Deepak Sharma : दलित कह रहे हैं ब्राह्मणवाद खत्म होना चाहिए. और बहन मायावती पंडित सतीश चन्द्र मिश्रा को पार्टी के चुनाव प्रभार की बागडोर सौंप रही हैं. भक्त कह रहे हैं मुसलमान बीफ से परहेज करें वरना हिसाब होगा. उधर मोदी जी अरब के बीचोंबीच अबु धाबी में मंदिर निर्माण कर रहे हैं. कन्हैया मज़दूर की लड़ाई लड़ना चाहता है और दूसरी ओर कामरेड जावेद अख्तर जेट एयरवेज की डायरेक्टरशिप लेकर पूँजीवाद का पूरा मज़ा ले रहे हैं.
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अकादमिक संस्थानों में संघ के घुसपैठियों का विरोध, देशभर में ‘join The Question March’
भोपाल : यहां के संगठनों, नागरिकों, सांस्कृतिक-मीडियाकर्मी, विद्यार्थियों द्वारा पिछले दिनो भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान “FTII” पुणे के समर्थन में “Join The Question March” का आयोजन किया। यह विरोध प्रदर्शन भोपाल के बोर्ड आफिस चैराहे पर हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। गौरतलब है कि हाल ही में सरकार द्वारा भारतीय फिल्म …
आपातकाल की 40वीं बरसी पर कुछ विचारणीय सवाल
इस 25 जून की आधी रात को आपातकाल की 40वीं बरसी पर आपातकाल और उस अवधि में हुए दमन-उत्पीड़न और असहमति के स्वरों और शब्दों को दबाने के प्रयासों को न सिर्फ याद रखने बल्कि उनके प्रति चौकस रहने की भी जरूरत है ताकि देश और देशवाशियों को दोबारा वैसे काले दिनों का सामना नहीं करना पड़े और भविष्य में भी कोई सत्तारूढ़ दल और उसका नेता वैसी हरकत की हिमाकत नहीं कर सके. दरअसल, आपातकाल एक खास तरह की राजनीतिक संस्कृति और प्रवृत्ति का परिचायक था. जिसे लागू तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था लेकिन बाद के दिनों-वर्षों में और आज भी वह एकाधिकारवादी प्रवृत्ति कमोबेस सभी राजनीतिक दलों और नेताओं में देखने को मिलती रही है. एक तरह देखें तो देश आज एक अघोषित आपातकाल की ओर ही बढ़ रहा है जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ी दिख रही है. भाजपा के वरिष्ठ और बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी ने हमारी मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में ही इन प्रवृत्तियों के मौजूद रहने और आपातकाल के भविष्य में भी लागू किये जाने की आशंकाएं बरकार रहने का संकेत देकर इस चर्चा को और भी मौजूं बना दिया है.
जगेंद्र की मौत से सुलगते सवाल : दुनिया के हक की बात करने वालो अपने हक के लिये आवाज बुलंद कब करोगे?
प्रजातांत्रिक भारत का सिस्टम भी अजब—गजब है। देश की राजधानी दिल्ली की सरकार में एक मंत्री की डिग्री फेक होने के कारण उन्हें जेल में डाला गया है और पूछताछ जारी है तो दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश की सरकार है,जिसमें उसके एक मंत्री और के गुर्गों द्वारा एक पत्रकार को जिंदा जला दिया गया उसकी मौत हो गई आरोप साबित हैं सबकी आंखों के सामने फिर भी समाजवादी सरकार के नेता कहते हैं क्या एफआईआर दर्ज होने से कोई आरोपी साबित हो जाता है।
190 वर्ष, 30 मई, 30 प्रश्न : पत्रकारिता का ये प्रश्न-काल तो नहीं !
पूरा मई माह जैसे तरह तरह के आजादी के आंदोलनों की याद दिलाने के लिए आता है। यही महीना मजदूर दिवस का, जब काम के घंटे घटाने के लिए मेहनतकशों को शहीद होना पड़ा था। सन 1857 में इसी महीने की 10 तारीख को देश में पहला सशस्त्र स्वातंत्र्य युद्ध हुआ था। सन् 1993 में यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में इसी माह की ‘3 मई’ को ‘अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ घोषित किया गया था और आज इसी माह की 30वीं तिथि को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज 190वां पत्रकारिता दिवस है। 30 मई को पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने सन् 1826 में पहले हिन्दी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का बंगाल से प्रकाशन आरम्भ किया था। पर्याप्त धन न होने के कारण उन्हें बाद में इस अखबार को बंद करना पड़ा था।
बंद होते न्यूज चैनलों और हजारों पत्रकारों की बेरोजगारी के मसले को प्रहलाद सिंह पटेल ने लोकसभा में उठाया
लोकसभा में दमोह से सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल ने पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया. ये सवाल मीडिया जगत से जुड़ा था. प्रह्लाद सिंह पटेल ने उन न्यूज चैनलों का नाम लिया जो बंद हो गए. इनसे हजारों बेरोजगार पत्रकारों के परिवारों के सामने आए संकट का जिक्र किया. साथ ही इस पूरे मसले में कानून की लाचारी के बारे में बताया. प्रह्लाद सिंह पटेल का पूरा सवाल, पूरा संबोधन ये है….