अभिषेक श्रीवास्तव-
किसान संगठन इस बात को बार-बार कह रहे हैं कि केंद्र सरकार अंबानी और अडानी के लिए काम कर रही है। इसी समझदारी के चलते किसानों ने अंबानी के जिओ का बहिष्कार किया और टावर तोड़े। यहाँ तक कि बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में इनके दफ्तरों पर प्रदर्शन भी किया। जिओ के टावर तोड़े जाने के खिलाफ रिलायंस इंडस्ट्रीज़ कोर्ट में चली गई। कल अंबानी ने मीडिया में एक वक्तव्य भी जारी किया और खुद को अन्नदाता का हितैषी बताया है। उधर अडानी भी एक पन्ने का विज्ञापन जारी कर के स्पष्टीकरण दिया है।
जब किसान और अंबानी-अडानी अपनी-अपनी ओर से अपना-अपना काम कर ही रहे हैं, तो मैं सोचता हूँ कि सरकार बिना मतलब बीच में क्या कर रही है। बेहतर सवाल बल्कि ये होना चाहिए कि किसान संगठन सरकार से क्यों बात कर रहे हैं, जबकि इसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा? सभी जानते हैं कि नतीजा निकलना भी नहीं है। इससे आंदोलन में शामिल युवाओं का धैर्य जवाब दे रहा है। कल को युवा किसान अगर नेतृत्व की नाफरमानी कर के कोई आक्रामक कदम उठा लेते हैं तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? सरकार? या किसान नेतृत्व?
क्यों न किसान संगठन एक प्रेस वार्ता कर के सीधे सरकार से कह दें कि हमें आपसे बात नहीं करनी, अब आप सीधे अंबानी-अडानी से ही हमारी मीटिंग करवाओ। वैसे भी, समझदारी यही है कि सरकार बिचौलिया है, तो बिचौलिये को बातचीत का मध्यस्थ बनाने में क्या बुराई? अब सीधे किसानों को अंबानी-अडानी से बात कर के मामला फरिया लेना चाहिए क्योंकि सरकारी बातचीत कहीं पहुँच नहीं रही और इसका उल्टा असर हो रहा है।
सत्येंद्र पीएस-
किसान आंदोलन को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। तमाम आंदोलन देख चुके लोग यह कह रहे हैं कि उन्होंने इतना बड़ा आंदोलन पहली बार देखा है। सिंघु बार्डर की एकाध फोटो शोटो आती रहती है। एक यूपी-दिल्ली का गाजीपुर बॉर्डर है। एक टिकरी बॉर्डर है, दिल्ली से रोहतक जाने वाली।
रोहतक हाइवे पर 16 किलोमीटर लंबाई तक किसानों के तंबू लगे हैं। यही हाल सिंघु बार्डर का है। गाजीपुर बॉ़र्डर यानी एनएच-24 पर टेंट ही टेंट लगे हैं और इस ठंड में सड़कों पर किसान हैं। आप किसानों की संख्या का अनुमान लगाएं।
लुधियाना से आए ट्रैक्टर में गन्ने की पेराई की मशीन लगाए एक किसान का कहना है कि रोज वह 50 कुंतल गन्ने की पेराई करते हैं और किसानों को गन्ने का रस पिलाते हैं।
अब तो पंजाब, हरियाणा और यूपी से आने वाले किसान आकर लौट जा रहे हैं। उन्हें बैठने और धरना देने के लिए दूर दूर तक जगह नहीं मिल रही है। शायद यह सरकार चाहती है कि पूरा देश सड़क पर ही उतर आए।