हिन्दी के पाठकों को आज का अंग्रेज़ी वाला इंडियन एक्सप्रेस ख़रीद कर रख लेना चाहिए

Ravish Kumar : इंडियन एक्सप्रेस में छपे पैराडाइस पेपर्स और द वायर की रिपोर्ट pando.com के बिना अधूरा है… हिन्दी के पाठकों को आज का अंग्रेज़ी वाला इंडियन एक्सप्रेस ख़रीद कर रख लेना चाहिए। एक पाठक के रूप में आप बेहतर होंगे। हिन्दी में तो यह सब मिलेगा नहीं क्योंकि ज्यादातर हिन्दी अख़बार के संपादक अपने दौर की सरकार के किरानी होते हैं। कारपोरेट के दस्तावेज़ों को समझना और उसमें कमियां पकड़ना ये बहुत ही कौशल का काम है। इसके भीतर के राज़ को समझने की योग्यता हर किसी में नहीं होती है। मैं तो कई बार इस कारण से भी हाथ खड़े कर देता हूं। न्यूज़ रूम में ऐसी दक्षता के लोग भी नहीं होते हैं जिनसे आप पूछकर आगे बढ़ सकें वर्ना कोई आसानी से आपको मैनुपुलेट कर सकता है।

‘इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार ने गोवा-मणिपुर के राज्यपालों और सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की

Om Thanvi : इंडियन एक्सप्रेस का आज दो टूक सम्पादकीय…. गोवा और मणिपुर में राज्यपालों को पहले सबसे बड़ी पार्टी के नाते कांग्रेस को सरकार बनाने को आमंत्रित करना चाहिए था। गोवा की राज्यपाल का आचरण प्रश्नाकुल है। उन्होंने समर्थन के जिन पत्रों के आधार पर पर्रिकर को मुख्यमंत्री पद की शपथ का न्योता दे दिया, वे भाजपा के साथ किसी गठबंधन में शरीक़ नहीं थे। बल्कि उनमें एक पार्टी गोवा फ़ॉर्वर्ड पार्टी ने भाजपा के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ा था।

मोदीजी गोयनका अवार्ड बांटने से पहले इंडियन एक्सप्रेस की ये सच्चाई भी जान लेते…

जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की मांग को लेकर लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों और मीडिया कर्मियों की तरफ से मेरा एक सवाल है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से। सवाल पूछने का मुझे दोहरा हक़ है। मोदी जी काशी के सांसद हैं। मैं भी काशी का हूँ और उनका मतदाता भी। रामनाथ गोयनका पुरस्कार वितरण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने में पत्रकारिता की भूमिका अहम है. प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर पुरस्‍कार पाने वालों को बधाई दी. उन्‍होंने कहा कि हर किसी की कलम देश को आगे बढ़ाने में योगदान देती है। मैं मोदी जी से पूछना चाहता हूँ जिस इंडियन एक्सप्रेस के दरबार में आपने हाजिरी लगायी क्या यहाँ आने से पहले आपने पूछा इंडियन एक्सप्रेस प्रबंधन से कि आपने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू की, क्या आपने सुप्रीम कोर्ट की बात मानी। 

राजकमल झा, आपने इस भाषण के जरिए सम्पादक नाम की संस्था के मान की न केवल रक्षा की है, बल्कि उसे बढ़ाया भी है

Satyanand Nirupam : किसी सम्पादक के विवेक, समय पर उसकी अचूक पकड़ के साथ उसकी निर्णय-क्षमता की धार देखनी हो तो इस लिंक पर जाकर इंडियन एक्सप्रेस अखबार के प्रधान सम्पादक राजकमल झा का छोटा-सा लेकिन महत्वपूर्ण भाषण सुनिए जो उन्होंने अपने संस्थान द्वारा दिए जाने वाले रामनाथ गोयनका अवार्ड के समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में दिया…

मध्य प्रदेश सरकार ने छल वेबसाइटों को 4 साल में दिए 14 करोड़ के सरकारी विज्ञापन, इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित की रिपोर्ट

वरिष्ठ पत्रकार श्याम लाल यादव की रिपोर्ट में खुलासा, पत्रकारों और उनके रिश्तेदारों की ओर से संचालित की जा रही हैं वेबसाइट, 10 हजार रूपए से लेकर 21 लाख 70 हजार रुपए तक विज्ञापन दिए गए, कांग्रेसी विधायक बाला बच्चन ने विधानसभा में उठाया था सवाल

-दीपक खोखर-

भोपाल, 10 मई। मध्य प्रदेश में 4 साल के दौरान 244 छल वेबसाइटों को 14 करोड़ रूपए के सरकारी विज्ञापन दिए गए। इनमें से ज्यादातर वेबसाइट पत्रकारों और उनके रिश्तेदारों की ओर से संचालित की जा रही हैं। इन वेबसाइट को वर्ष 2012 से वर्ष 2015 के बीच 10 हजार रूपए से लेकर 21 लाख 70 हजार रूपए के विज्ञापन दिए गए। इंडियन एक्सप्रेस ने इस बारे में सोमवार 9 मई के अंक में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। वरिष्ठ पत्रकार श्याम लाल यादव की रिपोर्ट में यह तमाम खुलासे हुए हैं। दरअसल कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने विधानसभा में सवाल उठाया था। जिसके बाद उन्हें दिए गए जवाब में तमाम जानकारी हासिल हुई।

राजकमल झा और इंडियन एक्सप्रेस की टीम को मेरा लाल सलाम

Samar Anarya : Most of the Indians in Panama Papers are patriots like Amitabh Bachchan, Adani who keep chanting Bharat Mata Ki Jai. Some of them are even Padma Awardees. Bharat Mata ki Jai. पनामा पेपर्स में सामने आए ज़्यादातर भारतीय नाम अडानी से अमिताभ बच्चन जैसे राष्ट्रवादियों के हैं जो अक्सर भारत माता की जय बोलते रहते हैं। कुछ तो पद्म पुरस्कृत भी हैं! भारत माता की जय।

टेलीग्राफ ने पिछले एक महीने में जो हेडिंग दी, वह बहुत आसान काम नहीं है

Ambrish Kumar : सिर्फ दो अखबार… अपनी जो पोस्ट पब्लिक में थी उसमें बहुत से अंजान लोग भी आए. कई आहत थे तो कई आहत करने का प्रयास कर गए. उनकी एक नाराजगी अपन के पत्रकार होने के साथ पूर्व में इंडियन एक्सप्रेस समूह का पत्रकार होने से ज्यादा थी. वे मीडिया की भूमिका से नाराज थे. पर यह नाराजगी दो अखबारों से ज्यादा थी. अपनी प्रोफाइल में इंडियन एक्सप्रेस है ही जो एक अख़बार था तो दूसरा टेलीग्राफ. दोनों की दिल्ली में सांकेतिक मौजूदगी है, बड़े प्रसार वाले अखबारों के मुकाबले. एक्सप्रेस से अपना लंबा संबंध रहा है और उसका इतिहास भूगोल सब जानते भी हैं. चेन्नई अब कहा जाता है पर आजादी से पहले के मद्रास में किस तरह अंग्रेजों से यह अख़बार नुकसान सहकर लड़ा, यह कम लोग जानते है.

मजीठिया वेज बोर्ड और इंडिया एक्सप्रेस मुंबई : यूनियन के पदाधिकारी कंपनी के हाथों बिक गए!

मुंबई से मीडिया के एक साथी ने इंडियन एक्सप्रेस मुंबई की अंतरकथा लिख भेजी है. इस कहानी को पढ़ने से पता चलता है कि किस तरह आम मीडियाकर्मियों के भले के लिए बनी यूनियनें आजकल मालिकों के हित साधन का काम कर रही हैं. यही कारण है कि मीडिया के एक बड़े मसले मजीठिया वेज बोर्ड को लागू कराने को लेकर यूनियनों का रवैया बेहद नपुंसक है.

HT, IE among 47 Delhi newspapers have dared not to implement Majithia Award

Except four newspapers namely; The Hindu, The Tribune, The Decan Herald and Bennet Coleman & Company (publishers of The Times of India, Economic Times and Navbharat Times) and one news agency i.e. the Press Trust of India no newspaper/news agency being published from Delhi has implemented the Majithia Award. This has been revealed in the affidavit of the Government of Delhi submitted by Dr. Madhu Teotia, Labour Commissioner of Government of NCT of Delhi.

मजीठिया वेज बोर्ड : सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई, भविष्य की रणनीति और लड़ने का आखिरी मौका… (देखें वीडियो)

Yashwant Singh : सुप्रीम कोर्ट से अभी लौटा हूं. जीवन में पहली दफे सुप्रीम कोर्ट के अंदर जाने का मौका मिला. गेट पर वकील के मुहर लगा फार्म भरना पड़ा जिसमें अपना परिचय, केस नंबर आदि लिखने के बाद अपने फोटो आईडी की फोटोकापी को नत्थीकर रिसेप्शन पर दिया.

इंडियन एक्सप्रेस में छपा रिबेरो का लेख हर पाठक को हिला गया : ओम थानवी

1989 में जब मैंने चंडीगढ़ जनसत्ता का कार्यभार संभाला, जूलियो रिबेरो आतंकवाद से जूझ रहे पंजाब में राज्यपाल के सलाहकार थे। राष्ट्रपति राज में राज्यपाल और उनके सलाहकार ही शासन चलाते थे। राजभवन के एक आयोजन में जब मैं रिबेरो से मिला, वे कहीं से ‘सुपरकॉप’ नहीं लगते थे; उनमें अत्यंत सहजता और विनम्रता थी, खीज या उत्तेजना उनसे कोसों दूर नजर आती थी। मेरी जिज्ञासा पर अपने पर हुए एक जानलेवा हमले का किस्सा उन्होंने हंसते हुए सुनाया था।

That’s Called True Journalism… Salute to Mr Praveen Swami….

इंडियन एक्सप्रेस में कार्यरत वरिष्ठ और खोजी पत्रकार प्रवीण स्वामी ने अपनी एक इनवेस्टीगेटिव रिपोर्ट के जरिए बताया कि जिस नाव को उड़ाया गया, वह ड्रग तस्करों की नाव थी. जाहिर है, इससे मोदी सरकार का फर्जीवाड़ा खुलना था, जो दावे कर रही थी कि इस नाव में बारूद का जखीरा था और पाक प्रशिक्षित आतंकवादी थे, भारत का बहुत बड़ा नुकसान करने आ रहे थे, उन्हें उड़ा दिया गया ब्ला ब्ला ब्ला. प्रवीण स्वामी जब सच सामने ले आए तो यह दक्षिणपंथियों को बर्दाश्त नहीं हुआ और हिंदू सेना वालों ने प्रवीण स्वामी के खिलाफ इंडियन एक्सप्रेस आफिस के सामने नारेबाजी की और उनकी तस्वीरें जलाईं. इस मसले को लेकर सोशल मीडिया में लोग हिंदू सेना और केंद्र सरकार की निंदा कर रहे हैं और ऐसे कुकृत्य को सेंसरशिप से जोड़कर देख रहे हैं.

संगम पांडेय, शिल्पी गुप्ता, अभिनय, सीपी शुक्ला, सुधीर द्विवेदी, योगेश पढियार के बारे में सूचनाएं

साहित्यिक मैग्जीन ‘हंस’ से सूचना मिली है कि यहां कार्यकारी संपादक के रूप में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संगम पांडेय ने इस्तीफा दे दिया है. सूत्रों का कहना है कि ‘हंस’ के संचालन समेत कुछ मुद्दों को लेकर प्रबंधन से मतभेद के बाद संगम ने खुद ही इस्तीफा दे दिया. संगम पांडेय स्टार न्यूज समेत कई न्यूज चैनलों और अखबारों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं.

शेखर गुप्ता अब अपनी मीडिया कंपनी शुरू करेंगे, अखबार से लेकर टीवी तक लांच करेंगे

दूसरों की नौकरियां करते करते उब चुके शेखर गुप्ता अब खुद की नौकरी करेंगे. यानि अपनी मीडिया कंपनी बनाएंगे. इस कंपनी के बैनर तले वह अखबार, वेबसाइट, चैनल सब लांच करेंगे. पता चला है कि शेखर गुप्ता ने अपनी खुद की मीडिया कंपनी वर्ष 2000 में ही बना ली थी लेकिन उसे लेकर बहुत सक्रिय नहीं थे क्योंकि उनका पूरा वक्त इंडियन एक्सप्रेस समूह की सेवा में जाता था. अब जब वह इंडियन एक्सप्रेस से लगाकर इंडिया टुडे तक से हटाए जा चुके हैं तो उनके पास अपनी कंपनी को देने के लिए वक्त खूब है.

सलाखों के भय से ‘चंडीगढ़ इंडियन एक्सप्रेस’ ने मजीठिया आधा-अधूरा लागू किया, …लेकिन भास्कर कर्मियों का क्या होगा?

सबके दुख-सुख, विपदा-विपत्ति, परेशानी-मुसीबत, संकट-कष्ट, मुश्किल-दिक्कत, आपत्ति-आफत आदि-इत्यादि को अपनी कलम-लेखनी, कंप्यूटर के की-बोर्ड से स्टोरी-आर्टिकल, समाचार-खबर की आकृति में ढाल कर अखबारों, समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की अनवरत मशक्कत-कसरत करने वाले मीडिया कर्मियों को अपने ही गुजारे के लिए मिलने वाली पगार अमृत समान हो गई है। हां जी, अमृत समान! मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों को लेकर अखबारों के कर्मचारियों और मालिकान के बीच चल रही लड़ाई शायद इसी पौराणिक कथा का दूसरा, पर परिवर्तित रूप लगती है।

हिंदी अखबार के उप संपादक छोकरे और अंग्रेजी अखबार की कन्या का लव जिहाद!

साल 1988 की बात है। मैं तब जनसत्ता में मुख्य उप संपादक था और उसी साल संपादक प्रभाष जोशी ने जनसत्ता के राज्यों में प्रसार को देखते हुए एक अलग डेस्क बनाई। इस डेस्क में यूपी, एमपी, बिहार और राजस्थान की खबरों का चयन और वहां जनसत्ता के मानकों के अनुरूप जिला संवाददाता रखे जाने का प्रभार मुझे सौंपा। तब तक चूंकि बिहार से झारखंड और यूपी से उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था इसलिए यह डेस्क अपने आप में सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा जिम्मेदारी को स्वीकार करने वाली डेस्क बनी। अब इसके साथियों का चयन बड़ा मुश्किल काम था। प्रभाष जी ने कहा कि साथियों का चयन तुम्हें ही करना है और उनकी संख्या का भी।