Sanjaya Kumar Singh : घटिया और लचर है प्रधानमंत्री का मीडिया मैनेजमेंट… खादी एंड विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन की डायरी और कैलेंडर पर महात्मा गांधी की फोटो हटाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोटो लगाए जाने के सवाल पर भक्त मीडिया ने पता नहीं अधिकारियों की इच्छा या आदेश पर या अपने स्तर पर ही नया पैंतरा लिया है। और, इस मामले में प्रधानमंत्री की छवि को हो सकने वाले नुकसान को धोने की कोशिश है। तर्क वही कि फोटो के उपयोग से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमति नहीं ली गई थी। यहां, यह खबर जब पहली बार आई थी तो आधिकारिक तौर पर क्या कहा गया था, उल्लेखनीय है। इंडियन एक्सप्रेस की साइट पर मूल खबर के साथ पीएमओ की प्रतिक्रिया भी है और इसका उल्लेख शीर्षक में ही है, “विवाद अनावश्यक है”।
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पीटीआई के हवाले से 13 जनवरी को शाम 740 बजे की इस खबर में कहा गया है, The Prime Minister ‘s Office (PMO) said the controversy was “unnecessary” as “there is no rule in KVIC that it’s diary and calendar should have only Gandhiji’s photo.”
PMO sources said in the past also, there was no picture of Mahatma Gandhi on such KVIC material.
“In the calendars and diaries of 1996, 2002, 2005, 2011, 2012, 2013, 2016, there was no picture of Gandhi. So there is no question of Modi replacing Gandhiji’s picture,” the sources said.
“Those stoking the controversy over the issue should realize that during Congress rule of 50 years, the sale of khadi remained restricted to 2 per cent to 7 per cent but in last two years, the sale has seen an unprecedented jump of 34 per cent. This is because of PM’s efforts to popularise khadi,” they added.
The PMO said “Modi is an icon of the youth and the growing popularity of khadi in the world is testimony to this.”
The PMO said the KVIC diary and calendar has photographs of Modi distributing charkha among poor women, they said.
लगभग ऐसा ही बयान उसी दिन केवीआईसी के चेयरमैन के नाम से जारी किया गया है। बाद में एनडीटीवी के कार्यक्रम में भी श्री सक्सेना ऐसी ही बातें करते रहे। इसके बाद अब यह छापने, कहने या लिखने का क्या मतलब कि प्रधानमंत्री की अनुमति के बिना उनकी फोटो का इस्तेमाल किया गया? तमाम लोग इस निर्णय का बचाव कर चुके हैं। भक्तगण चाहे जो कहें, महात्मा गांधी की फोटो हटाकर प्रधानमंत्री की फोटो लगाना चापलूसी के अलावा कुछ और हो नहीं सकता। इसके समर्थन में कुछ तर्क ढूंढ़े और गढ़े भी जा सकते हैं। बात खत्म हो जाती और मामला ठंडा हो ही जाता। पर अब यह खबर पूरे मामले में प्रधानमंत्री के लचर मीडिया मैनेजमेंट की पोल खोल रही है। प्रधानमंत्री के स्तर पर ऐसी खबरें कोई उच्च अधिकारी यूं ही नहीं छपवाएगा। इकनोमिक टाइम्स की यह खबर आज की है और एक्सक्लूसिव के तौर पर दी गई है। किसी अनाम सूत्र से ऑफ दि रिकार्ड बातचीत के आधार पर ऐसी खबरें हिन्दी में क्षतिपूर्ति कही जाती हैं और बड़े पदों पर बैठे लोगों की भक्ति और चापलूसी में ही चलवाई जाती हैं। पर होती मीडिया मैनेजमेंट का हिस्सा ही है। इसमें सूचना तो है नहीं. जो तर्क दिया जा रहा है वह भी निराधार।
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प्रधानमंत्री कार्यालय की सेवा में दी गई यह खबर बहुत ही लचर है और इसमें अनाम शिखर के अधिकारी के हवाले से कहा गया है, “This is not the first instance of someone walking the extra mile to impress the PM or to show their association with the PM.” इससे विवाद बढ़ेगा ही घटेगा नहीं और इन तर्कों को कोई मानने से रहा। इस खबर से यह समझना मुश्किल नहीं है कि पीएम से करीबी दिखाने की कोशिश करने वाले का पूर्व में बचाव करने के बाद अब उसी को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की जा रही है और कोई भक्त होगा तो बन भी जाएगा या शहीद होना खुशी-खुशी स्वीकार कर लेगा। पर इससे यह भी साफ हो रहा है कि प्रधानमंत्री का मीडिया मैंनेजमेंट बहुत ही घटिया है। चर्चा है कि प्रधानमंत्री सारे निर्णय स्वंय लेते हैं और सलाहकारों की नहीं चलती है। ऐसे में उन्हें मान लेना चाहिए कि मीडिया मैनेजमेंट और राजनीति अलग-अलग चीजें हैं। मीडिया को दबाने, खरीदने धमकाने के आरोपों के बाद इस तरह की चूक उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी।
लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं. जनसत्ता अखबार में लंबे समय तक वरिष्ठ पद पर कार्यरत रहे. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.