विश्व दीपक-
सरकार किसानों से चना या अरहर खरीदती है. फिर बिडिंग के जरिए मिल मालिकों को चने या अरहर से दाल निकालने का ठेका देती है.
शर्त यह थी कि 100 किलोग्राम चना या अरहर में कम से कम इतनी किलोग्राम न्यूनतम दाल (मान लीजिए 70 किलोग्राम या 75 किलोग्राम) निकालकर देना ही होगा. तभी ठेका मिलेगा. यह बुनियादी शर्त थी.
लेकिन तभी भारत में राम-राज्य आ गया.
धरती के सबसे ईमानदार और सत्यनिष्ठ शासक ने भारत की सत्ता संभाली और नियम में एक छोटा सा बदलाव कर दिया 2018 में.
बदलाव यह था कि दाल निकालने की न्यूनतम शर्त समाप्त कर दी. मतलब 100 किलोग्राम चने या अरहर में से कितनी दाल निकलेगी यह मिल मालिक सरकार को बताएगा क्योंकि सरकार ने न्यूनतम मापदंड वाली सीमा ही समाप्त कर दी.
मिल मालिकों की लॉबी ने सराकर को बता दिया कि दाल निकल ही नहीं रही ठीक से. चना या अरहर या मूंग ही खराब है. सरकार चूंकि सामान्य मानविकी के हित में ही 18-18 घंटे काम करती है, इसलिए समान्य मानविकी की बात पवित्र मन से मान गई.
सीएजी ने ऑडिट किया तो पता चला कि 2018 से लेकर 2022 के बीच यानि चार साल में 4600 करोड़ की दाल खा ली गई.
उस वक्त जबकि भारत की मध्यवर्गीय जनता ने दाल खाना कम कर दिया है (गरीबों को तो नसीब ही नहीं होती) साहब की मेहरबानी से बड़े लोग 4600 करोड़ की दाल चट कर गए.
यह आंकड़ा सिर्फ NAFED का है. बाकी अंदाजा लगा लीजिए. देश काफी बड़ा है, बहुमत प्रचंड है और विकास के डबल इंजन भी सरपट दौड़ रहे हैं. जाहिर है खबाई भी डबल गति से हो रही है.