ओम थानवी के जनसत्ता अखबार से रिटायर होने के बाद चंडीगढ़ से आए नए संपादक मुकेश भारद्वाज की करतूतें इन दिनों चर्चा का विषय है. अखबार को आधुनिक बनाने के चक्कर में न तो अखबार की पुरानी पहचान साख चरित्र बचा पा रहे और नया कुछ बेहतर करने के चक्कर में दूसरे अखबारों से आगे निकल पा रहे. इसी को कहते हैं न घर का न घाट का. मुकेश भारद्वाज ने पुराने सारे स्तंभकारों के कालम एक एक कर बंद करना शुरू कर दिया. सबको बताया गया कि अखबार का पुनर्गठन किया जा रहा है, री-लांच हो रहा है, इसलिए कालम बंद करने पड़ रहे हैं. लोगों ने इशारे को समझा और कालम लिखना बंद कर दिया.
लेकिन अशोक वाजपेयी के मामले में तो हद हो गई. ये लोग न तो अशोक वाजपेयी को साफ साफ कह सके कि आप लिखना बंद कर दीजिए और न ही छपने के लिए आए मैटर को छाप सके. बहाना बना दिया कि मैटर खो गया, मिल नहीं रहा है. अंदरखाने से जुड़े कई लोगों का कहना है कि अशोक वाजपेयी ने अपने कालम के लिए जो मैटर भेजा, बाकायदा उसकी रिसीविंग है और उसे न्यूज रूम में छपने के लिए आगे बढ़ाया गया पर ऐन मौके पर रोक दिया गया. इस बारे में जब अशोक वाजपेयी ने जब जनसत्ता अखबार वालों से संपर्क किया तो उन लोगों ने यही बहाना बनाया कि आपके कालम का मैटर खो गया है और इन दिनों हम सब लोग अखबार के पुनर्गठन में लगे हैं. अशोक वाजपेयी ने इस हरकत के जवाब में एक पत्र लिखा है, जिसे नीचे प्रकाशित किया जा रहा है.