कश्यप किशोर मिश्रा-
…जिस सरकार की प्राथमिकता युद्धग्रस्त यूक्रेन से अपनें नागरिकों को सुरक्षित वापस लानें की बजाय बलात्कारी और हत्यारे रामरहीम को Z+ सुरक्षा देना हो, यदि उसके बाद भी आप उस सरकार के पक्ष में जयकारे लगा रहे हैं… तो भाई देश हमारा कूड़ादान यूँ ही नहीं बना है । जै हिंद रहेगा !
श्याम मीरा सिंह-
यूक्रेन में पढ़ने वाले हज़ारों भारतीय छात्र फँसे हुए हैं. आज यूक्रेन-रूस में युद्ध शुरू हो गया. इतने दिन मिले छात्रों को वापस लाने के, लेकिन सिर्फ़ 3 फ़्लाइट ही अरेंज की गईं. उसमें भी डबल किराया लिया गया. भारतीय बच्चे युद्ध में फँसे हुए हैं और मीडिया कह रही है-क्या मोदी की बात सुनेगा रूस और अमेरिका?
आपके विश्व प्रसिद्ध मोदी जी और आपकी प्राइवेट एयर इंडिया यूक्रेन में इतने दिनों में अब तक सिर्फ़ 1 फ़्लाइट पहुँचा सकी, वो भी 22 फ़रवरी को. उसके भी चार्जेस डबल (60K) लिए गए. एयर इंडिया इतने दिनों में बमुश्किल 250 छात्रों को ला पाई. बाक़ी हज़ारों बच्चे फँसे हुए हैं.
यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्र राज मौर्य ने मुझे फ़ोन पर बताया कि एयर इंडिया जो कभी सरकारी हुआ करती थी आज यूक्रेन से भारत आने के 60 हज़ार से भी अधिक वसूल रही है जबकि नॉर्मली केवल 24-25 हज़ार रुपए की टिकट होती है.
आज भी एयर इंडिया की एक फ़्लाइट आज़ भी schedule थी, लेकिन युद्ध शुरू हो गया तो रास्ते से ही लौट आई.
पंकज मिश्रा-
काटजू साब एक प्रोग्राम में बता रहे थे कि , ऐसे प्रधानमन्त्री चरण सिंह जो संसद में सिर्फ इस्तीफा ही देने जा सके थे उन्होंने भी अफगानिस्तान में रूसी सेना के प्रवेश करने पर रूसी राजदूत को तलब कर इसे अनुचित बताया था | और तब रूस एक महाशक्ति था | इसी तरह इंदिरा ने भी तमाम दोस्तियों के बावजूद ब्रेझनेव से प्राइवेट बातचीत मे उनके यह कहने पर कि अफगानिस्तान में क्या करें तो इंदिरा ने कहा जैसे आये थे वैसे वापस चले जाएं |
आज की नई जेनरेशन को ये अंदाज भी नही होगा कि कोल्ड war के दौर में अपने मित्र देशों को ऐसे दो टूक सुनाने के लिए किस लेवल की authority की जरूरत होती है |
और इंडिया के पास यह नैतिक बल आता कहाँ से था , वह आता था नेहरू के foreign policy में non aligned visionary approach से ….. NAM जो उस कोल्ड WAR के पीरियड में भी सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय BLOCK था | और उसके आर्किटेक्ट थे नेहरू ….
आज हाल ये है यूक्रेन में फंसे भारतीय बच्चों का फोन , उनकी SOS कॉल्स भी indian embassy रिसीव नही कर रही | इंडियन एम्बेसी न हुई बिजली विभाग का दफ्तर हो गई जो लाइट जाने पर फोन रिसीव करना बंद कर देती है | उन बच्चों की जेहनी कैफियत का सोच के दिल फटा जा रहा है |