अजय कुमार, लखनऊ
बसपा सुप्रीमों मायावती कांग्रेस को कहीं भी मोहलत नहीं देना चाहती हैं। वह अपने वोटरों के बीच यह मैसेज भी नहीं जाने देना चाहती हैं कि कांग्रेस उन पर मेहरबानी कर रही है।इसी लिए वह कांग्रेस पर लगातार एक के बाद एक हमले कर रही हैं। कांग्रेस के हर दांव की हवा निकाल रही हैं। कांग्रेस ने गत दिवस बसपा-सपा गठबंधन के सात दिग्गज प्रत्याशियों के खिलाफ कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी नहीं उतारने की जो घोषणा की थी,उसे मायावती ने ठुकराते हुए कांग्रेस को चुनौती दी है कि वह 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। गठबंधन प्रत्याशियों की आड़ लेकर किसी तरह का भ्रम न फैलाए। ऐसा लगता है कि मायावती ने तय कर लिया है कि वह कांग्रेस के हर दांव की काट करती रहेंगी। मायावती सियासी बाजार में कांग्रेस और भाजपा को एक ही तराजू पर तौलना चाहती हैं।
मायवती के नए दांव से यह साबित हो गया है कि राजनीति में हर दांव सीधा नहीं पड़ता है। इसकी कलई तब खुलती है, जब विरोधी इसकी काट निकालते हैं जिससे दांव चलने वाला ही इसका ‘शिकार’ हो जाता। उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। नेता तो नेता कभी-कभी तो मीडिया भी सियासी दांव की बारीकियों को नहीं समझ पाता है। कुछ दिनों पूर्व की बात है, जब बसपा सुप्रीमों मायावती पर दबाव बनाने के लिए प्रियंका वाड्रा भीम सेना के चीफ चन्द्रशेखर आजाद से मिलने मेरठ पहुंच गई थीं। इस मुलाकात को यह कहते हुए मानवीय रंग दिया गया कि प्रियंका बीमार चन्द्रशेखर का हालचाल पहुंचनें गईं थी,इस पर राजनीति नहीं होना चाहिए। मगर सब जानते थे कि बीमारी की आड़ में प्रियंका सियासी रोटियां सेंक रही थीं। चन्द्रशेखर कोई बहुत बड़ी बीमारी से ग्रस्त नहीं थे। इस बात का पता सबको था और यह बात तब और पुख्ता हो गई जब प्रियंका से मुलाकात के चंद घंटों बाद चन्द्रशेखर दिल्ली में एक जनसभा के दौरान मोदी सरकार को ललकारते नजर आए। असल में प्रियंका को लगा कि चन्द्रशेखर उनके पाले में आ गए तो पश्चिमी यूपी में बड़ी संख्या में दलितों के वोट कांग्रेस की झोली में पड़ सकते हैं। इस मुलाकात के बहाने प्रियंका बसपा सुप्रीमों मायावती पर भी दबाव बनाना चाहती थीं। दबाव की वजह यही है कि कांग्रेसियों को लगता है कि अगर सपा-बसपा गठबंधन का कांग्रेस हिस्सा नहीं बन पाई है तो इसके लिए मायावती पूरी तौर से जिम्मेदार हैं,जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव दिल से यही चाहते थे कि कांग्रेस भी गठबंधन का हिस्सा हों,लेकिन मायावती के चलते वह मुंह नहीं खोल पाए थे।
प्रियंका-चन्द्रशेखर की मुलाकात की मीडिया में भी खूब चर्चा हुई। इसे प्रियंका का मास्टर स्ट्रोक बताया गया। इस मुलाकात को लेकर इलेक्ट्रानिक न्यूज चैनलों में दंगल छिड़ गया। हल्ला बोल होने लगा। दूसरे दिन प्रिंट मीडिया में प्रियंका-चन्द्रशेखर मुलाकात पर कोई समाचार/स्टोरी आती इससे पहले ही बसपा सुप्रीमों ने बाजी पलट दी। आनन-फानन में बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपने गठबंधन सहयोगी अखिलेश यादव के साथ मीटिंग बुला ली। बसपा की तरफ से संकेत आने शुरू हो गए कि सोनिया-राहुल को गठबंधन वॉकओवर नहीं देगी। बहन मायावती जी अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से सोनिया गांधी के खिलाफ अपना प्रत्याशी उतार सकती हैं। कांग्रेस को बसपा खेमें से आया यह संकेत भूकंप के झटके की तरह लगा। वैसे भी मायावती लगातार कांग्रेस पर हमलावर चल ही रही थीं। अगर मायावती सच में अमेठी और रायबरेली से अपना प्रत्याशी उतार देती तो कम से कम से कम अमेठी की सीट तो फंस ही सकती थी। यहां से बीजेपी स्मृति ईरानी पर दांव लगा रही है, जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल को जीत के लिए दिन में तारे दिखा दिए थे। गांधी परिवार पर किसी तरह का संकट आ जाए तो पूरी कांग्रेस अपना आपा खो देती है।क्योंकि यह वही पार्टी है जिसमें कभी इंडिया इस इंदिरा,इंदिरा इस इंडिया का नारा गूंजा करता था। यह परिवार अपने आप को देश से भी बड़ा समझता है।
बहरहाल,प्रियंका के भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर से मुलाकात से नाराज मायावती के मास्टर स्ट्रोक ने कांग्रेस को उग्र करने की बजाए बैकफुट पर ढकेल दिया। उसने चुप्पी साध ली। बात यहीं नहीं रूकी। गत दिवस उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने मायावती की गुस्से की आग पर पानी डालने के लिए सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के लिए सात सीट छोडने का ऐलान कर दिया। लखनऊ में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज बब्बर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के लिए सात सीट पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी। इन सीटों में मैनपुरी, कन्नौज, आजमगढ़, के साथ फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर व मथुरा की सीट शामिल हैं। इसके अलावा कांग्रेस उन सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी जहां से मायावती, आरएलडी के अजित सिंह और जयंत चौधरी चुनाव लड़ेंगे।
कांग्रेस को गठबंधन पर ‘उपकार’ दिखाए 24 घंटे भी नही हुए थे और मायावती एक बार फिर कांग्रेस पर हमलावर हो गईं। उन्होंने साफ कर दिया कि कांग्रेस जबरदस्ती यूपी में गठबंधन के लिए सात सीट छोडने की भ्रान्ति न फैलाएं। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में भी पूरी तरह से स्वतंत्र है कि वह यहां की सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करके अकेले चुनाव लड़ें। हमारा गठबंधन उत्तर प्रदेश में भाजपा को अकेले हराने के लिए पूरी तरह से सक्षम है।
उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि बीएसपी एक बार फिर साफ कर देना चाहती है कि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में कांग्रेस पार्टी से हमारा कोई भी किसी भी प्रकार का तालमेल व गठबंधन आदि बिल्कुल भी नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने साफ कहा कि हमारे लोग कांग्रेस पार्टी के आए दिन फैलाये जा रहे किस्म-किस्म के भ्रम में कतई न आयें।
लेखक अजय कुमार यूपी के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.