स्वतंत्रता दिवस नजदीक आ गया है और इसी के साथ समाचार पत्रों के मार्केटिंग विभाग में देशभक्ति का जज़्बा भी जाग उठा है। वे अब दिन रात अपने क्लाइंट्स को देशभक्ति का मतलब समझाने मे जुटे हुए है, जुटे भी क्यों ना?
पिछले साल का टारगेट जो रिवाइज्ड हो गया है। अपने टारगेट पूर्ति के लिए ये लोग किसी भी घटना या दुर्घटना को एक अवसर की तरह देखते है। इसका ताजा उदाहरण कलाम साहब के निधन पर कमर्शियल सप्लीमेंट पब्लिश कर देश के बड़े अखबार दे चुके हैं। बात करते है आने वाले त्यौहार स्वतंत्रता दिवस की। मार्केटिंग टीम ने कमर कस ली है, ग्रामीण और शहरी रिपोर्टर्स को टारगेट दे दिए गए हैँ।
टारगेट पूरा करने के लिए साम दाम दंड भेद चाहे जो करना पड़े करेंगे, आखिर पापी पेट का सवाल जो है। इनकी मज़बूरी तो आप समझ ही गए होंगे लेकिन मुझे विज्ञापनदाताओं की मज़बूरी आज तक समझ नहीं आयी। समाचार पत्र मे देशभक्ति का विज्ञापन प्रकाशित करवाने से देश का कुछ भला नहीं होने वाला है, यह बात एक छोटा बच्चा भी समझ सकता है। बेहतर तो यह होता की उस पैसे से किसी गरीब के बच्चे को स्कूल भेजा जाये ताकि देश का भविष्य शिक्षित हो सके। मगर ऐसा होगा नहीं क्योंकि इनमें से ज्यादातर लोग छपास रोग से ग्रस्त हैं तो किसी की दुःखती रग इन अखबारों के संवाददाताओ/संपादकों के हाथ मे है।
मुझे तरस आता है ऐसे लोगों पर जिन्होंने आज तक कभी झंडारोहण मे भाग नहीं लिया लेकिन समाचार पत्रों मे बड़े बड़े विज्ञापन प्रकाशित करवा अपनी देशभक्ति का सार्वजनिक रूप से ऐलान करते हैं। मैं यह सब क्यों लिख रहा हूँ, यह मुझे भी नहीं पता। लेकिन देशभक्ति के नाम पर होने वाला यह तमाशा अब बंद होना चाहिये। अगर मेरी बातों से किसी की देशभक्ति को ठेस पहुँची हो तो मुझे क्षमा करें ? लेकिन मैं भी इस आजाद देश का नागरिक हूँ और इस देश का संविधान मुझे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। जय हिन्द !
कुलदीप सिद्धू के एफबी वाल से
pankaj
August 13, 2015 at 10:41 am
अब वो दिन दूर नही जब अखबार वाले स्वतंत्रता दिवस का विज्ञापन माँगने सीमाओ पर जाया करेंगे ।और कुछ अखबार तो सीधे गृह मंत्रालय पहुँच जाया करेंगे ।