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सियासत

चिन्मयानंद कांड : लोयालुहान देश में अचंभित हुआ अभियोजन!

-संजय कुमार सिंह-

अब पूर्व गृह राज्य मंत्री आरोपों से मुक्ति की ओर… पूर्व गृह राज्यमंत्री और भाजपा नेता, चिन्मयानंद पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली एलएलएम की छात्रा अपने आरोपों से मुकर गई है। 23 साल की छात्रा लखनऊ की विशेष अदालत में अपने सभी आरोपों से मुकर गई। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर लखनऊ के विशेष कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हो रही है। इस मामले में गिरफ्तार होने के बाद चिन्मयानंद करीब पांच माह जेल में रहे थे। लोयालुहान देश में अचंभित अभियोजन पक्ष ने इस छात्रा के खिलाफ पक्षद्रोही या बयान बदलने पर धारा 340 के तहत मुक़दमे की अर्ज़ी दाख़िल की है।

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तथ्य यह भी है कि, आरोप लगाने वाली युवती पर चिन्मयानंद को ब्लैकमेल कर रंगदारी मांगने के आरोप हैं। कोर्ट में इस केस की भी सुनवाई चल रही है। युवती भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में रहती है, पूर्व सांसद के संस्थान में पढ़ती थी फिर भी उसे सांसद से रंगदारी वसूल पाने की गलतफहमी हुई और उसके आरोपों पर विश्वास किया गया। इस कारण चिन्मयानंद को पांच महीने जेल में रहना पड़ा। हालांकि, रहे वे ज्यादातर समय अस्पताल में ही। लगता है उसी दौरान उनका अच्छा इलाज हुआ और फिर अस्वस्थता की कोई खबर नहीं दिखी।

पूर्व गृहराज्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा वापस लिए जाने की खबर और अब उनके खिलाफ आरोप लगाने वाली के मुकर जाने से चिन्मयानंद की छवि एक तपे-तपाये जुझारू और साफ छवि वाले राजनेता तथा गेरुआधारी की बन रही है। दूसरी ओर केंद्रीय गृहमंत्री के अस्वस्थ होने की खबरों, बिहार चुनाव के बावजूद उनके सार्वजनिक रूप से कम दिखने और उनके स्वास्थ्य को लेकर बरती जा रही गंभीर गोपनीयता से यह अटकल भी लग रही है कि अनुभवी स्वामी चिन्मयानंद की जरूरत गृहमंत्रालय में तो नहीं है। हालांकि, इसकी पुष्टि या खंडन का आजकल कोई तरीका नहीं है।

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यह अटकल इसलिए भी निराधार नहीं है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन फरवरी को चिन्मयानंद को जमानत दी थी। जेल से रिहाई के बाद उनके आश्रम में पूजा हुई और प्रसाद रूप में सैकड़ों लोगों को भोजन कराया गया। आश्रम पहुंचने पर राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के कैडेट्स ने उनकी अगवानी की थी। एनसीसी के इस दुरुपयोग पर भी सवाल उठा था लेकिन ….।

दूसरी ओर चिन्मयानंद पर आरोप लगने के बाद जवाबी आरोप, पीड़िता की गिरफ्तारी और जमानत का विरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कॉलिन गोन्साल्विस ने कहा था कि आरोपी ताकतवर है। पीड़िता का जीवन खतरे में है। इसपर मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि अगर उनको खतरा महसूस हो रहा है तो वे पुलिस सुरक्षा की मांग कर सकती हैं। बाद में याचिका तो खारिज हो ही गई थी।

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इसलिए, सरकार को चाहिए कि ऐसी व्यवस्था करे जिससे भविष्य में किसी भोले-भाले नेता को किसी रंगदार गिरोह द्वारा इस तरह फंसा कर बदनाम नहीं किया जा सके। इससे अदालतों का समय बचेगा, जज को ईनाम देने के आरोपों की संभावना कम होगी। आप जानते हैं कि गृहमंत्री अमित शाह भी एक मामले में फंसाकर परेशान किए जा चुके हैं।

वह तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सत्य के प्रति आस्था है कि उन्होंने देश के करीब सवा सौ करोड़ लोगों की भीड़ में से अमित शाह जैसा प्रतिभाशाली और योग्य गृहमंत्री चुना है और उन पर लगे पुराने आरोपों की परवाह नहीं की। वरना छवि की चिन्ता करने वाले लोग तो जरूरत से ज्यादा कपड़े बदलने के आरोप पर भी काबिलतम सहयोगियों को दूध की मक्खी की तरह मंत्रिमंडल से निकाल देते रहे हैं।

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हाथरस मामले में शिकायतकर्ता पक्ष का नार्को टेस्ट कराने की बात इसी आधार पर उठी होगी। नार्को टेस्ट रोकने से संबंधित मामला शायद अदालत में है पर रंगदारी मांगने की कोशिश के ऐसे मामलों में अभियुक्तों की दिमागी स्थिति की भी जांच करानी चाहिए और कुछ गड़बड़ मिले तो मुकदमा चलने तक उन्हें मानसिक अस्पताल में ही रखना चाहिए। नियम बना देना चाहिए कि मानसिक स्थिति ठीक होने के प्रमाणपत्र के बिना अदालत से कोई राहत भी नहीं मिलेगी। आखिर बड़े लोगों की इज्जत का सवाल जो है।

कोर्ट ने सरकारी वकील की अर्ज़ी स्वीकार करके छात्रा को नोटिस देकर जवाब दाखिल करने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 15 अक्तूबर को होगी। इस मामले में 33 गवाह और 29 दस्तावेज़ दाखिल किए गए थे। वीडियो भी वायरल हुआ था। हालांकि उसमें जबरदस्ती नहीं थी लेकिन जिसे आप दबाव में ले सकते हैं उसकी सहमति से भी नंगे होकर तेल मालिश कराना और उसका वीडियो सबूत होने के बावजूद मुख्य आरोपी का मुकरना क्या गुल खिलाएगा यह भविष्य ही बताएगा। हालांकि वीडियो फर्जी भी हो सकता है।

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तथाकथित पीड़िता के आरोप से मुकरने के बाद, सरकारी वकील अभय त्रिपाठी ने कहा है कि पांच सितंबर 2019 को पीड़िता ने स्वयं इस मामले की एफआईआर नई दिल्ली के थाना लोधी कालोनी में दर्ज कराई थी। इस एफआईआर को उसके पिता की ओर से शाहजहांपुर में दर्ज कराई गई पहली एफआईआर के साथ संबद्ध कर दिया गया था। एसआईटी ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज किया था।

शाहजहांपुर में संबधित मजिस्ट्रेट के समक्ष भी उसका कलमबंद बयान दर्ज हुआ था। दोनों बयानों में घटना का समर्थन किया गया था। लेकिन नौ अक्तूबर को अदालत में उसने बयान बदल दिया। उसने कहा, ‘मैंने अराजक तत्वों के दबाव में यह सब किया था।’ इससे ऐसा लगता है कि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है। लिहाजा सीआरपीसी की धारा 340 के तहत विधिक कार्यवाही की मांग की गई है।

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इससे पहले, 10 अप्रैल 2018 की एक खबर का शीर्षक था, चिन्मयानंद के ख़िलाफ़ रेप का केस ख़त्म करेगी योगी सरकार। इसी खबर का उपशीर्षक था, कथित बलात्कार पीड़िता ने राष्ट्रपति को भेजे गए पत्र में सरकार के इस क़दम पर आपत्ति दर्ज कराते हुए चिन्मयानंद के ख़िलाफ़ वारंट जारी करने की मांग की है। खबर में कहा गया था कि, अभियोजन अधिकारी विनोद कुमार सिंह की ओर से मुक़दमा वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। बलात्कार के इस मामले में शिकायतकर्ता दूसरी महिला थी।

वायर ने उनके हवाले से लिखा था, महिला ने कहा, … यह बहुत ही दुखद है। सरकार को न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। मैंने अदालत में इस आशय का प्रार्थनापत्र दे दिया है कि आरोपी के ख़िलाफ़ वारंट जारी करके उसे जल्द से जल्द जेल भेजा जाए।’जौनपुर से सांसद रहे स्वामी चिन्मयानंद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गृह राज्यमंत्री थे। उस वक़्त उनके संपर्क में आई यह महिला उनके एक विद्यालय में प्राचार्य थीं। उन्होंने 30 नवंबर, 2011 को चिन्मयानंद के ख़िलाफ़ शहर कोतवाली में बलात्कार का मुक़दमा दर्ज कराया था। इस बार मामला एक छात्रा ने दर्ज कराया था।

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बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली भाजपा पर बेटियों ने कुछ ज्यादा ही ज्यादती की है। कई नेताओं पर बलात्कार और यौन शोषण के आरोप हैं। और तो और भाजपा नेता के बेटे और करीबी भी लपेट लिए जाते रहे हैं। वह तो भाजपा जैसी पार्टी है कि अपने योग्य नेताओं को इन महिलाओं से बचा ले रही है जो हनी ट्रैप जैसी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होती हैं।

पहले ये सब मामले प्रकाश में नहीं आते थे। दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर लगने वाले ऊल जलूल आरोपों के चलते भाजपा नेता इज्जच बचाने के लिए महिला सहेली के तीसरी मंजिल के फ्लैट से कूद जाना पसंद करते हैं और रंगे हाथ पुलिस अफसर को पुलिस नहीं उन्हीं की पत्नी पकड़ती है। चिन्मयानंद पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की को भी पुलिस ने नहीं बख्शा था।

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पुलिस ने पूरी निष्पक्षता से कार्रवाई करते हुए उसे गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया था। तब चिन्मयानंद ने कहा था कि पीड़िता उनसे पांच करोड़ रुपये की रंगदारी मांग रही थी। और अब तथाकथित पीड़िता अपने बयान से मुकर गई. लोग तब पूछ रहे थे कि क्या पीड़िता को इंसाफ़ मिल पायेगा।

असली पीड़ित, देश के पूर्व गृहमंत्री और भाजपा नेता के साथ अब न्याय होता दिख रहा है। उम्मीद है रंगदारी मांगने के मामले में भी जल्दी ही कार्रवाई होगी।

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शिकायत करने वालों के खिलाफ एफआईआर पैटर्न है

चिन्मयानंद के खिलाफ आरोप लगाने वाली पीड़िता अगर मुकर नहीं जाती तो क्या उसे न्याय मिलने की उम्मीद थी? इन मामलों को याद कीजिए। क्या यह एक पैटर्न नहीं है?

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  1. अखलाक की हत्या हुई। घर के फ्रीज में गोमांस रखने की एफआईआर हुई। हत्या के अभियुक्तों को जो ईनाम मिले वह अलग है।
  2. उन्नाव की पीड़िता पर भी एफआईआर हुई थी – अभियुक्त भाजपा विधायक जेल में हैं। कैसे सबको पता है। भाजपा सांसद जेल जाकर उनसे मिल भी आए हैं। उस पर उम्र प्रमाणपत्र में फर्जीवाड़ा करने का आरोप था।
  3. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बच्चों की मौत हुई – एफआईआर हुई डॉक्टर कफील पर। मामला आप जानते हैं। किसी और कार्रवाई की खबर है?
  4. जेएनयू में छात्र संघ अध्यक्ष आईशी पर हमला हुआ – एफआईआर उसी पर हुई। नाकबपोश हमलावर शर्मा जी की बिटिया का पता अभी तक नहीं चला। आपको कोई खबर है?
  5. इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को गोली मारने वालों का स्वागत किया गया सबको पता है।
  6. मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्य नाथ ने अपने खिलाफ मुकदमे हटाने की कार्रवाई शुरू की थी – आगे की खबर अखबारों ने दी? चिन्मयानंद के खिलाफ एक मामले में भी … उसपर मेरी कल की पोस्ट देखिए।
  7. हाथरस का मामला सबको पता है। लड़की मर गई पर बलात्कार नहीं हुआ इसका प्रचार किया जा रहा है। मृत्युपूर्व बयान भी नजरअंदाज करके। हालांकि उसपर केंद्र सरकार का निर्देश आया। नार्को टेस्क की जरूरत बताने के बाद!!
  8. भीमा कोरेगांव मामले में संभाजी भिड़े और मिलिन्द एकबोटे पर दलितों के खिलाफ हिन्सा फैलाने का आरोप है। लेकिन एफआईआर हुई लिखने पढ़ने वाले प्रोफेसरों, आयोजकों पर। अर्बन नक्सली घोषित। तथाकथित ‘साजिश’ करने वाले अब तक पकड़े जा रहे हैं। मुख्य आरोपी के खिलाफ कार्रवाई का पता नहीं।
  9. सोनी सोरी को पुलिस द्वारा पेराशान किए जाने का मामला 2011 का है। हिरासत में परेशान किए जाने की कई शिकायतें हैं पर कार्रवाई की कोई सूचना? उल्टे अदालत से वे आठ में से छह मामलों में बरी हो गईं। आम आदमी पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया तो 2014 के चुनाव में आचार संहिता के उल्लंघन का मामला बना।
  10. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पहले कह चुके हैं कि उनकी सरकार में इस्तीफे नहीं होते। मंत्री बनाना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है पर उसमें गृहमंत्री पद के लिए पूर्व तड़ी पार को चुनना और दागियों को मंत्री बनाना भी एक पैटर्न है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए योगी आदित्यनाथ का नाम कैसे उभरा सबको पता है। पूर्व रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा रह गए थे उनका पुनर्स्थापन – सबको पता है। देर हुई और उनपर आपराधिक मामले शायद नहीं है। यह संयोग है या प्रयोग इसपर फिर कभी।

भिडे के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा था, “मैं भिडे गुरु जी का बहुत आभारी हूं क्योंकि उन्होंने मुझे निमंत्रण नहीं दिया बल्कि उन्होंने मुझे हुक्म दिया था। मैं भिडे गुरु जी को बहुत सालों से जानता हूं और हम जब समाज जीवन के लिए कार्य करने के संस्कार प्राप्त करते थे तब हमारे सामने भिडे गुरु जी का उदाहरण प्रस्तुत किया जाता था।” – (बीबीसी की खबर) अब आप भीमा कोरेगांव मामले की ‘साजिश’ का पर्दाफाश अभी तक जारी रहने का कारण समझ सकते हैं।

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