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‘इंडिया टुडे’ के नए अंक में नई-पुरानी पेंशन नीति पर दो काबिल पत्रकारों ने विस्तार से चर्चा की है!

Sagar D-

अटलजी ने अपने जीवन में अगर कोई सबसे गलत फैसला लिया तो वो सरकारी कर्मचारियों की पेंशन खत्म करने का फैसला था. उनके बाद ही कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने तो इस गलती को अवसर के रूप में लपक लिया.

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खैर बहुत से लोग हैं जो सरकारी नौकरों (अंग्रेजों ने उन्हें यही नाम दिया था) को अच्छी नजर से नहीं देखते. सरकारी बैंक, डाकघर, आरटीओ दफ्तर, थाने आदि में उनका रवैया, उनकी भाषा, उनका अहंकार ये सब कई बार आम जनता के लिए बेहद तकलीफदेह रहता है. फिर भी वे सरकारी सेवक हैं. उनकी जिन्दगी नियम कानूनों में बंधी हैं. मुझे लगता है ‌कि ये बात उन्हें बाजवक्त चिढ़चिढ़ा बना देती है.

लेकिन मेरा मानना है कि वे पेंशन के हकदार हैं क्योंकि उनके साथ उनका परिवार जुड़ा है. 30-35 साल निष्ठा से नौकरी के बाद रिटायर होने पर अगर उन्‍हें घर चलाने के लिए उनकी तनख्वाह की आधी पेंशन भी न मिले तो उनका क्या हाल होगा. कई दफा ये सवाल भी उन्हें भ्रष्ट बना देता है.

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सरकार जिसे नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) कहती है वह दरअसल पेंशन नहीं है. वह आपके वेतन से हर महीने कटने वाले पैसा का ब्याज भर है जिसे बजाज फाइनेंस, पीएनबी, यूटीआई जैसे फंड मैनेजर कंपनियां हर महीने किस्तों में लौटाती है. ये इतना कम बैठता है कि घर चलाना मुश्किल है. यानी पेंशन के दिन अब सचमुच लद हो चुके हैं. तो राजस्‍थान सरकार ने सरकारी कर्मचारियों का दर्द समझते हुए पुरानी पेंशन योजना बहाल करने का एलान कर दिया.

गहलोत ने बहुत अच्छी बात की जब कर्मचारियों का भविष्य ही सुरक्षित नहीं होगा तो वे राज्य में सुशासन कैसे ला पाएंगे? ये एक ऐसा तुरुप का पत्ता है जिसका कोई काट नहीं. राजस्‍थान के देखा देखी, हिमाचल, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्रप्रदेश जैसे राज्य में पुरानी पेंशन बहाल करने जा रहे हैं.

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यूपी में अखिलेश ये बात अपने घोषणापत्र में पहले ही कह चुके हैं. आप देखेंगे 2024 के लोकसभा चुनाव में यही सबसे बड़ा मुद्दा होगा. मोदीजी को केन्द्रीय स्तर पर इस पर पुनर्विचार करना ही पड़ेगा. इस आहट को महसूस करते हुए इंडिया टुडे ने इस अंक में इस पर विस्तार से चर्चा की है.

अगर आपको पेंशन की बारिकीयों को समझना है तो ये खास रपट आपको जरूर पढ़नी चाहिए. यूपी और राजस्‍थान के हमारे दो काबिल साथियों ने इस पर खासी मेहनत की है.

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