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने में उससे संबद्ध सभी नियमों-कानूनों को मानना-पालन करना होगा मालिकान को। ऐसे में इस वेज बोर्ड के मुताबिक कर्मचारियों को कितना वेतन मिलना चाहिए, इसकी जानकारी कर्मचारियों को भी होना अनिवार्य है। तभी तो वे वेतन वृद्धि-वेतन संशोधन, वेतन निर्धारण, उससे जुड़े दूसरे लाभों को अर्जित करने के तरीके-उपाय अपनाने में सक्षम होंगे कर्मचारी। लेकिन जितनी जानकारी उपलब्ध है, भास्कर के अधिकांश पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारी ने मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को पढ़ा ही नहीं है। सबसे अहम यह है कि भास्कर क्लासिफिकेशन के अनुसार किस क्लास में आता है, यह भी शायद ही किसी को पता हो। क्यों कि मैंने जितने लोगों से पूछा है किसी ने भी इस बारे में कुछ नहीं बताया। सबने कहा – हमें नहीं मालूम है। हां, भास्कर के नंबर वन होने की बात सभी सगर्व कहते हैं।

चलिए हमीं बता देते हैं। दैनिक भास्कर के 67 संस्करण प्रकाशित होते हैं। डीबी कार्प की मार्च 2014 तक की कुल सालाना आमदनी 1850 करोड़ रुपए से अधिक है। इस हिसाब से दैनिक भास्कर तो क्लास 1 में आता है क्योंकि इस श्रेणी में 1000 करोड़ रुपए या इससे अधिक के अखबार मजीठिया के अनुसार क्लास 1 में आते हैं। ऐसे में भास्कर के किसी उप संपादक या रिपोर्टर का मासिक वेतन 42-45 हजार रुपए से कम नहीं होना चाहिए। यह भी लागू होना है 11 नवंबर 2011 से। यानी इधर के वर्षों में इन्क्रीमेंट एवं अन्य लाभ भी जुड़ेंगे। साफ है कि इस हिसाब से काफी एरियर भी मिलना चाहिए। स्पष्ट है कि कर्मचारियों को अपना हिसाब किताब बहुत चुस्ती से बनाना होगा तभी भास्कर मैनेजमेंट से निपट पाएंगे।

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इससे जुड़ा एक और बड़ा सवाल है कि मैनेजमेंट कितने कर्मचारियों को उपकृत करने के मूड है? कहीं ऐसा तो नहीं है चुनिंदा लोगों को मजीठिया का चॉकलेट थमा दिया जाए और बाकी लोग हमको भी- हमको भी कहते ही रह जाएं और मालिकान अंतत: तेज निगाहों से घूर कर उन्हें खामोश करा दें। 

इस संदर्भ में अब वह यूनियन भी याद हो आई है जिसे भास्कर मालिकान ने चंडीगढ़ संस्करण के शुरुआती काल में अपने खास खुशामदियों की अगुआई एक दैनिक भास्कर कर्मचारी यूनियन बनवा दी थी। जो कागजों में अभी भी है। वैसे वह सक्रिय ही कब थी कर्मचारियों के हित में। हां, मौजूदा परिस्थिति में उन यूनियन नेताओं को चुप्पी तोडक़र वाचाल हो जाना चाहिए, तभी उनके यूनियन नेता होने की सार्थकता उजागर-साबित होगी। अब भी खामोश रह गए तो यह अवसर फिर कभी नहीं पकड़ पाएंगे। हाथ रह जाएगी निराशा-पछतावा।

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सूरमा रजनीश रोहिल्ला:
एक सूरमा है रजनीश रोहिल्ला, जिसने दैनिक भास्कर प्रबंधन की बदमाशियों के आगे नहीं झुका। उन्हें ‘मजीठिया नहीं चाहिए’ फार्म पर दस्तखत कराने के अनेक उपक्रम प्रबंधन की ओर से किए गए। पर उन्होंने साइन नहीं किए। इसी खफा मैनेजमेंट ने उनका तबादला कर दिया। लेकिन वे नहीं गए। आखिर में उन्होंने मजीठिया के लिए सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगा दी। उनकी फरियाद सुनी गई और मालिकों से साफ कह दिया गया- दो महीने में लागू करो। नहीं लागू करेंगे तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के जुर्म में जाना होगा सलाखों के पीछे।

चंडीगढ़ से भूपेंद्र प्रतिबद्ध की रिपोर्ट. संपर्क: 09417556066

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0 Comments

  1. Kashinath Matale

    December 2, 2014 at 1:17 pm

    BAHOT ACHHI AUR VISTRUT JANKARI DI HAI.
    LEGAL YA MAIDANI LADHAI (AGAR SAB EK SATAH HAI) TO LADHANI HI CHAHIYE.
    COURT KI LADHAI ME TIME AUR PAISA DONO JATA HAI. LEKIN SATYA KE LIYE LADHANA CHAHIUE.
    GALAT IMPLEMENTATION KE LIYE HUM (HITAVADA SHRAMIK SANGH, NAGPUR) BHI LADH RAHE HAI.

    bhadas4media.com ko report publish karnekne ke liye bhadhai.

  2. mayank

    December 9, 2014 at 5:33 pm

    aap sahi kah rahe h. bhaskar wale yahi karne ka vichar bana rahe h ki keval kuch m grade tak k logo ko hi majithia de diya jaye baki ko dara kar chup kara diya jaye. iske liye wo sabhi unilt heads or department heads ko ye kam sop raha h. shayad alwar sikar me bhi yahi vichar chal rha h bhaskar ka.

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