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सुख-दुख

भारत जैसी इकॉनमी व इसके ब्रॉड मार्केट में इन्वेस्ट करना सही है!

महक सिंह तरार-

सरकारी भक्त तो हैं ही गोबरयुक्त, मगर विपक्षी पत्रकार तक अपनी objectivity खो दे तो जनता का राम रखवाला है !! सरकार विरोधी होने का मतलब हर-बात, हर-समय एक आँख से देखना नही होता भाई साहबों।

इसको तीन एग्जाम्पल से समझे…..

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अ) चंद हफ़्ते पहले देखा था की विपक्षी ID वाले धुरंधर पत्रकारों से लेकर The Print तक एक तरफ़ा विदेशी मुद्रा भंडार घटने पर सरकार को घेर रहे थे।

-हाँ Jan पहले हफ़्ते में इसमें 1.3 बिलियन USD की कमी हुई थी मगर उसके बाद के तीन हफ़्तों में कितना बढ़ा वो बताना भूल गये। विदेशी मुद्रा भंडार 2014 से डबल पर है, या 2019 से डेढ़ गुणा है। 2020-2022 में सरकार ने विदेशी मुद्रा भंडार इकट्ठा भी खूब किया था। इसके अलावा जब Oct 2022 से Jan 3 तक ये लगातार गिर रहा था तो ठीक उसी दौरान RBI अपना गोल्ड रिज़र्व आज तक के सर्वश्रेष्ठ स्तर पर भी ले जा रहा था।

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ब) वैसे ही अड़ानी की भसड़ में इकॉनमी ख़त्म होने का दावा करना भी हास्यप्रद ही है। इकॉनमी का ब्रॉड रिफ़्लेक्टर निफ़्टी - 50 है जिसमें देश की 50 सबसे बेहतरीन कम्पनियाँ है। और शेयर मार्केट वाले सब लोग कोई शेयर सस्ता है या महंगा ये जानने के लिये PE रशिओ का आधारभूत महत्व जानते है।

-मैं 31 March 2021 के निफ़्टी PE से 31 March 2022 के निफ़्टी PE की तुलना कर रहा था तो जहां पिछले से पिछले मार्च का 14800 था पर उसका PE क़रीब 41 था जबकि पिछले मार्च का निफ़्टी 17500 होने के बावजूद उसका PE पिछले मार्च से क़रीब आधा था। मतलब मार्च 2021 में इन्वेस्टमेंट करने से दुगुना बेहतर था मार्च 2022 में इन्वेस्टमेंट करना।

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स) महंगाई दर निस्संदेह चिंताजनक स्तर पर है व सरकारें इसे आँकड़ों की जादूगरी करके कम दिखाने का प्रयास करती रहती है। मगर सार्वजनिक आँकड़े ही तुलना किए जा सकते है।

-2012 से 2023 तक दस साल के आँकड़े देखे तो एक दशक की महंगाई दर 6.04% है। जिसमें Nov 2013 की 12%+ व जून 2017 की डेढ़ प्रतिशत भी शामिल है। अब इस लाँग टर्म दस साला इन्फ्लेशन रेट के सामने 2020-2021-2022 की सालाना महंगाई दर 6-7% के बीच ही है। जबकि ग्लोबल इकॉनमी की महंगाई दर क़रीब 9% है। वहीं ऑस्ट्रेलिया (7%+), जर्मनी (8.7%), इंग्लैंड (10%+) आदि के अलावा तुर्की में 57% तो अर्जेंटीना में 99% महंगाई दर है। इन्फ्लेशन के साथ GDP का बढ़ना कुछ हद तक सही ही होता है।

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इसलिये जब मैं कहता हूँ की भारत जैसी इकॉनमी व इसके ब्रॉड मार्केट में इन्वेस्ट करना सही है तो मेरी लिस्ट वाले मुझे सरकार समर्थक समझ लेते है जबकि मैं कंपनियों की कमायी के सामने उनके प्रति शेयर क़ीमत के आधार पर अपनी बात रख रहा होता हूँ। कुछ एक साथियों से कुछ महीने पहले 10-12% गिरे मार्केट के समय बात कर रहा था तो एक मेजर साहब ने शायद किसी मठारु नामक व्यक्ति का रिफरेन्स देकर कहा कि मार्केट अभी आधे से नीचे भी आयेगी क्यूँकि सरकार का मिस मैनेजमेंट है। यही लोकेश भाई का स्टैंड था। मैने तब कहा था कि हम इन्वेस्टमेंट सरकार में नही कम्पनियों के धंधों में करते है। ऐसे ही क़रीब साल पहले बर्थडे बॉय प्रेमसिंह सियाग को अन्य जगहों के फण्ड इक्विटी में STP रूट से शिफ्ट करने को कहा था। मगर वो भी पहले सरकार की गोभी खोदने में ज़्यादा बिज़ी रहते है, वैसे भी पैसा काफ़ी है तो वो फ़िक्र कम करते है।

मेरी सब पढ़ने वालों से प्रार्थना है कि…

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-चीजों को तथ्यों के आलोक में देखे

-किसी पार्टी के एकतरफ़ा पक्षकार ना बने

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-जीवन में सब कुछ पैसा या राजनीति नहीं है

-मान्यताओं-आस्थाओं तथा नास्तिकों से बचे

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-इन्वेस्टमेंट में धारणाएँ व इमोशंस नहीं चलते है

-किसी ism के अधीन होकर अपने विज़न की objectivity ना खोये

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बाक़ी आपकी समझ के लिये चार्ट्स-

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