Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

हम कौन से हिन्दू हैं- जलाए गए या दफ़नाए गए?

भास्कर गुहा नियोगी-

काशी। गंगा किनारे दफनाये गए हजारों की संख्या में शव पूछने लगे हैं हम कौन से हिन्दू हैं, जलाये गए या दफनाये गए? उनके इस सवाल से सत्ता मौन है और धर्माधिकारी मूर्छित। लेकिन सवाल तो प्रासंगिक है और जरूरी भी।

सत्ता हमेशा खुद को पाक-साफ बताती है भले उसकी वजह से अनगिनत लोग परलोक गमन कर जाये मौजूदा समय इसका सबसे बड़ा गवाह है।सन्दर्भ को दूसरी ओर लिए चलता हूं। रामायण में जटायु का अंतिम संस्कार करते हुए राम ने कहा था “मैं अभागा अपने पिता का अंतिम संस्कार नहीं कर पाया आपका अंतिम संस्कार कर के मुझे लग रहा है मैं अपने पिता का अंतिम संस्कार कर रहा हूं।”

राम की विशालता और करूणा को इससे समझा जा सकता है कि राम ने एक गिद्ध को भी पिता का र्दजा दिया लेकिन बेहिसाब संपत्ति के मालिक मंदिर और मठों में बैठे धर्माधिकारी अपने ही धर्मावलम्बीयों के मरने और फिर उन्हें दफनाते हुए देखकर भी अंधे बने हुए है। इन घोर अंसवेदन शील लोगो को क्षण भर के लिए यह महसूस नहीं हुआ कि मरने वाला भी उसी हिन्दू धर्म का है जिसके प्रतिनिधित्व का दावा करते हुए ये जब-तब कहते रहते है गर्व से कहो हम हिन्दू हैं। ये वही हिन्दू है जो हजारों की तादाद में गंगा किनारे दफनाये गये।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ये वही हिन्दू है जिनका निर्जीव शरीर गंगा में बह रहा है। क्या ये सारे अपने विधान के मुताबिक अंतिम संस्कार के अधिकारी नहीं थे? इनसे पूछिए तो जवाब मिलेगा “इनके कर्म ही ऐसे थे।”

ये वही लोग है जो जनता और सरकार दोनो से माल खींचते हैं। सरकार इन्हें तमाम सुविधाएं देती है इसलिए सरकार के खिलाफ इनकी जुबान नहीं खुलेगी और जनता छोटे से छोटे चढ़ावे से लेकर भारी-भरकम चढ़ावा चढ़ाती है।अकाल हो या बाढ़ या फिर कोई मारक आपदा इनकी सुख-समृद्धि में कोई कमी नहीं होती।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जनता के पैसों से साल भर में करोड़ों कमाने वाले मठ, मंदिर या धार्मिक ट्रस्ट़ो को ये अच्छी तरह पता है कि सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलना नहीं है चाहे वो कितना बड़ा अधर्म क्यों न करती रहे और रही बात जनता की तो तमाम तरह के हथकंडे जैइसे स्वर्ग-नर्क, पाप-पुण्य वगैरह तमाम हथकंडे अपनाकर जनमानस की भीड़ जुटा ही लेंगे। जरा सोचिए बेहिसाब लोग मरते रहे (सिलसिला जारी है।‌)

निजी अस्पतालों से लेकर श्मशान तक खुली लूट की दुकानों में वो लुटते रहे जिनका अपना उन्हें छोड़ गया। जेब खाली हो चुकी थी और अपनों के जाने का दर्द मन में गहरी टीस दे रहा था। खाली जेब लुटेरों की तिजोरी भरने में असमर्थ था सो अपनों को दफनाने लगा। इस तरह के हालात में क्या किसी मंदिर-मठ, धार्मिक ट्रस्ट ने अपने खजाने का मुंह खोला?

किसी ने कहा कि हम इन शवों के अंतिम संस्कार का जिम्मा लेते हैं। अकेले राम मंदिर ट्रस्ट् के पास ही न जाने कितनी अकूत संपत्ति है और भी मठ मंदिर है जिनकी कमाई का कोई हिसाब नहीं लेकिन इन्होंने इस मामले में खामोश रहकर ये सारे अधर्म के इस खेल को देख रहे हैं। इतना ही नहीं दो कदम पीछे हटकर राम नाम सत्य है के साथ निकली गई हजारों शवों को जमीन में दफ्न होने दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

क्या किसी मठ, मंदिर, अखाड़ा, धार्मिक ट्रस्ट ने यह कहने की हिम्मत नहीं दिखाई की घोर अधर्म हो रहा है। ये लोग राम मंदिर के नाम पर जन सामान्य से चंदा तो लेंगे लेकिन लेकिन राम नाम सत्य है कहकर अंतिम यात्रा पर निकले उसी जनसामान्य के दफनाने जाने पर मगर हम चुप रहेंगे की भूमिका में रहेंगे। ये लोग राम का मंदिर तो बनाएंगे लेकिन राम का अनुकरण कर किसी के अंतिम क्रिया में बतौर सहयोगी खड़े नहीं होंगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement