अगर दल-बल के साथ गए यूपी के इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को घात लगाए आतंकवादी गौ रक्षा के नाम पे उनकी सर्विस रिवॉल्वर छीनकर मार सकते हैं तो फिर इस देश में कुछ भी हो सकता है।
इंस्पेक्टर रैंक के एक अफसर को लोग मौत के घाट उतार रहे हैं तो उनके साथ वाले मातहत पुलिस वाले क्या कर रहे थे? उन्होंने अपने अफसर की जान बचाने के लिए क्या जतन किए? क्या उनके पास हथियार नहीं थे, जो उन्होंने बचाव में गोली नहीं चलाई? अगर गोली नहीं चलाई तो फिर मौका ए वारदात से इतनी आसानी से कैसे भाग निकले और सिर्फ इंस्पेक्टर सुबोध सिंह मारे गए?
अगर खेतों में घात लगाए गौ आतंकवादियों का गुस्सा पुलिस के खिलाफ था, तो वो पूरी पुलिस टीम को मारते। उन पे भी हमला करते। ये क्या हुआ कि इंस्पेक्टर सुबोध के साथ गयी पूरी पुलिस टीम सकुशल वहां से भाग गई और गौ रक्षकों ने सिर्फ इंस्पेक्टर सुबोध को मारा!!
क्या इसका कारण ये था कि इंस्पेक्टर सुबोध ने दादरी के अखलाक कांड की ईमानदारी से जांच की थी, जिसमें भीड़ ने गौ मांस के शक में अखलाक की मॉब लिंचिंग कर दी थी!!
सो अगर दलबल के साथ गए इंस्पेक्टर को उनके ही पुलिस टीम के साथियों के सामने भीड़ मौत के घाट उतार देती है और मातहत पुलिस वाले चुपचाप वहां से खिसक लेते हैं तो फिर कल इस देश में पीएम से लेकर सीएम तक का जीवन खतरे में समझिये क्योकि तब भीड़ की शक्ल में आये आतंकवादी घेरकर नेताओं को भी मरेगी और उनकी सुरक्षा में तैनात SPG वाले या स्पेशल सर्विस के लोग वहां से भाग खड़े होंगे।
क्या ऐसा ही देश चाहते बनाना चाहते हैं हम?
लेखक नदीम एस. अख्तर वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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