Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

आप सभी ज़िंदा लोगों को न मरने के एक साल होने की बधाई!

यशवंत सिंह-

एक साल होने को हैं। भयानक वक्त था। बुख़ार नहीं गया तो अस्पताल जाना पड़ा था। अस्पताल का हाल ऐसा कि वहाँ जाकर मौत साक्षात सामने दिखे। अस्पताल में कई रोज़ बिताने के बाद बुरी हालत में घर भाग आया था। फिर सब कुछ प्रकृति के हवाले कर दिया। जो होगा देखा जाएगा। सब मंज़ूर है।

दोस्तों परिचितों वरिष्ठों की मौत की खबर लगातार आती रही। शेष नारायण सिंह भैया अब भी दिल दिमाग़ से जाते नहीं। लगता है वो आज भी हैं। बस मौन हो गए हैं। उनमें जीने की ज़बरदस्त ललक थी। जिम जाते थे वो। बहुत अच्छे कॉंटैक्ट्स थे उनके। पर कुछ न काम आया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहुत सारे साथी मौत के मुँह से निकले पिछले बरस। मैं भी। उसके बाद दिल दिमाग़ थोड़े सदमे में चला गया। आज सोचता हूँ कि मर जाता तो मेरी पहली पुण्यतिथि क़रीब होती। अब तक लोग भूल चुके होते। जैसे हम सबने उन सबको भुला दिया जो चले गए। हम सब खुद के जीवन-कारोबार में इतने मशगूल हैं कि मुर्दा क्या, ज़िन्दों की खबर लेने की फ़ुरसत नहीं।

मन वैरागी पहले से ही हुआ पड़ा था। पिछले साल के मौत के ‘महोत्सव’ ने पूरी तरह से अकेले खड़ा कर दिया। अब दर्शक भाव रहता है। हर पल की दुनिया की हाय हाय से आतंकित हो जाता हूँ। अंधेरा और अकेलापन सुकून देते हैं। हरिद्वार चला जाता हूँ। गंगा किनारे बसी गेरुआ दुनिया अपनों सी लगती है। उनके बीच उन जैसा महसूस करता हूँ। उन पलों में सब कुछ भूल जाता हूँ। कहाँ से आया हूँ, मेरे आगे पीछे कौन है, क्या करता हूँ, क्या सोचता हूँ, क्या योजनाएँ हैं… सब ख़त्म हो जाता है हरिद्वार पहुँचते ही। बस सब कुछ गंगा के इर्द गिर्द सिमट जाता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आदतें, सोच, जीवन शैली, सक्रियता, चाह आह…. ये सब देह के साथ चिपके हैं। मन वैरागी होता जाए तो ये धीरे धीरे झरने लगते हैं। सब कुछ न्यूनतम लोवेस्ट मोड में आ जाता है। कंडेंस होकर हायबनेशन स्टेट में ट्रान्स्फ़ोर्म होना मंज़िल है। ये आनंददाई है। इसकी झलक जिसे मिलने लगती है वो फिर पीछे नहीं मुड़ सकता।

आप सभी ज़िंदा लोगों को न मरने के एक साल होने की बधाई। जो चले गए कुछ पल रोज़ रात में चाँद की तरफ़ देखते हुए उनकी याद में मौन रखता हूँ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आजकल फ़ेसबुक की मेमोरी रोज़ सुबह चेक करता हूँ। बुख़ार में भी गाता था पिछले बरस। ये भी गाया था- इंशा जी उठो अब कूच करो, इस शहर से जी को लगाना क्या… जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली को फैलाना क्या… वहशी को सकूँ से क्या मतलब जोगी का नगर में ठिकाना क्या…. https://youtu.be/ItnFNSfzfgY

जै जै

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement