Kumar Sauvir : अखिलेश जी। मुझे अपनी मौत का मुआवजा एक कराेड़ से कम मंजूर नहीं… अपने मुआवजा सेटलमेंट के बंटवारे का पूरा प्लान तय कर लिया है मैंने… पत्रकार-समिति के लोगों, 10-20 पेटी अलग ले लेना, पर मेरे हिसाब से नहीं… मैंने कर रखा है एक करोड़ मुआवजा के एक-एक पैसा का हिसाब प्लान… मेरी चमड़ी खिंचवाना व उसमें भूसा भरके मेरी प्रतिमा स्थापित कराना मित्रों…
इसी तरह ही तो कटता है जीवन का कनेक्शन, और अपने लोग अचानक पराये हो जाते है। कुछ की नजर घर के माल-मत्ता पर, तो कुछ दोस्त-असबाब लोग तो मृतक की बीवी से आंख-मटक्का में जुट जाते हैं। पहले जो लोग उस महिला को भाभी जी भाभी जी कहते नहीं थकते थे, अब सीधे बावले “एनडी” सांड़ की तरह अपनी पूंछ सीधा कर अपने पांव से जमीन खुरच करके सरेआम फूं-फां करते चिल्लाते हैं:- “अरे हां हमार लल्लन-टॉप, यहर आवौ ना !”
पिछले तीन पहले नान-पेमेंट पर फोन और नेट का कनेक्शन कट गया, तो यकीन मानिये कि मुझे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की याद आ गयी। जनता के प्रति उनकी निष्ठा और भाव-प्रवण त्याग देखकर मेरी आंखें ही बिलबिला गयीं। अश्रुधार। लगा मानसून केवल इसी की प्रतीक्षा कर रहा था। लेकिन अखिलेश यादव ने मामला ठीक कर दिया। जागेन्द्र सिंह के परिवार को इतना रकम-इकराम थमा दिया कि अब बाकी लोगों को कोई दिक्कत नहीं। तो ऐसा है अखिलेस भइया, जरा हमारा भी हिसाब कर ल्यौ। मैं अपने जीते-जी सारे मामले सुलटाय देना चाहता हूं। कोई धमकी दे रहा है कि तुम्हारी पत्रकारिता तुम्हारे अंग-विशेष में घुसेड़ देंगे, कोई कह रहा है कि तुम्हारे परिवार को चैन से नहीं जीने देंगे, कोई मुझे निपटाने की चेतावनी कर रहा है, कोई नेस्तनाबूत करने की चादर बुन रहा है, कोई क्रिमेशन के लिए लकडी जुटा रहा है, किसी ने बिजली वाले श्मशान शुल्क का पैसा एकट्ठा कर लिया है, तो कोई कफन-दफन और लकड़ी को लेकर उत्साहित है। कुल मिलाकर लगातार यह बातें फिजां में तैर रही हैं कि:- कुमार सौवीर। जरा सम्भल जाओ। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी भी मुस्कुराती फोटो घर की दीवार पर टंगे और उस पर चढ़ी हो एक माला। न हुआ तो कम से चरित्र पर छींटे फेंक डाली जाएंगी, फर्जी मुकदमों में फंसाया जाऊंगा, वगैरह-वगैरह
नहीं नहीं, यह मत समझना कि मैं इन धमकियों से घबरा गया हूं। नक्को णी नक्को। मुझे तो ऐसी चर्चाएं ज्यादा जोशीला बना देती हैं। ऐसे हमले मुझे उम्र को और तराशना शुरू कर देते हैं। मैं खुद को ज्यादा जवान महसूस करना शुरू कर देता हूं। और इसी यौवन में फिर नयी खबर खोजने में जुट जाता हूं। हर कोई प्रेम के अतिरेक में मुझे सलाह दे रहा है कि यह यह भेडि़यों का जंगल है और आप अकेले हैं, ध्यान रखियेगा। बहुत सतर्कता रखना। वगैरह-वगैरह। दिलासा भी मिल रहा है कि मैं साथ हूं, डोंट वरी—–
तो अब मैं असल बात पर आना चाहता हूं। सन-82 से पत्रकारिता शुरू की थी और आज 2015 के फेंटे में आ चुका हूं। जी-हुजूरी कभी की नहीं, इसलिए जिन्दगी में बेहिसाब कष्ट भोगे। न जाने कितनी नौकरी से निकाला गया। लेकिन पटी सिर्फ साहसी सम्पादकों से ही। जयब्रत राय और विश्वेश्वर कुमार जैसे कायर सम्पादक या तो मुझसे पिट गये या फिर खुद ही खुद को विदा कर गये। जब भी कहीं कोई अन्याय हुआ, मैं हाजिर रहा। अपने इसी संस्कार-प्रवृत्ति को आजतक सम्भाले हूं। इसीलिए जागेन्द्र सिंह के हौलनाक हादसे पर अपने खर्चे पर पहुंचा और जितनी भी मिली, सचाई बयान कर दी।
खतरों-धमकियों से डरना मेरी आदत नहीं। मैं जूझना ही सीखा है और आज जब मेरे खात्मे की तैयारियां चल रही हैं, मैं उससे भी भिड जाना चाहता हूं। मै चाहता हूं मैं आजीवन आम आदमी के लिए लड़ता रहूं। लेकिन अगर कोई मुझे पेट्रोल डाल कर फूके या ट्रक से नीचे फिंकवा दे, तो वह तो तत्काल दाह-संस्कार अनिवार्य होगा। लेकिन अगर मेरी गाेली मार कर हत्या की जाए, तो मैं अपने सभी मित्रों से आदेशात्मक-निवेदन रहेगा कि वे मेरी खाल खिंचवा लें और उसमें भूसा भर के कुमार-सौवीर-कद वाली जीवन्त प्रतिमा स्थापित करवा दें। पत्रकारिता के सद्य:स्तनपायी और नवागतों-छात्रों को अपने जीवन की शुरूआत इसी मुर्दा चमड़ी वाली जीवन्त प्रतिमा के दर्शन से कराया जाए, ताकि उनमें पत्रकारिता के दायित्वों और उसमें निहित खतरों को भांपने-आंकने और खुद में जिजीविषा उत्पन्न करने का साहस उमड़े।
इसलिए मैं अखिलेश यादव से सीधे और दो-टूक बात करने आया हूं। तो ऐसा है अखिलेश जी, आपकी सरकार में चंद पत्रकार और कुछ आपराधिक व्यक्ति मुझे ठिकाने को आमादा हैं। आप उन्हें रोक सकें तो बेहतर है, वरना मैं मर गया तो दिक्कत आपकाे भी होगी। अब तक तो लखनऊ के किसी पत्रकार की सामान्य मृत्यु पर 20 लाख रूपया देने का परिपाटी तो आपने ही शुरू की है। लेकिन जागेन्द्र का दाह-काण्ड हुआ तो आपने अपने सलाहकार पत्रकारों की सलाह पर मामला खूब टाला। लेकिन जब मैं समेत बाकी पत्रकारों ने जमकर हल्ला किया तो आपने जागेन्द्र के परिजनों को 30 लाख, दो बच्चों को नौकरी, 5 एकड़ फंसी जमीन का करार कर लिया।
कुछ भी हो, इस फैसले का मैं दिल से सम्मान और बधाई देता हूं। और मांग करता हूं कि अगर मुझे मार डालना ही अपरिहार्य हो तो मेरे मुआवजे की रकम कम से कम एक करोड़ की जाए। हालांकि मेरे साथी-संगी कम से कम पांच करोड़ की मांग करेंगे जरूर, लेकिन आप एक खोखे पर ही नक्की कर लीजिएगा। दूसरी बात यह है कि मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटियों को भरपाई के तौर पर कोई सरकारी दी जाए। यह अनुकम्पा मैं नहीं चाहता। इतना ही नहीं, शायद मेरी बेटियां भी ऐसी पेशकश को सिरे से ही खारिज कर देंगी। जिन हालातों में यूपी सरकार के कर्मचारी नौकरी करते हैं, मैं और हमारे बच्चे उसे स्वीकार नहीं करेंगे। एक खास बात यह कि सरकारी नौकरी सरकार की अनुकम्पा पर नहीं, व्यक्ति की क्षमता पर होनी चाहिए। अगर किसी में दम होगा, तो वह यथायोग्य नौकरी हासिल कर ही लेगा। हां, अगर आप चाहेंगे तो इस एवज में इन दोनों को 25-25 लाख रूपया अतिरिक्त एकमुश्त भुगतान दिला दीजिएगा। क्यों पत्रकार दोस्तों, सहमत हो या नहीं? ठीक है ठीक है ठीक है, धन्यवाद
चूंकि मेरे पास जमीन नहीं है। इसलिए कोई लफड़ा भी नहीं है। इसलिए आप तसल्ली से लम्बी-लम्बी सांसें ले सकते हैं। सरकार खुश हो सकती है, सरकारी नौकर बेफिक्र हो सकते हैं। यह तो रही मेरी मौत का मुआवजा वाले संघर्ष और सफलता की कहानी। अब देखिये, इस मुआवजा के बंटवारे का सटीक-सटीक और फाइनल मसौदा। तो मित्रों। जैसा कि आपको पता है कि यह रकम टैक्स-फ्री होगी, यानी पूरा एक करोड। इसमें 25-25 लाख रूपया तो सीधे मेरी बेटियों को बांट दीजिएगा। इसके अलावा बाकी रकम में से 25 लाख रूपया उप्र मान्यताप्राप्त पत्रकार समिति को दिला दीजिएगा। मुझे खूब पता है कि रवि वर्मा जैसे बेहद बीमार पत्रकारों को मदद के तौर पर एक धेला भी नहीं मिला था। जब मैंने उनकी मदद के लिए 186 पत्रकारों के हस्ताक्षर से एक ज्ञापन तैयार किया, तो उसे हेमन्त तिवारी ने यह वायदा करके हासिल कर लिया कि रवि वर्मा को मुआवजा दिलायेगा।लेकिन दो साल पहले हेमन्त ने यूपी भवन में शराब पीने के बाद उगल दिया था कि उसने मेरा द्वारा तैयार किया गया ज्ञापन फाड़कर फेंक दिया था। हेमन्त ने बताया था कि चाहे कुछ भी हो, पूर्व हिसाम के कार्यकाल में कोई भी ऐसा काम नहीं करायेंगे, ताकि सारा दोषारोपण हिसाम पर ही हो।
इतना ही नहीं, जब 23 दिसम्बर-11 को मुझे ब्रेन स्ट्रोक पड़ा, तो के. विक्रमराव, हेमन्त और सिद्धार्थ कलहंस वगैरह एक भी तथाकथित मुझे व मेरे परिवारी जनों से मिलने तक नहीं आये, राहत तो कोसों दूर थी। ऐसे में दूसरे पत्रकारों के प्रति इन लोगों का व्यवहार क्या और कैसा होता, भगवान जाने। इसीलिए मैंन इस कोष की स्थापना अपनी मौत के मुआवजे की रकम से करना चाहता हूं, ताकि इसका इसका लाभ आम पत्रकारों को मिले। और चूंकि यह 25 रूपये मैं अपनी जान की कीमत पर पत्रकारों के कल्याण के लिए सहयोग-स्वरूप दूंगा, इसलिए नहीं चाहूंगा कि इस रकम ऐसे इतने घटिया मानसिकता के लोगों के हाथ पड़े। दोस्तों, इसका अलग कोष बनना चाहिए। लेकिन इतना जरूर ध्यान रखियेगा कि इस समिति अथवा कोष का संचालन हेमन्त तिवारी, के-विक्रमराव और सिद्धार्थ कलहंस जैसे लोगों के हाथ में न पड़े। अन्यथा यह मिल कर मेरी पूरी शहादत को मिट्टी में मिला देंगे।
इसलिए तत्काल मान्यताप्राप्त पत्रकार समिति की बैठक कर नया चुनाव कराना और नई कार्यकारिणी को यह कोष सौंप देना। अगर किन्हीं जुगाड़-कारणोंवश यह लोग दोबारा चुनाव जीत जीते हैं, तो फिर भी इन लोगों के हाथ में यह कोष मत सौंपना। इसके लिए शलभमणि त्रिपाठी, ब्रजेश मिश्र, आलोक पाण्डेय, प्रांशु मिश्र, पंकज झा, नवलकान्त सिन्हा, अनूप श्रीवास्तव, रामदत्त त्रिपाठी, शरद प्रधान, आशीष मिश्र, सुधीर मिश्र, हिसाम सिद्दीकी, राजबहादुर, ज्ञानेंद्र शुक्ला, श्रेय शुक्ल, संतोष बाल्मीकि, राजीव मिश्र, अजय कुमार, मनमोहन, प्रभात त्रिपाठी आदि दिग्गजों को सौंप देना। रही बची 25 लाख रूपयों की रकम। तो उसे महिला कल्याण के लिए खर्च कर दीजिएगा, जो पत्रकारिता में संघर्ष कर रही हैं। मसलन ममता, दीपिका सिंह, बबिता अपूर्व, मंजू, शिरीन, बादेसबा वगैरह-वगैरह। इनके लिए उप्र मान्यताप्राप्त पत्रकार समिति की ओर से एक कोष बनवाइयेगा। बस, इतना ध्यान रखियेगा कि उसमें के. विक्रम राव, हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस जैसे लोग कत्तई शामिल न हों, वरना यह लोग फेवीक्विक लगाकर कुण्डली मारे बैठे रहेंगे। वरना यह सब लोग मिल कर पूरा का पूरा मिशन तबाह कर देंगे, जैसे मान्यताप्राप्त समिति, श्रमजीवी पत्रकार सिंह और प्रेस-क्लब का हश्र किया है इन लोगों ने। इन लोगों की छाया से दूर ही रहना इस कोष को मेरे दोस्तों। अगर समय रहा तो जिन लोगों को इस ट्रस्ट की जिम्मेदारी दी जा सकती है, उनका भी नाम सिफारिश के तौर पर पेश कर दूंगा।
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर के फेसबुक वॉल से.
Comments on “के. विक्रम राव, हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस जैसों को दूर रखना अन्यथा पूरा मिशन तबाह कर देंगे”
हेमन्त, सिद्धार्थ व के विक्रमराव तीनों की तुलना करें तो हेमन्त तिवारी सबसे अव्योहारिक किस्म के पत्रकार पाए जाते हैं..आजकल डीजीपी कार्यालय के पीछे पाए जाते हैं..वहीं इनकी महफिल गुलजार होती है..पत्रकार सरोकार से दूर रहने वाले महाशय पत्रकार बिरादरी के ठेकेदार बने बैठें हैं..लखनऊ व अन्य जनपद के पत्रकार बंधू अगर इस मुगालते में हो कि लखनऊ में बैठे आधे ढ़ाढ़ी वाला उ.प्र मान्यता समिति के अध्यक्ष व ठेकेदार उनके मामले उठाएंगे तो ये बहुत बड़ी भूल है ये बहुत बड़े लाइजनर हैं…टीवी चैनलों में बहस खत्म होने के बाद ये पूरे प्रोग्राम की रिकार्डिंग मंगवाते हैं और सत्ताधारी नेताओं को खुश करने के लिए दिखाते हैं…पत्रकार बिदारदरी के भाईयों आपको आगाह करना चाहता हूं..कि इस तरह के लोगों से सावधान हो जाओ..क्योकि ये पत्रकारिता के लिए कलंक हैं..
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मेेरे पहली बार जब आदरणीय हेमेन्त जी से मुलाकात हुई तो मुझे लगा कि अच्छे व पत्रकारों के हितैषी पत्रकार हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद दारुलशफा में पुराने धरना स्थल पर बैठने के बाद इनकी कारगुजारियों के बारे में पता चला..ज्याद कुछ तो नही बस सिर्फ इतना कहना चाहता हूं.कि सौवीर भाई साहब ने तो खतरे की आहट बताई है, लेकिन अपने हितों के लिए ये आदमी किसी भी स्तर तक गिर सकता है..एेसा कोई सगा नही, जिसको इसने ठगा नहीं…आजकल पूरे गिरोह के साथ काम करने में जुटे हैं..दिल्ली से नए नवेले चैनल के पत्रकार आए हैं उनके बैनर के तले ये अपनी दुकान चला रहे हैं..और चैनल को बेंचने पर उतारुं हैं..सतर्क रहें इस तरह के सख्सों से क्योकिं ये पत्रकारिता के विषाणु हैं जो पूरी कौम के लिए घातक हैं…