समरेंद्र सिंह-
ये देश बेचने का प्रोजेक्ट चल रहा है और आका के इशारे पर ये सीईओ देश का सौदा करता है!
कहते हैं कि मूर्खों को मूर्खों की संगत ही पसंद आती है। ठीक उसी तरह फेंकने वालों को फेंकने वाले ही पसंद होते हैं। शायद इसलिए नरेंद्र मोदी को अमिताभ कांत सबसे विद्वान और कर्मठ प्रशासनिक अफसर लगते हैं। इसलिए अमिताभ कांत जी नीति आयोग के “सीईओ” है। जैसे नीति आयोग न हो, कोई कंपनी हो। बेचने-खरीदने के धंधे में शामिल हो। वैसे खेल तो यही चल रहा है। बेचने का खेल। इस कंपनी को बेच तो, उस विभाग को बेच दो। धीमे-धीमे, कतरा-कतरा… कुछ वर्षों में देश ही बिक जाएगा!
नरेंद्र मोदी जी की तरह अमिताभ कांत जी माहौल बनाने में उस्ताद है। झांसा देने की मशीन हैं। आगे बढ़ने से पहले हम और आप – अतीत के इनके चमत्कारों पर एक नजर दौड़ा लेते हैं:
1) आरोग्य सेतु
2) कैशलेस अर्थव्यवस्था
3) स्टार्ट अप इंडिया
4) मेक इन इंडिया
और
5) इंक्रेडिबल इंडिया
(1)आरोग्य सेतु:
आरोग्य सेतु अमिताभ कांत का ताजातरीन फर्जीवाड़ा है। जिस समय सभी अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स जान की बाजी लगा कर कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं, ठीक उसी समय अमिताभ कांत जैसे लोग जमीन पर संघर्ष करने की जगह कथा कहानी बेचने में लगे हैं। आरोग्य सेतु एक ऐसी ही कथा-कहानी है। कुछ दिन पहले तक टीवी पर इसका दनादन विज्ञापन चल रहा था। इधर कुछ कम हुआ है। इसके विज्ञापन के नाम पर सरकार ने करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए हैं। पेप्सी और कोको कोला जैसी कंपनियों के जरिए प्रॉक्सी विज्ञापन करवाए हैं। ऐसा पहली बार हुआ होगा कि किसी सरकारी विज्ञापन का भुगतान निजी कंपनियों ने किया हो। यह एक तरीके से देश की संप्रभुता को गिरवी रखने जैसी बात है। लेकिन बेगैरत और बेहूदे लोगों को सम्मान और संप्रभुता से क्या लेना देना! ये उसे दांव पर रख कर आरोग्य सेतु ऐप का विज्ञापन करते रहे। पब्लिक को झांसा देते रहे। और कोरोना वायरस विकराल होता गया। अब हम दुनिया में नंबर वन बन गए हैं। वायरस के नियंत्रण में नहीं, उसके विस्तार में। देश में हर रोज करीब एक लाख लोग बीमार पड़ रहे हैं। मरने वालों की संख्या एक लाख के करीब और मरीजों की कुल संख्या 53 लाख के पार हो चुकी है। यही अमिताभ कांत और आयोग्य सेतु की सफलता है!
(2) कैशलेस इकॉनोमी:
2016 में नोटबंदी के वक्त अमिताभ कांत साहब ने दावा किया कि अगले दो-तीन साल में भारत की अर्थव्यवस्था कैशलेस हो जाएगी। नोट बदलवाने के लिए और अपने ही खातों से चंद पैसे निकालने के लिए कतार में खड़े खड़े सैकड़ों लोगों की जान चली गई। अर्थव्यवस्था की लंका लग गई। लेकिन इकॉनोमी कैशलेस नहीं हुई। कोरोना काल में भी नकदी धड़ाधड़ चलती रही। मेरे जैसे इकॉनोमी में अनपढ़ व्यक्ति ने भी 2016 में कह दिया था कि नरेंद्र मोदी और अमिताभ कांत झूठ बोल रहे हैं। उन सभी का झूठ बेपर्दा हो चुका है। लेकिन सैकड़ों लोगों के कातिल महानायक बन कर मस्त घूम रहे हैं। (2016 का अपना लेख मैंने कमेंट बॉक्स में चस्पा किया है)
(3) स्टार्ट अप इंडिया:
ये बड़ा स्लोगन था। लगा कि नरेंद्र मोदी जी और अमिताभ कांत जी देश की तस्वीर बदल देंगे। अमेरिका और चीन को मात दे देंगे। लेकिन कोई महल क्या एक छोटी सी झोपड़ी भी हवा में खड़ी नहीं हो सकती है। स्टार्ट अप इंडिया के साथ भी यही हुआ। ये योजना धड़ाम से गिर गई। करीब डेढ़ साल पहले एक सर्वे हुआ था जिसमें 33 हजार स्टार्टअप शुरु करने वालों से पूछा गया कि आखिर ये योजना फेल क्यों हो गई? उनमें से 80 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें स्टार्टअप इंडिया से कोई फायदा नहीं मिला। 50 प्रतिशत ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी लूट लेते हैं। नोटबंदी के फर्जीवाड़े की तरह यह फर्जीवाड़ा भी 2016 में ही शुरु हुआ था। 2019 तक सिर्फ 88 स्टार्टअप ही टैक्स लाभ लेने के काबिल बने। 130 करोड़ की आबादी वाले देश में मात्र 88 स्टार्ट उग सके। ये ऐतिहासिक आंकड़ा है।
4) मेक इन इंडिया:
यह भी महत्वाकांक्षी योजना थी। लेकिन जिस योजना का प्रतीक चिन्ह (Logo) ही चोरी से बना हो, वह योजना कितनी कामयाब होती? वही हुआ भी। अमिताभ कांत जैसे अधिकारियों की अगुवाई में यह योजना भी फेल हो गई। मेनुफेक्चरिंग सेक्टर का क्या हाल है यह तो बेरोजगारों की संख्या ही बता रही है। करोड़ों लोग सड़कों पर मारे-मारे फिर रहे हैं। कहीं कोई काम नहीं है।
और
5) इंक्रेडिबल इंडिया – ये बहुत बड़ा कैंपेन था। अमिताभ कांत ने बाद में इसी नाम से एक किताब भी लिखी है। लेकिन यह कितना कामयाब रहा इसका अंदाजा आप इसी बात से लगाइये कि विदेशी सैलानियों की संख्या के मामले में भारत हॉंगकॉंग और मकाऊ से भी पीछे है। थाईलैंड, जापान और चीन की बात तो रहने ही दीजिए। बावजूद इसके अमिताभ कांत ने अपने गुणगान में इंक्रेडिबल इंडिया नाम से किताब भी लिखी है। मैंने अपनी मेहनत की कमाई के कई सौ रुपये उस किताब पर बर्बाद किए। पढ़ने के बाद लगा कि यह कितना हल्का और फर्जी आदमी है।
अब आपको अंदाजा लग गया होगा कि अमिताभ कांत कितने पहुंचे हुए कलाकार हैं। एक के बाद एक विफलता के बाद भी वो कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते जा रहे हैं। देश को लगातार ठगने के बाद वो खुद बुलंदी पर हैं। उनकी इस बुलंदी की सिर्फ एक ही वजह है। वो वजह है कि अमिताभ कांत ब्यूरोक्रेसी के नरेंद्र मोदी हैं। ठीक उन्हीं की तरह ये भी झांसा देने में उस्ताद हैं। जुमले गढ़ने में माहिर हैं।
अमिताभ कांत ने नया जुमला गढ़ा है कि रेलवे के निजीकरण से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। किराया कम होगा। जनता को लाभ होगा। ऐसे ही जुमले गढ़ते गढ़ते ये सब मिल कर देश बेच देंगे। आने वाली पीढ़ियों के पास से सम्मान के साथ जीने के सभी अवसर छीन लेंगे। उन्हें दिहाड़ी मजदूर बना देंगे। कंपनियों का गुलाम बना देंगे।
अब यह आपको तय करना है कि आप खुद को और अपने बच्चों को गुलाम बनाना चाहते हैं या आजाद रखना चाहते हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि आप यह सोचने और समझने की स्थिति में हैं। जो व्यक्ति अपना भेजा धर्म के ठेकेदारों के आगे गिरवी रख चुका हो, वो सोचने-समझने की स्थिति में नहीं होता है। असल में वो मर चुका होता है।