वरिष्ठ पत्रकार एवं आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रिय सचिव कृष्णमोहन झा ने आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. विक्रम राव को पत्र लिखकर आईना दिखा दिया है. झा ने राव पर कई किस्म के आरोप लगाए हैं. श्री झा द्वारा राव को लिखे गए लंबे पत्र का कुछ अंश नीचे प्रकाशित किया जा रहा है…
प्रति,
श्री के. विक्रमराव
राष्ट्रीय अध्यक्ष
आईएफडब्ल्यूजे
देश के पत्रकारों एवं गैर पत्रकार समाचार कर्मियों के सबसे बड़े संगठन ‘इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्टस’ का मैं पिछले डेढ़ दशकों से न केवल सक्रिय सदस्य रहा हूं बल्कि संगठन की मध्यप्रदेश इकाई का अध्यक्ष एवं संगठन के राष्ट्रीय सचिव के पद की जिम्मेदारी निर्वहन करने का सौभाग्य भी अर्जित कर चुका हूं। एक प्रखर पत्रकार और अद्भूत नेतृत्व क्षमता के धनी अध्यक्ष के रूप में आपके विशिष्ट गुणों का मैं कभी इस हद तक प्रशंसक बन गया था कि मुझ पर व्यक्ति पूजा के आरोप भी चस्पा कर दिए गए, लेकिन मैं तो मानों अपने पेशे में आपको ऐसा आराध्य देव बना चुका था कि मैंने उन आरोपों की तनिक भी परवाह नहीं की और सदैव प्राणप्रण से इस चिंता में डूबा रहा कि मेरे मन मंदिर में स्थापित मेरे इस आराध्य की प्रतिभा को कोई खंडित न कर पाए। परंतु आज स्थिति पूरी तरह बदल चुकी हैं। न केवल मेरे आराध्य की मूर्ति खंडित हो चुकी है बल्कि आपके प्रति मेरा विश्वास भी खंडित हो चुका है।
भले ही पिछले तीन दशकों में संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में आपको कहीं से कोई चुनौती न मिली हो परंतु पिछले कुछ माहों से आपके खिलाफ जो सनसनी खेज आरोप लगाए जा रहे हैं उनकी उपेक्षा कर पाना अब मेरे लिए संभव नहीं रह गया है। मुझे आश्चर्य केवल इस बात का है कि आपकी प्रतिष्ठा को तार तार कर देने वाले इन आरोपों पर आपने अभी तक कोई स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझा है। ऐसा प्रतीत होता है कि आप इन आरोपों के चक्रव्यूह में इस तरह घिर चुके है कि उसके घेरे से बाहर निकल पाने की सामर्थ आपके अंदर शेष नहीं बची है। आपका मौन क्या इन गंभीर आरोपों की स्वीकारोक्ति का संकेत नहीं देता।
आप पर पिछले कुछ माहों से आरोप लगाए जा रहे है वे निसंदेह इतनी गंभीर प्रवृति के हैं कि उनसे विचलित होकर तो कोई भी निष्कलंक छवि वाला श्रमिक नेता अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश कर देता परंतु आपके व्यवहार से कतई ऐसा प्रतीत नहीं होता कि आप दूध का दूध और पानी का पानी कर पाने का साहस दिखा पाएंगे। आखिर आप यह साबित करने में कोई दिलचस्पी क्यों नहीं ले रहे हैं कि दाल में कही कुछ काला नहीं है। आपकी सोची समझी चुप्पी से केवल एक ही ध्वनि निकलती है कि आपके अपने ऊपर लगने वाले नाना प्रकार के आरोपों से कोई इंकार इसलिए नहीं है क्योंकि आप आईएफडब्ल्यूजे के अध्यक्ष की कुर्सी पर हर हाल में आजीवन काबिज बने रहना चाहते है।
इतने वर्षों तक अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज रहने से आपके अंदर जो कुर्सी मोह पनप चुका है उससे मुक्त होने की इच्छा अगर उम्र के इस पड़ाव में भी आपके पास नहीं है तो क्या यह मान लिया जाए कि आपने आईएफडब्ल्यूजे रूपी इस विशाल वटवृक्ष का नामोनिशान मिटा कर ही उसके अध्यक्ष की कुर्सी छोडऩे की ठान रखी है जिसे कभी आपके पूज्य पिताजी एवं स्वनामधन्य पत्रकार स्व. श्री चेलापति राव सहित मूर्धन्य पत्रकारों ने अपने खून पसीने से सींचकर इसकी नींव रखी थी। इन्होंने तो कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उनके उत्तराधिकारी के रूप में आप इस वृहद संगठन को अपने व्यक्तिगत स्वामित्व वाली संस्था का रूप देने में कोई संकोच नहीं करेंगे।
क्या यह सही नहीं है कि आप संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अधिनायकवादी शैली को ही तरजीह दे रहे है। आप इस सस्था के विभिन्न केन्द्रीय एवं प्रदेश स्तरीय पदाधिकारियों को अपने मोहरों के रूप में इस्तेमाल करना चाहते है और जिसने भी आपकों मोहरा बनने से इंकार कर दिया उसे तत्काल प्रभाव से पदमुक्त करने में आपने कोई देर नहीं की। आपके लिए उस समय अपना अहंकार सर्वोपरि था संस्था के हित आपके लिए गौण हो गए। आपने कभी यह जानने की जरूरत ही नहीं समझी की जिसे आप संगठन में किसी बड़े पद की जिम्मेदारी सौंप रहे है उसके पास उस पद की जिम्मेदारियों के निर्वहन की क्षमता योग्यता और अनुभव है की अथवा नहीं। दरअसल आप तो यसमेन चाहते थे और जिसने भी यसमेन बनने से इंकार कर दिया वह आपका कोपभाजन बन बैठा।
अत्यंत कठिन परिस्थितियों में संगठन के जिन कर्मठ पदाधिकारियों एवं नेताओं ने आपकी प्रतिष्ठा को तार तार होने से बचाया उन्हें भी आपने संगठन के सम्मेलनों में अपमानित करने में कोई संकोच नहीं किया। मैं अत्यंत विनम्रता पूर्वक यह सगल आपसे पूछना चाहता हूं कि हाल में ही मथुरा में संपन्न हुई आईएफडब्ल्यूजे की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राष्ट्रीय महासचिव श्री परमानंद पाण्डे के साथ जो बदसलूकी की गई क्या वह पूर्व नियोजित घटना नहीं थी। अब तक संगठन की ओर से लड़ी जाने वाली हर लड़ाई में हर कदम पर आपको कंधे से कंधा मिलाकर साथ देने वाले परमानंद पाण्डे क्या आज आपकी नजरों में इसलिए खटकने लगे है क्योंकि वे संगठन के उन पदाधिकारियों का साथ देने का साहस दिखा रहे है जो आपकी अधिनायकवादी कार्यशैली के विरूद्ध आवाज बुलंद कर रहे हैं। संगठन के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में श्री परमान्द पाण्डे द्वारा की गई स्तुत्य सेवाओं के प्रति तिरस्कार का यह भाव क्या प्रदर्शित नहीं करता कि आप संगठन में किसी और कामरेड का कद ऊंचा होते हुए नहीं देख सकते।
मैं यह समझ पाने में असमर्थ हूं कि आपके पास आखिर भय के उस दायरे से बाहर निकलने की इच्छाशक्ति क्यों नहीं है जो संगठन की युवा शक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि आप संगठन को तब तक ही जीवित रखना चाहते हैं जब तक कि इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी आपके कब्जे में है। इस पत्र के माध्यम से मैं आपसे यह मांग करना चाहता हूं कि मेरे हस्ताक्षर के बिना मेरे नाम से जारी उक्त कथित पत्र के पीछे किसकी साजिश है उसका पता लगाने के लिए संगठन की ओर से सभी आवश्यक कार्रवाई की जाए। निसंदेह हेमन्त तविारी के साथ मेरे वर्षों पुराने मैत्रीपूर्ण संबंधों में दरार डालने का ऐसा घृणित प्रयास है जिसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है।
आपके विरूद्ध लग रहे आरोपों की फेहरिस्त इतनी लंबी हो चुकी है कि इस छोटे से पत्र में उन सबका जिक्र कर पाना ही संभव नहीं है और उन गंभीर प्रवृति के आरोपों का खंडन करने के लिए कोई सर्व स्वीकार्य स्पष्टीकरण देने का नैतिक साहस अगर आप नहीं दिखा रहे है तो इसका एकमात्र संदेश यही है कि आपने इन्हें स्वीकार कर लिया है। अगर बात केवल आपकी अधिनायकवादी कार्यशैली तक ही सीमित होती तो भी उसका कोई औचित्य सिद्ध करने का आधार आप खोज सकते थे परंतु आपके विरूद्ध जो आर्थिक कदाचरण के इतने गंभीर आरोप सामने आ चुके है उन्हें देखकर तो पूरे संगठन का सिर ही शर्म से झुक जाएगा कि इतनी हेराफेरी करने वाले एक वयोवृद्ध कामरेड आज संगठन के सिरमौर बने हुए हैं।
हवाई यात्राओं के बिलों में हेराफेरी, संगठन के सम्मेलनों के लिए प्रतिनिधियों से एकत्र की गई प्रतिनिधि शुल्क की समूची राशि को एक समानान्तर निजी खाते में जमा करने के आरोप भी आपको अगर मानसिक पीड़ा नहीं पहुंचाते तो सचमुच ही आश्चर्य का विषय है। क्या आप पर लगने वाले इन आरोपों की सत्यता को आप झुठलाने की स्थिति में हैं कि जब भी आईएफडब्ल्यूजे का कही कोई सम्मेलन आयोजित किया गया तो उसके आयोजन पर आने वाला समस्त आर्थिक भार वहन करने की जिम्मेदारी आपने स्थानीय इकाइयों पर डाल दी और प्रतिनिधि शुल्क के तौर पर जमा हुई भारी भरकम राशि आप समेटकर लखनऊ ले गए और उसका आपने संगठन के हित में कहा उपयोग किया यह कोई नहीं जनता क्योंकि आपने तो खुद को इतना ताकतवर बना रखा था कि कोई आपसे पूछने की जुर्रत ही न कर सके।
संगठन के नाम विभिन्न राजनेताओं व सत्ताधारियों से जो दान प्राप्त किया गया उसके हिसाब किताब में पारदर्शिता रखने की आपने कभी जरूरत ही महसूस नहीं कि क्योंकि आप ने तो सदैव संगठन को स्वत्वाधिकारी माना है। एक प्रखर पत्रकार के रूप में अपने सदैव सार्वजनिक जीवन में शुचिता का पाठ राजनेताओं व सत्ताधिकारियों को पढ़ाया है और जब भी कोई भ्रष्टाचार का मामला सामने आया तो अपने जिम्मेदार लोगों पर करारी चोट भी की है परन्तु आपके सिद्धांत, आदर्श और नैतिकता की बड़ी बड़ी बाते क्या दूसरों के लिए भर थी आपने स्व. प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के शासनकाल में उनकी तानाशाही के विरोध में 18 माह कारावास में बिताएं परंतु अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया परंतु आज जब आप आईएफडब्ल्यूजे को तानाशाह की भांति संचालित कर रहे हैं तो आप की आत्मा क्यों नहीं कचोटती।
क्रिकेट के धुरंधर खिलाढ़ी भी अपने खेल जीवन में तब ही सन्यास ले लेने को उचित मानते है जबकि वे यह मान चुकते हैं कि आगे उत्कृष्ट खेल का प्रदर्शन कर पाना उनके लिए संभव नहीं होगा। निसंदेह जो खिलाड़ी उचित समय पर फैसला करते है उन्हें सम्मान पूर्वक विदाई पाने का सौभाग्य मिलता है परन्तु आप तो अपने गौरवशाली अतीत को अपने उस वर्तमान की काली छाया से आच्छादित करने में हाथ ले रहे हैं जिसमें आपकी उपलब्धियों के नाम पर आपने केवल आरोप ही आरोप संग्रहित कर रखे हैं। मैं नहीं जानता कि इसके पीछे आपकी कोई मजबूरी है अथवा विदाई की इस बेला में भी सम्मान अर्जित करने की आपकी कोई इच्छा नहीं है। काश आपने हिन्दी के मूर्धन्य कवि स्व. श्री भवानी प्रसाद की इन पक्तियों में छिपे संदेश को पढ़ा होता-
द्वार की ये कुंजियां, लो तुम संभालो।
अब नहीं घर द्वार मेरा, तुम संभालो।।
मीत मेरे से विदा मैं जा रहा हूं।
सभी के चरणों नमन मैं जा रहा हूं।।
फैसला तो आपको ही करना है। हमारी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ रहेंगी।
विनीत
आपका शुभाकांक्षी
कृष्णमोहन झा
राष्ट्रीय सचिव (सेन्ट्रल)
IFWJ
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