देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी हकीकत जानिए…
नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अप्रैल को दिया जलाने का अनुरोध किया है। ज्यादा अच्छा हो जो हम देश में स्वास्थ्य के इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करें ताकि टोने टोटके की जरूरत ही न पड़े। दिमाग में ज्ञान की बत्ती जलाना जरूरी है। इतने बड़े देश की इतनी बड़ी आबादी के लिए जो स्वास्थ्य सुविधा होनी चाहिए, वो बिलकुल भी नहीं है, ये एक कटु सत्य है। बाकी अखबार जब मोदी जी के गुणगान में लगे हैं तो टेलीग्राफ ने हेल्थ सेक्टर के बारे में बात कर सोचने को मजबूर किया है।
आज के द टेलीग्राफ अखबार में छपी लीड खबर देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की ज़मीनी हकीकत बयां कर रही है। जी.एस.मुदुर की बाइलाइन से छपी रिपोर्ट में लिखा है कि कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में सबसे आगे खड़े स्वास्थ्य कर्मियों के पास व्यक्तिगत सुरक्षा किट-पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) तक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। यही वजह है कि डॉक्टरों में भी यह संक्रमण तेजी से फैल रहा है। सरकार के ढुलमुल रवैये से स्वास्थ्य सेवा में जुटा समुदाय बेहद परेशान है। कोरोना से लड़ रहे डॉक्टरों, नर्सों और तमाम दूसरे सहयोगी कर्मचारियों में भी संक्रमण फैलने का खौफ बढ़ता ही जा रहा। वे ड्यूटी तो निभा रहे हैं मगर वे सभी यह सोचकर परेशान हैं कि उनकी वजह से उनका परिवार भी संक्रमित हो सकता है।
इस खबर की माने तो देश भर के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ के पास मास्क और आवश्यक किट की कमी होने की वजह से वे सभी कोरोना से संक्रमित होते जा रहे हैं। कुछ डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें नियमित रूप से नए मास्क नहीं मिल रहे हें। कोरोना से बचाने वाली कंप्लीट पीपीई किट सबको नहीं मिल पा रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, गृह मंत्रालय से भी सही आंकड़े न मिलने पर स्वास्थ्य सेवा समुदाय सोशल मीडिया और अपने संपर्कों से दस्तावेज इक्ट्ठा कर यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना ने चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कितने लोगों को संक्रमित किया है।
रिपोर्ट में एम्स के वरिष्ठ डाक्टर का कहना है कि जिन्हें कोरोना वायरस की ड्यूटी नहीं दी गयी थी ऐसे डॉक्टर भी कोरोना की गिरफ्त में हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल के चार डॉक्टरों और कुछ नर्सों ने अपना इस्तीफा भेजा था। उल्टा इन डाक्टरों को उत्तरी दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन की तरफ से सख्त कार्रवाई की सूचना भेज दी गयी। म्युनिसिपल की तरफ से भेजे गये संदेश में साफ कहा गया कि इन डाक्टरों और नर्सों के इस्तीफों को स्वीकार नहीं किया जायेगा और इनके नाम मेडिकल काउंसिल या नर्सिंग काउंसिल को भेज कर इनके खिलाफ अनशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी।
टेलीग्राफ की इस रिपोर्ट में नयी दिल्ली एम्स के रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के महासचिव श्रीनिवास राजकुमार के हवाले से बताया गया है कि पूरे देश में कोरोना वायरस से लड़ रहे डाक्टरों और नर्सों के पास भी पर्याप्त संसाधन नहीं हैं जिनसे वह खुद इस बीमारी से बच सकें। राजकुमार ने बताया कि मास्क और तमाम सुरक्षित संसाधनों की कमी की वजह से डॉक्टरों और नर्सों में ही नहीं स्वास्थ्य सेवा में जुटे सभी लोगों में डर का माहौल है।
पोस्टग्रेजुएकट इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी महेश देवनानी ने अपने ट्वीटर हैंडल पर देश भर में कोरोना वायरस से संक्रमित स्वास्थ्य समुदाय से जुड़े लोगों के बारे में तमाम जानकारियां इक्ट्ठा की हैं। इसमें दिल्ली, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस से संक्रमित डाक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्य कर्मचारियों की जानकारी मौजूद है।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ अस्पतालों में मुहैया किये गये सुरक्षा संसाधनों और मास्क की क्वालिटी इतनी खराब हैं कि इस्तेमाल करते वक्त ही वह खराब हो जा रहे। नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि स्वास्थ्य समुदाय नहीं चाहता कि इलाज कर रहे डाक्टर और नर्स खुद इस बीमारी से संक्रमित हो जायें। अगर ऐसा होता है तो वो जिन स्वास्थय कर्मियों के संपर्क में आएं उनका भी पता लगाना होगा। इस प्रकार से यह कड़ी बढ़ती ही जाएगी और हालात को संभालना काफी मुश्किल हो जाएगा।
टेलीग्राफ की इस खबर से आसानी से समझा जा सकता है कि कोरोना से जंग लड़ रहे डाक्टरों और दूसरे मेडिकल स्टाफ संसाधनों की कमी की वजह से इस वायरस की चपेट में आने का जोखिम उठा रहे हैं। मगर सरकार अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही कि स्वास्थ्य सुविधाओं में कहीं कोई कमी नहीं है।
कोलकाता की पत्रकार एसएस प्रिया का विश्लेषण.