चुनाव आयोग की सीमित शक्तियों पर विचार करेगा सुप्रीमकोर्ट, आचार संहिता के खिलाफ दिए गए बयानों को लेकर व्यक्त की कड़ी नाराजगी, मंगलवार को आयोग के प्रतिनिधि की कोर्ट में हाजिरी
उच्चतम न्यायालय चुनाव प्रचार के दौरान जाति और धर्म को आधार बना कर घृणा फैलाने वाली टिप्पणियों से निपटने संबंधी चुनाव आयोग की शक्तियों पर गौर करेगा। लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बसपा सुप्रीमो मायावती और अन्य नेताओं के आचार संहिता के खिलाफ दिए गए बयानों को लेकर उच्चतम न्यायालय ने कड़ी नाराजगी जताई है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में आयोग के प्रतिनिधि को मंगलवार को कोर्ट में हाजिर होने के लिए कहा है। जाति और धर्म को लेकर राजनेताओं और पार्टी प्रवक्ताओं के आपत्तिजनक बयानों पर राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई को लेकर जनहित याचिका दायर की गई है।
पीठ ने चुनाव के दौरान अपनी रैलियों में धार्मिक आधार पर वोट मांगने वाले नेताओं पर कार्रवाई न करने के लेकर चुनाव आयोग की सीमित शक्तियों को लेकर नाराजगी जताते हुये चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों से मंगलवार को कोर्ट में पेश होने को कहा है। उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह बात कही। इस याचिका में उन दलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी, जिनके नेता धर्म और जाति के आधार पर चुनाव में वोट मांगते हैं।
इस बीच लोकसभा चुनाव के बीच नेताओं के विवादित बयानों पर उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद अब चुनाव आयोग ने सख्त रुख अपनाया है। आयोग ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के चुनाव प्रचार पर 72 घंटे की रोक लगा दी है। वहीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती 48 घंटे प्रचार नहीं कर पाएंगी।लोकसभा चुनावों के साथ ही नेताओं की बदजुबानी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। चुनाव आयोग ने इसे लेकर अब सख्ती दिखाते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ और बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर कड़ी कार्रवाई कर दी है।
बसपा अध्यक्ष मायावती और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा धर्म के आधार पर वोट मांगने के मामले सामने आने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने चुनाव आयोग से पूछा कि ऐसी स्थिति में आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर क्या कार्रवाई की जाती है। आयोग ने बताया कि इस मामले में चुनाव आयोग की शक्तियां बहुत सीमित है। हम सिर्फ नोटिस जारी करके जवाब मांग सकते हैं. हमें किसी पार्टी के पहचान को रद्द करने या उम्मीदवार को अयोग्य ठहराने का अधिकार नहीं है। आयोग ने यह भी बताया कि मायावती को 12 अप्रैल तक जवाब देने को कहा गया था लेकिन उन्होंने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया। हम केवल निर्देश जारी कर सकते हैं और अगर बार बार उल्लंघन होता है तो शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
याचिकाकर्ता के वकील संजय हेगड़े से जब मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि क्या चुनाव आयोग सांप्रदायिक बयानबाजी के आधार पर वोट मांगने वालों के खिलाफ क्या सिर्फ इतनी ही कार्रवाई कर सकता है?इस पर हेगड़े ने कहा कि अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को कई सारी शक्तियां दी गई हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने आयोग के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि को निर्देश दिया कि शक्तियों पर विचार के दौरान कोर्ट में मौजूद रहें।
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से जाति और धर्म को लेकर नेता विवादित भाषण देते आ रहे हैं। उनके भाषणों में अली और बजरंग बली का नाम लेकर भी विवादित टिप्पणियां सुनी जा रही हैं। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव प्रचार के दौरान घृणा फैलाने वाली टिप्पणियों के मामले में चुनाव आयोग के प्रतिनिधि को तलब किया है।
गौरतलब है कि कि पिछले दिनों बसपा सुप्रीमो मायावती ने सहारनपुर के देवबंद रैली में मुस्लिमों से सपा-बसपा गठबंधन को वोट देने की अपील की थी। इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अगर कांग्रेस, सपा और बसपा को अली पर विश्वास है तो हमें भी बजरंग बली पर विश्वास है।
आयोग ने मांगा था जवाब
इसके बाद बीते गुरुवार को चुनाव आयोग ने दोनों नेताओं को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था। आयोग ने मायावती को चुनाव कोड के उल्लंघन का दोषी मानने के साथ ही सेक्शन 123 (3) के तहत जनप्रतिनिधि कानून 1951 के उल्लंघन का भी दोषी माना। इस कानून के तहत उम्मीदवार धार्मिक आधार पर मतदान की मांग नहीं कर सकते न मतदाताओं को धर्म के आधार पर मतदान के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। अपने जवाब में योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी मंशा गलत नहीं थी। वह भविष्य में इस तरह के बयान देने में सतर्कता बरतेंगे।
जनहित याचिका
हरप्रीत मनसुखानी नामक एक एनआरआई ने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर मांग की है कि उच्चतम न्यायालय के रिटायर्ड जज की अगुवाई में एक कमेटी बनाई जो कि पूरी चुनावी प्रक्रिया पर नजर रखे और चुनाव आयोग की भूमिका की भी जांच करे।इस पर उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था ।मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा था । सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता हरप्रीत मनसुखानी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने पीठ के समक्ष कहा था कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए। तब पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग इस मामले में अपना रुख कोर्ट को बताए। दरअसल हरप्रीत मनसुखानी ने याचिका दाखिल कर कहा है कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं के बयान चुनाव और जनमत को सबसे ज़्यादा प्रभावित करते हैं, लेकिन वो न तो जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत जवाबदेह हैं और ना ही चुनाव आचार संहिता के तहत। इसका मतलब ये है कि वो पार्टियों के लिए कोई भी बयान दे सकते हैं।
भ्रष्टाचार मुक्त चुनाव की क्षमता नहीं
याचिका के मुताबिक जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 में भ्रष्टाचार मुक्त चुनाव सुनिश्चित करने की पर्याप्त क्षमता नहीं है। तर्क दिया गया है कि राजनीतिक दलों के प्रवक्ता/मीडिया प्रतिनिधि/अन्य राजनेता जो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, वे टीवी चैनलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जाति या धर्म के आधार पर घृणास्पद भाषणों का उपयोग करते हैं और वे सभी कार्यों से आसानी से बच निकलते हैं। “चुनाव की शुद्धता के लिए भारतीय संविधान के तहत वादा किये गए धर्मनिर्रपेक्ष लोकतंत्र की अवधारणा एक लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए अनिवार्य है। यह चुनाव और अन्य विधायी निकायों को अस्वस्थ भ्रष्ट प्रथाओं से मुक्त रखने के लिए आवश्यक है।
इस प्रकरण पर वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टण्डन कहते हैं-
चुनाव आयोग मोदी पर कार्यवाही कब करेगा… चुनाव आयोग ने योगी आदित्यनाथ को 72 घंटे और मायावती को 48 घंटे के लिये चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी है. योगी के अली और बजरंग बली बयान पर और मायावती पर मुसलमानों को कांग्रेस को वोट न देने की अपील पर ये कार्यवाही हुई है. चुनाव आयोग को मोदी के भाषणों पर भी नज़र रख्नी चाहिये. लगभग हर भाषण में वो सेना को राजनीति में घसीट रहे हैं. नमो टीवी अभी भी चल रहा है और बीजेपी ने स्वीकार भी कर लिया कि ये टीवी चैनल उन्ही का है.
इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.
madan kumar tiwary
April 15, 2019 at 11:33 pm
एक कहावत है नामी बनिया का झांट बिकता है, वही है यह संजय हेगड़े 324 क्या है ? यह चुनाव आयोग को सिर्फ चुनाव सम्पन्न कराने का अधिकार देता है , इन गदहो को आप मेरे पास भेज दो इन्हें कान पकड़कर आईपीसी पढ़ाऊंगा तब समझेंगे कि धार्मिक आधार पर वैमनस्यता के लिये कितने प्रावधान है जिसके तहत आम आदमी भी केस कर सकता है । इन सुप्रीम कोर्ट वाले काबिलो की बकैती पढ़ पढ़कर कोफ्त होती है ।