दो से चार अप्रैल तक जयपुर में हो रहे मीडिया शिक्षकों के महा सम्मेलन को सार्थक बनाने के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय के संचार केंद्र अध्यक्ष संजीव भानावत को इन विंदुओं पर भी ध्यान देना चाहिए और मीडिया के भविष्य और भविष्य की मीडिया, मीडिया शिक्षा का स्तर, पत्रकारिता के नाम पर व्यवसाय, पत्रकारिता के नाम काला पीला काम समेत मीडिया में आ रहे छात्रों के स्तर पर भी गंभीर चर्चा कराते हुए इसे सार्थक बनाना चाहिए।
सम्मेलन में परम्परागत मीडिया के क्षय और प्रिंट मीडिया के 2043 तक खत्म होने या मरने की चिंता पर सारगर्भित विचार सामने आने चाहिए। पश्चिमी देशों में मीडिया के हालात पर भी एशिया और भारत से तुलना जरूरी है। मीडिया शिक्षा में बुनियादी परिवर्तन, प्रशिक्षित गुरूओं की कमी, विभागों, हेड अॉफडिपार्टमेंट पर भी बहस की जरूरत हो सकती है। बगैर किसी तैयारी के तमाम विवि द्वारा पत्रकारिता की पढाई और इसमें व्याप्त कमी को भी मुद्दा बनाया जा सकता है। मेरा निवेदन है कि हर सत्र के कवरेज के लिए पांच -पांच लडकों का एक समूह आयोजन से पहले ही गठित करें, जो एक सत्र की रिपोर्ट को फौरन लिखकर वेबसाईट, ब्लॉग, फेसबुक, गूगल प्लस समेत मीडिया के अन्य साधनों पर फटाफट शेयर करे। कुछ लड़को को लगाया जाए, जो एक परिचर्चा सी आयोजित करें, जिसमें बाहर से आए ज्यादातर मीडिया गुरुओं से आज के मीडिया या मीडिया की दशा दिशा पर विचार लेकर परिचर्चा को फेसबुक और ब्लॉग के माध्यम से चर्चाओं में लाया जा सके। मेरे ख्याल से तीन चार समूह बनाकर पूरी कवरेज को एक र्कोजेक्ट की तरह दें, जिसमें रोजाना की रपट को एक सत्र समाप्त होने के बाद समय की सीमा दें, अलबत्ता बाद में रिपोर्ट में संशोधन का अधिकार भी छात्रों को दें।
इतने बडे़ आयोजन की गूंज महीनों तक हर जगह हो, तभी लाभ और कार्यक्रम की सफलता है। फिर पूरे आयोजन के सभी सत्रवार रिपोर्ट को एक जगह डाला जाए ताकि कोई पूरे आयोजन को पढकर इसकी महत्ता समझ सके। एक सत्र छात्रों का भी रखें, जो इन तमाम महागुरूओं के समक्ष अपनी जरूरत अपनी आवश्यकता और क्या होना चाहिए पर जोर दे सके ताकि गुरूदेव को भी छात्रों की मांग का पत्ता लगे। फिर एक सत्र खान-पान, ब्यूटी-श्रृंगार और फोटो सत्र का भी रखें तो किसी को कोई आपति नहीं होगी।
एएसबीमासइंडिया से साभार