प्रजातांत्रिक भारत का सिस्टम भी अजब—गजब है। देश की राजधानी दिल्ली की सरकार में एक मंत्री की डिग्री फेक होने के कारण उन्हें जेल में डाला गया है और पूछताछ जारी है तो दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश की सरकार है,जिसमें उसके एक मंत्री और के गुर्गों द्वारा एक पत्रकार को जिंदा जला दिया गया उसकी मौत हो गई आरोप साबित हैं सबकी आंखों के सामने फिर भी समाजवादी सरकार के नेता कहते हैं क्या एफआईआर दर्ज होने से कोई आरोपी साबित हो जाता है।
उत्तरप्रदेश वही समाजवादी जंगल है,जिसकी सरकार के नेता जब—तब रेप पर उलटे—सीधे बयान देते रहते हैं। कोई नेता कहता है जवानी में लडकों से गलती हो जाती है तो कोई तोता अपनी चोंच हिलाकर कहता है रेप—वेप कुछ नहीं होता,ये तो सहमति से होता है।
इस देश में सेंट्रल गवर्नमेंट से लेकर हर राज्य की सरकारों में कई मंत्री हैं,
जो अपराधी हैं फेक डिग्रियां लेकर बैठे हैं लेकिन उनका कुछ होता नहीं है। अगर होता भी है तो किसी एक पार्टी की सरकार आने के बाद बदला लेने के इरादे से । फिलहाल की परिस्थितियां तो ही इशारा करती हैं।
बहरहाल बात जांबाज पत्रकार जगेंद्र की। नेताओं की चारणभाटिता के लिये मीडिया में बहुत लोग हैं। एक सवाल समाजवादी जंगलराज के समाजवादी नेता माननीय राम गोपाल यादव से,क्या कोई इंसान मरते हुये भी झूठ बोल सकता है? जगेंद्र के आखिरी के समय के वीडियो देख—सुनकर दिल अंदर तक दहल जाता है और रोंगटे खडे हो जाते हैं,आग से जले जगेंद्र तकलीफ से भरी आवाज में बमुश्किल बोल पा रहे हैं और कह रहे हैं गिरफ्तार करना था कर लेते,मारना था मार लेते आग क्यों लगाई?
ये इंतेहा है उस दर्द की जो जगेंद्र ने झेला। जो इंसान बतौर पत्रकार सफेद चोले वालों के सामने नहीं झुका,आखिर में खुद को मिली इस तकलीफ से इस हद तक टूट गया कि उसने यह कह दिया गिरफ्तार करना था कर लेते,मारना था मार लेते।
एक सवाल पहले दिन से उव्द्लित किये हुये मन को झकझोर रहा है। जगेंद्र शायद इसलिये भी टूट गये जब उन्हें जलाया गया मीडिया से उन्हें वो सपोर्ट नहीं मिला जो मिलना चाहिए था? स्थानीय पत्रकार संगठनों ने भी वो नहीं किया जो करना चाहिये था? पत्रकार संगठन सिर्फ नाम के संगठन हैं ये कभी पत्रकारों के हक में खडे नहीं होते मेरा ऐसा मानना है? अब ये विश्वास पुख्ता हो गया।
जो विधवा विलाप अब किया जा रहा है जो आक्रोश अब जताया दिखाया जा रहा है यह तब होता जब जगेंद्र अस्पताल में थे तो शायद जगेंद्र इस दुनियां से इस तसल्ली से जाते कि नहीं कुछ बचा है इस दुनियां के लोगों में जो उनके परिवार के लिये इंसाफ मांगेगा। उनकी आत्मा को ज्यादा सुकून मिलता।
मेरी बातों से बहुत सारे लोग असहमत होंगे, परवाह नहीं। पर इस घटना ने बहुत अंदर तक हिला दिया है। ये लडाई सिर्फ उत्तरप्रदेश के पत्रकार की नहीं है। ये लडाई देश के हर उस पत्रकार की है जो सच लिख रहा है बेखौफ लिख रहा है। नहीं छापेगा कोई अखबार इतना बडा सच नहीं दिखायेगा कोई चैनल किसी सरकार के मंत्रियों की काली करतूतें तो सोशल मीडिया ही बचा, जहां एक नहीं ऐसे कई जगेंद्र हैं।
छत्तीसगढ के कांकेर जिले के कमल शर्मा,उनके कई साथी जिन्हें लगातार धमकियां मिलती रहती हैं। झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। कोई शक नहीं कि बस्तर में पत्रकार दोधारी तलवार पर चल रहे हैं। एक तरफ नक्सली एक तरफ सरकार। ये चर्चा विस्तार से फिर कभी। कमल जी से जब पहली बार मुलाकात हुई पत्रिका की नौकरी छोड चुके थे और मार भी खा चुके थे। अभी—भी बेखौफ हैं।
कभी ध्यान से देखिये कई पत्रकार हैं सोशल मीडिया पर जिनके पास अच्छे संस्थानों में नौकरी नहीं है,क्योंकि उनके पास दोगलेपन और दलाली का गुण नहीं है।
पहले भी लिखा, फिर लिखती हूं सरकारी सिस्टम पंगु ही नहीं अंधा—बहरा, गूंगा सब है। शक होता है इसका वजूद है भी कि नहीं? सोशल मीडिया पर सारे जमाने भर की फिक्र जताने वाले पत्रकार जगेंद्र के मामले में शांत हैं क्यों? हर तरफ उन पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं जो खुलकर बोल रहे हैं, लिख रहे हैं। यहां वे पत्रकार जरूर ध्यान दें जो नेताओं मंत्रियों के साथ फोटो खिंचाकर खुद को धन्य महसूस करते हुये पब्लिसिटी करते रहते हैं। उनसे एक गुजारिश अगले बार जब फोटो खिंचाने खडे हों तो उनसे ये जरूर कहें कि पत्रकारों की सुरक्षा खासकर निष्पक्ष लिखने वाले पत्रकारों की सुरक्षा के लिये भी कुछ करें। विधानसभाओं में, लोकसभा,राज्यसभाओं में। और कुछ नहीं कर सकते तो गलत के खिलाफ मुंह तो खोलो कम से कम। उस वोट की ही लाज रख लो जो इस देश की भोली जनता ने आंख बंदकर भरोसा करके तुम्हें दिया है।
जगेंद्र की आत्मा पुकार रही है, कह रही है। हर राज्य में दलाल हैं हर राज्य में बेबाक बेखौफ लिखने वाले पत्रकार हैं,हर राज्य में पत्रकार संगठन हैं। दुनिया के हक की बात करने वालो अपने हक के लिये आवाज बुलंद कब करोगे? खनन माफिया हर राज्य में हावी है इनकी राह में रोडा अटकाने वाला कोई भी हो ये किसी को नहीं छोडते।
आईपीएस अमिताभ ठाकुर को सेल्यूट उन्होंने वो किया जो स वक्त किसी भी पत्रकार संगठन को या स्थानीय पत्रकार को करना चाहिये था।
लेखिका ममता यादव से संपर्क : [email protected]
Mahipal Singh
June 15, 2015 at 10:48 am
I really appreciate your article.You have portray the exact situation and condition of journalist in U.P or i should say in overall India.Your thoughts on this topic are really commendable.And with the power of your words I am pretty sure that it will work for the betterment of the journalist.So keep up the great work going,me being a journalist i stand by your side.
-Mahipal singh([email protected])
Rakesh Yadav
June 16, 2015 at 10:12 am
ममता जी आपके लेख वास्तव में चोट करने वाले हैं। सवाल यह उठता है कि जिस तेजी से छोटे अखबार, मैगजिन में कम पढ़े-लिखे लोगों को भी पत्रकार बनाया जा रहा है और साथ ही बड़े अखबारों में जिस तरह पत्रकारों को शोषण हो रहा है यह बेहद चिंता का विषय है। ऐसे में पेट की भूख कहे या कम समय में अधिक पैसे कमाने की होड़ में लोग चाटुकारिता व प्रशासनिक अधिकारियों के तलवे चाट रहे है। जिससे देश के चौथे स्तम्भ की मर्यादा दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है।
Sanjay chankaya
June 16, 2015 at 7:21 pm
ममता जी आपकी बेवाक लेखनी को सिर झुकाकर शिद्दत से सेल्यूट। आपने सच्चाई को बडी बेवाकी और निर्भयता के साथ लिखते हुए जिन्दा लाश बने पत्रकारो में जान डालने का प्रयास किया है। काश हर कलमगारो की कलम इस तरह ही बेवाकी व र्निीायता के साथ चलती। तो किसी मंत्री और उसके पालतू कुत्तो की इतनी औकात नही कि वह किसी पत्रकार को उगली दिखा सके। अब भी मौका है काश आपकी लेखनी से मंत्रियों के साथ फज्ञेटो खिचवाकर धन्य होने वाले हमारे कलमगार भाईयो की आत्मा जागृत हो जाए……………।