-बद्री प्रसाद सिंह-
अलविदा दुर्वासा जी।
आज शाम उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजी (सेनि.) श्री रमेशचन्द्र दीक्षित जी का लखनऊ में बीमारी से स्वर्गवास हो गया। दीक्षित जी पुलिस में अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा, इमानदारी, स्पष्टवादिता,अनुशासन के कारण विख्यात थे लेकिन उससे भी अधिक अपने क्रोध के कारण दुर्वासा के नाम से जाने जाते थे।
मैं १९९१ में जब पीलीभीत में सिख विरोधी आतंकवाद अभियान का प्रभारी था तब उनके अधीन कार्य करने का अवसर मिला।वह आईजी बरेली जोन थे। सूर्यास्त के बाद क्षेत्र की सड़कें बीरान हो जाती थी, लेकिन दुर्वासा जी बगैर पूर्व सूचना कहीं भी उपस्थित हो जाकर हमें अचंभित कर देते थे।
जिले में हुई प्रत्येक आतंकी घटना पर वह पुलिस अधीक्षक सुलखान सिंह सर तथा मुझे पांच दस मिनट तक वायरलेस सेट पर लगातार बुरी तरह डांटते थे जिसे पूरा तराई सुनता था, फिर हमें बोलने का मौका देते थे। कभी कभी अधीनस्थों के सामने डांट खाने पर बड़ी कोफ्त होती थी और अपमान का घूंट पी जाते थे लेकिन उनकी डांट में पिता का प्यार, दुलार तथा स्नेह छिपा रहता था। बरेली जोन में वह सबसे अधिक सुलखान सर को मानते थे और सबसे अधिक डांटते भी उन्हीं को थे।
उनसे जुड़ी बहुत सी खट्टी-मीठी यादें हैं,क्या भूलू क्या याद करूं। १९९२ अगस्त में पीलीभीत के गजरौला क्षेत्र में आतंकियों द्वारा २९ लोगों की हत्या किए जाने के बाद डीजीपी श्री प्रकाश सिंह की पूरनपुर की वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में जब एक वरिष्ठ अधिकारी ने मेरी आलोचना की तो यही दुर्वासा मेरी प्रशंसा के पुल बांध कर उन्हें शांत करा दिया।उसके अगले दिन डीजीपी के मना करने के बाद भी ढलती उम्र में घने जंगल में हमारे साथ नौ किमी पैदल काम्बिंग कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया।
शाहजहांपुर सीमा के भीतर पीलीभीत पुलिस द्वारा मई १९९२ में दो आतंकियों की दिन में मुठभेड़ में मारने के एक मामले में FIR में मुठभेड़ का श्रेय शाहजहांपुर के SP तथा DIG बरेली रेंज ने ले लिया जिसकी शिकायत मैंने श्री दीक्षित जी से उनके कार्यालय में जाकर की। उन्होंने डीआईजी तथा SP को मेरे सामने फोन पर बहुत ही कड़े शब्दों में भर्त्सना की तथा उनको बीरता के पुलिस पदक से बंचित करा दिया, जिसके लिए उन्होंने बेइमानी की थी।
मुझे उनके डांट से नहीं अपितु बद्री बाबू बुलाने पर डर लगता था क्योंकि जब दिल से नाराज़ होते तो शालीनता से बात करते थे। जब उनका स्थानान्तरण बरेली से मेरठ जोन हुआ, मैं बरेली जाकर उनसे मिला और चलते समय श्रद्धावश उनका चरणस्पर्श करना चाहा तो उन्होंने प्रेम से समझाया कि मेरी टोपी पर अशोक स्तम्भ है जो राष्ट्रीय चिन्ह है इसे कभी भी झुकने न देना। उनकी यह सीख मैंने शेष सेवाकाल में याद रखी।
मैं पीलीभीत के अपनी नियुक्ति काल पर आतंकी गतिविधियों पर एक किताब लिख रहा था,जिसे दीक्षित सर को दिखला कर उनका आशीर्वाद भी लिया था लेकिन आलस्य वश पूरी नहीं कर सका।आज अपने इस आलस्य पर ग्लानि हो रही है।
दुर्वासा सर, आप हम सब को अकेले छोड़ कर क्यूं चले गए,आप हमें बहुत याद आयेंगे। अब उत्तर प्रदेश पुलिस में आप जैसा दूसरा नहीं आएगा।
विनम्र श्रद्धांजलि एवं शत् शत् नमन।
सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी बीपी सिंह की एफबी वॉल से।