राजेश खरे-
ये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्यप्रदेश सरकार का नर्सों और फ़ार्मासिस्टों की भर्ती का विज्ञापन है। इसकी विज्ञापन की ख़ास बात है कि ये नौकरियाँ कॉन्ट्रैक्ट पर हैं लेकिन जो इसे और सबसे ख़ास बनाती है वो है इन नर्सों और फ़ार्मासिस्टों को मिलने वाला मानदेय यानि तनख़्वाह या अंग्रेज़ी में कहें तो सैलरी।
अब एक नज़र डालते है नर्स और फ़ार्मासिस्ट की शैक्षणिक और व्यावसायिक योग्यताओं पर। इन दोनों कोर्सेज़ के लिए बारहवीं के बाद नर्सिंग के लिए 3 साल और फ़ार्मासिस्ट के लिए 4 साल का कोर्स करना होता है। उससे पहले ऑल इंडिया लेवल का लिखित एग्ज़ाम भी पास करना पड़ता है। इन दोनों कोर्सेज़ पर बच्चों के मॉं- बाप का लाखों रूपया खर्च होता हैं और बच्चों के जीवन के बेहतरीन 4-5 साल।
क्या 15-20 हज़ार रूपये कमाने के लिये कोई मॉं- बाप अपने बच्चों को लाखों रूपये ख़र्च करके नर्स या फ़ार्मासिस्ट बनाना चाहेगा लेकिन ये जानबूझकर न किया गया हो ऐसा लगता तो नहीं है। शायद ये सरकारी अस्पतालों को ख़त्म करने एक सरकारी तरीक़ा हो क्योंकि आजकल सरकारें ख़र्च कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और लोगों को स्वास्थ्य सुविधा देने वाली योजनाओं में डाक्टर, नर्स आदि की नौकरियों पर कम से कम खर्च करना सरकारी नीतियों का हिस्सा हो सकता है।
यही कारण है कि डाक्टर, नर्स और मेडिकल क्षेत्र से जुड़े हुए लोग विदेश जाते हैं या फिर प्राइवेट अस्पतालों में काम करते हैं क्योंकि इससे ज़्यादा तो रिक्शा चलाकर या ठेले पर सब्ज़ी बेच कर कमाया जा सकता है। और हॉं पकौड़े बेचकर भी इससे ज़्यादा कमा सकते हैं।