जनपक्षधर पत्रकारों, लेखकों और एक्टिविस्टों को गिरफ्तार किए जाने के खिलाफ उठने लगी आवाजें…
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In a dangerous move for Indian democracy, several human rights activists have been taken into police custody.
Who are some of these alleged “conspirators” who have either been taken into custody or had their homes searched? Sudha Bhardwaj is an advocate and the national secretary for People’s Union for Civil Liberties (PUCL). Father Stan Swamy is an active campaigner against communalism in Jharkhand.
Arun Ferreira is an activist who has also written on issues such as casteism, communalism and economic inequality. Varavara Rao is a Marxist writer and teacher of Telugu literature. Gautam Navlakha is a civil rights activist, journalist and writer. Anand Teltumbde is a respected writer, civil rights activist and political analyst.
Their crimes? Insisting on human rights, writing, analysing, teaching, giving voice to dissent against injustice and inequality.
This too at a time when the investigation into the assassination of Gauri Lankesh, MM Kalburgi, Govind Pansare and Narendra Dabholkar has revealed bombs, guns, camps for arms training, hit lists and plans for what can rightly be called “criminal conspiracy” to use violence to kill, crush diversity and dissent, undo the Constitution, and the India it promises all of us.
We condemn this attempt to distract the public from this real conspiracy with a fabricated one. We condemn the crushing of dissent. We stand in solidarity with all those who speak for our fellow citizens’ rights.
Indian Cultural Forum
Lal Bahadur Singh : 1 जनवरी को FIR हुई, 6 महीने बाद जून में 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया और दावा किया गया कि प्रधानमंत्री की हत्या के प्लाट की ओर इशारा करने वाला दस्तावेज मिला है, फिर 3 महीने के लंबे अंतराल के बाद अब 5 साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है! प्रधानमंत्री की हत्या के संभावित साजिशकर्ताओं की गिरफ़्तारी में इतना विलम्ब ? वे बाहर थे, कोई अनहोनी घट जाती तो कौन जिम्मेदार होता ? इतनी धीमी जांच, आखिर यह किसकी साजिश है?
बहरहाल, क्या देश अब यह उम्मीद कर सकता है कि जल्द से जल्द ‘सच’ को उजागर करके इस मामले का पटाक्षेप कर दिया जायेगा अथवा अन्य ऐसे ही मामलों की तरह इसे ‘ज़िंदा’रखा जायेगा ताकि चुनाव तक काम आये? याद आता है, आपातकाल के बाद जब हम लोग इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पहुंचे तो हिंदी के प्रख्यात समालोचक प्रो0 रघुवंशजी को देख कर दंग रह गए, जो दोनों हाथों से विकलांग थे और इमरजेंसी में जेल में बंद किये गए थे- इस आरोप में कि वह इंदिरा गांधी की सत्ता को अस्थिर करने के लिए खंभे पर चढ़ कर तार काट रहे थे!
आजमगढ़ के तब के विख्यात वेस्ली इंटर कालेज में मेरे हाई स्कूल के सबसे प्रिय विज्ञान-गणित अध्यापक श्री विपिन बिहारी श्रीवास्तव, जिन्हें मैं अपने जीवन में मिला सबसे आदर्श अध्यापक मानता हूँ, इसलिए जेल में डाले गए थे कि वे इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने की साजिश कर रहे थे (संभवतः CIA के इशारे पर!)!
सुधा से कभी मुलाकात का संयोग तो नहीं हुआ, लेकिन वे छात्र जीवन से ही IIT, Kanpur के दोस्तों के माध्यम से हमारे बीच चर्चा का विषय रहती थीं – बेशक वे हमारी पीढ़ी की, (संभवतः हमारे बैच की भी), सबसे मेधावी और सबसे आदर्शवादी छात्रों में थीं जिन्होंने अपने कैरियर को लात मारकर जनसेवा का मार्ग चुना और हमारे समाज के आखिरी पायदान पर खड़े आदिवासी समाज के जीवन में बदलाव तथा मानवाधिकारों के लिए अपने को समर्पित कर दिया।
डा0 आनंद तेलतुंबड़े (Incidentally, डा0 आंबेडकर के वंशज ), जो निर्विवाद रूप से देश के सबसे प्रखर दलित बुद्धिजीवियों में हैं तथा गौतमजी जो गंभीर बुद्धिजीवी तथा लोकतांत्रिक अधिकार आंदोलन के नेता हैं, वरवर राव, जो सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि व लेखक हैं आदि के खिलाफ लगाये गए आरोपों ने इंदिरा राज में प्रो0 रघुवंश जैसों पर लगे आरोपों की याद ताजा कर दी है ।
यह अनायास नहीं कि चर्चित इतिहासकार प्रो0 राम चंद्र गुहा जैसे लोग तक जो माओवाद छोड़िए लेनिन-मार्क्स के विचारों के भी धुर विरोधी हैं, आज इन गिरफ्तारियों के खिलाफ खड़े हैं ।
ये गिरफ्तारियां लोकतंत्र के पक्ष में, आम जनता – किसानों, नौजवानों, महिलाओं, आदिवासियों-दलितों-कमजोर तबकों के पक्ष में खड़े हर शख्स को डरा देने के लिए है !
ये गिरफ्तारियां मोदी के अखंड कारपोरेट राज की निर्बाध लूट के खिलाफ खड़ी हर आवाज को डरा देने के लिए हैं! ये गिरफ्तारियां कथित आज़ादी गैंग-अर्बन नक्सल के ‘राष्ट्रविरोधी’ nexus का हौआ खड़ा करके पूरे देश को डराकर, बचाने वाले इकलौते ‘मसीहा’ की शरण में ठेलने का खेल है!
ये गिरफ्तारियां 2019 का एजेंडा सेट करने के लिए आखिरी ब्रह्मास्त्र हैं, क्योंकि और कोई तीर काम आता नहीं दिख रहा- न मंदिर, न ओबीसी आरक्षण-विभाजन, न असम का NRC, न पाकिस्तान उन्माद, न एक देश – एक चुनाव, न तीन तलाक!
दरअसल, गिरफ्तारियों से पैदा की जा रही यह सनसनी-यह उन्माद आखिरी desperate attempt है अपनी विराट विफलताओं से उबलते जन आक्रोश को दिग्भ्रमित करने का !
क्योंकि तानाशाह डर गया है- अपनी आसन्न पराजय की आहट से, इसलिए वह सबको डराकर अपने समर्थन के लिए ब्लैकमेल का खेल खेल रहा है!
यह वक्त है अंतिम निर्णायक चोट का!
Chandan Pandey : वरवर राव, सुधा भारद्वाज, वर्णन गोंजाल्विस, अरुण फेरेरा जैसों की गिरफ्तारी कँपा देने वाली है। गौतम नवलखा भी लगभग गिरफ्तार है। ये लोग भारत वर्ष के गिने चुने बेहतरीन लोगों में से होंगे। अपने अपने क्षेत्र में इनका काम बोलता है। और इन पर आरोप है कि प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रच रहे थे! यह सब कितना डरावना है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
यह सब खुलेआम हो रहा है। ब्रेख्त का कहा मानते हुए सरकार ने अपने लिए जनता चुन ली है। टाइम्स ऑफ इंडिया की साइट पर इस खबर के नीचे कमेंट्स करने वालों की सोच पर दुःख हो रहा है। हर तीसरा कमेंट यही है कि इन लोगों को मार डालना चाहिए। कहाँ से पढ़ लिख कर ये कमेंटबाज आये होंगे? उनके घर परिवार में क्या माहौल रहता होगा?
और पूना से आए वो पुलिस वाले? क्या वो भी ब्रिटिश राज में भारतीयों को दी गई पुलिसिया यातना से दुःखी होते होंगे? लगता है उनमें से एक अपने बच्चे को यह गृहकार्य दे कर आया होगा कि मेरे लौटने से पहले इस विषय पर निबंध लिखो और कंठस्थ करो, ब्रिटिश राज की पुलिस कितनी क्रूर थी!
बच्चे ने पूछा होगा: बाबा, आज से भी अधिक?
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