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इंटरव्यू

देश के 80 प्रतिशत पत्रकारों के पास दृष्टि नहीं, संपादक भी दृष्टिहीन : विमल कुमार

कविताओं के जरिए मोदी को लगातार एक्सपोज करने में जुटे हैं कवि और पत्रकार विमल कुमार : हिन्दी के वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार विमल कुमार पिछले दो सालों से लगातार सोशल मीडिया पर मोदी शासन के खिलाफ कवितायें लिखते रहे हैं. उनकी यह रचनाशीलता भवानी प्रसाद मिश्र की याद दिलाती है जब वे रोज तीन कवितायें आपातकाल के विरुद्ध लिखते रहे और बाद में उनकी पुस्तक ‘त्रिकाल संध्या’ भी आयी. 56 वर्षीय विमल कुमार की गत दो सालों में लिखी गयी कविताओं की पुस्तक ‘हत्या से आत्महत्या’ छपकर आयी है. उनकी इन कविताओं ने फेसबुक पर सबका ध्यान खींचा है. आखिर विमल कुमार को किन परिस्थितियों ने इन कविताओं को लिखने के लिए मजबूर किया, इस भेंटवार्ता में जानिए यह खुलासा –

मेक इन इंडिया

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-विमल कुमार-

बहुत खोज रहा हूँ
मैं भारत को
वो दिखाई नहीं देता अब जल्दी
अब चारों  तरफ
इंडिया ही  इण्डिया है

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मेक इन इंडिया की गुफा से निकला ही था
कि सामने दिखाई पडी डिजिटल इंडिया की सुरंग
वहां से बाहर निकला तो सामने था
चमचमाता हूँ  थिंक इंडिया
पीछे  गर्दन घुमाई
तो स्किल इंडिया मुस्करा  रहा था
सामने गंदे नाले में
खिलखिला रहा था
क्लीन इंडिया

ठंढ में दुबका था
बैठा झुगी में भारत
उसे उजाड़ रहे थे रौंदते हुए
बुलडोजर

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कहां जाऊं मैं

-विमल कुमार-

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कहाँ जाऊं मैं
जिस सड़क पर चलता हूँ
उसका उद्घाटन भी
तुमने ही किया था
जिस स्कूल में पढ़ा
उसकी नीव भी तो तुमने ही रखी थी
जो पानी पीता हूँ
उसकी पाईप भी तुमने ही बिछाई थी
तुमने जिस परियोजना की आधारशिला रखी
उसकी बिजली से जल रही मेरे घर में रौशनी
क्या मैं इस शहर में रहूँ
या चला जाऊं
कही दूर
जिस मोहल्ले में रहता हूँ
उसकी ज़मीन भी तुम्हारे भू माफिया की है
नहीं चाहता हूँ
तुम्हारी तस्वीर देखना
पर हर अखबार में तुम्हारी तस्वीर दिखाई देती है अब
जिस कलम से लिखता हूँ
वो कंपनी भी तुमने खरीद ली है
किताबों में भी तुम हो
जबकि नफरत करता हूँ तुमसे
कहाँ जाऊं मैं
समझ में नहीं आता
अब तो मैं भी बहिष्कृत
हो गया हूँ
लड़ते लड़ते तुमसे
अकेला जो हो गया हूँ.
हो गया अपने साथियों से दूर
जिनके साथ लड़ी थी मिलकर कभी
तुम्हारे खिलाफ कोई लडाई

गुजरात के शिलालेख

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-विमल कुमार-

एक बात मैं आपको बताऊँ
जब मैं गुजरात में था
तो अक्सर सुबह सुबह टहलने नदी के किनारे जाता था
वहीं कई बार पानी के भीतर घडियालों से खेलने लगता था
एक दिन एक घड़ियाल के बच्चे को उठाकर लाया था अपने घर
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा
जब मैं गुजरात में था
तो एक बार जंगल में जाकर शेरो से हाथ भी मिला आया था
उसके बाद शेर भी मुझे पहचान ने लगे थे
पेड़ भी मुझे जन ने लगे थे
उसके बाद मैंने सोचा
मैं खुद शेर क्यों न बन जाऊं
फिरआप सब की दुआओं से
मैं एक दिन शेर भी बन गया
जब मैं गुजरात में था
तो जादू की कला वहीं सीखीथी मैंने
हाथ की सफाई में उस्ताद हो गया था
तो मजमे लगाने में भी निपुण
बांसुरी बजाने भी लगा था बचपन में
सपने दिखाने के गुर भी सीख गया था
जब मैं गुजरात में था
तो अक्सर दूरबीन लगाकर
खोजने निकल जाता था गरीबी
अक्सर मुझे कोई गरीब आदमी नहीं मिलता था
एक बार मुझे एक गरीब बुढिया मिली तो मैं रोने लगा
तब से मेरा दिल पसीज ने लगता है
किसी आदमी को मुसीबत में देखकर
जब मैं गुजरात में था
तो इतिहास की खूब किताबें पढी थी मैं
वेदों पर अटूट विश्वास तब से है
ये आप मेरे इतिहास ज्ञान से भी पता लगा सकते हैं
आपको जानकर ये खुशी होगी
कि एक बार मुझे एक ज्योतिष ने बताया
कि इस देश के असली दुश्मन कम्युनिस्ट हैं
अगर वे नहीं होते तो इस देश की बहुत तरकी होती
एक राज़ की बात बताता हूँ आपको
जब मैं गुजरात में था
तो गुजरात मेरे भीतर धड़कता था
ये पता लगाना मुश्किल था
कि मैं गुजरात के भीतर हूँ या गुजरात मेरे भीतर
एक वाक्य ऐसा हुआ मेरे जीवन में
पोरबंदर में मुझे शाम को पार्क में बापू मिले
उन्होंने कहा
तुम हमेशा सत्य की राह पर चलना
अहिंसा मेंकरना यकीन

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तब से मैं सत्य के मार्ग पर चल रहा हूँ
ये आप भी देख रहे हैं.
इसलिए कह रहा हूँ
गुजरात में एक बार भी दंगा नहीं हुआ
जो लोग मरे वे इस देश के लिए शहीद हुए थे
लेकिन मुझे कातिल भी बताया गया
पर खुदा का साया मेरे ऊपर था
और मैं आज आपके सामने हूँ
जब मैं गुजरात में था
तो बहुत मज़े के दिन थे
मेरे बदन से खूशबू आने लगी थी
मेरी आँखों से रौशनी झरने लगी थी
मेरे शब्दों से मोती निकलने लगे थे
बादलों की तरह मैं उड़ने लगा था
पतंग भी आसमान पर उड़ाने लगा था
दफ्तर के सामने ही कंचे खेलने लगा था
जब मैं गुजरात में था
कवितायेँ भी लिखने लगा था
कुछ कहानियां भी लिखी थी मैंने
डायरी भी नियमित लिखता था
घर में अकेला था
समय भी बहुत था
दिन रात देश के बारे में सोचते हुए दुबला हो गया था
तब मैं चशमा भी लगाता था
जब मैं गुजरात में था
तो मुझे अक्सर लगता था
कि मैं गुजरात में नहीं हूँ
मैं तो पुरे ब्रह्माण्ड में हूँ
अनंत में हूँ
एक शून्य में हूँ
नक्षत्रों के आसपास
आकाश गंगा की आगोश में
क्या दिव्य अनुभूति होती थी
अब मैं अध्यात्म की खोज में
गुजरात से दूर बहुत दूर निकल गया हूँ
इतने देशीं की यात्रा करते हुए
लेकिन गुजरात अभी भी भूला नहीं हूँ
वो मेरे शरीर में है रक्त की तरह
वो मेरी अस्थियों में है
मज्जा की तरह
वो मुझे अभी भी पुकारता है एक बच्चे की तरह
पता नहीं क्यों
मुझे पूरा संसार अब गुजरात ही लगता है
आप एक बार गुजरात जरूर जाये
जैसे मरने से पहले लोग चारों धाम जाते हैं
आप अपनी तस्वीर ट्विटर पर जरूर डालें
मैं री ट्विट करूँगा
और फिर देखिएगा
आपकी सारी समस्याएं
छु मंतर हो जायेगी

किस लिए तुम्हे मिला था ये जनादेश

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-विमल कुमार-

किस लिए तुम्हे मिला था ये जनादेश
क्या इसलिए मिला था
कि तुम नदियों का पानी ही बेचने लगो
कि लगो तुम सबको दिखने रोज झूठे सपने
कि मुकर जाओ तुम अपने ही किये वादों से
किसलिए तुम्हे मिला था ये जनादेश
क्या इसलिए मिला था
कि तुम हर अख़बार में आने लगो नज़र विज्ञापनों में
कि चरों तरफ उतारी जाये तुम्हारी आरती
कि फूलमालाओं से लड़ जाये तुम्हारी गर्दन
किसलिए मिला था तुम्हे ये जनादेश
क्या इसलिए मिला था
कि तुम आग लगाने लगों बस्तियों में
कि फ़ैलाने लगो नफरत आपस में ही
कि बाँटने लागों मुल्क को अपने स्वार्थ के लिए
किसलिए मिला था तुम्हे जनादेश
कि अँधेरा और बढ़ने लगे शाम को
कि जीना हो जाये और मुश्किल
कि तलवारें लटकने लगे गर्दन पर
कि जो करे विरोध तुम्हारा
उसे बड़ी सफाई से तुम निकल दो बाहर
कि तुम्हारा हर हुक्म होता रहे तामील
कि तुम्हारी भूख और प्यास बढ़ती जाये
कि तुम्हारे प्यादे ही नज़र आयें चारो तरफ
और तुम रक्त पिपासू होते जाओ दिन रात
किसलिए मिला था तुम्हे जनादेश
क्या इसलिए कि तुम उसी रस्ते पर चलते रहो
जिस रास्ते से गए थे तुम्हारे दुश्मन
कि तुम्हारे पंजे और तेज हो जाएँ
कि तुम लगा लो एक और मुखौटा अपने चेहरे पर
तुम्हे जब भी मिलता है कोई जनादेश
तो तुम उसे युग सत्य समझ लेते हो
फिर उसी जनादेश के खिलाफ काम करने लगते हो
और जो उठता है सवाल उसे बदनाम करने लगते हो

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न मैं गांधी के मुल्क में रहता हूँ…

-विमल कुमार-

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न मैं गांधी के मुल्क में रहता हूँ,
न मैं बुद्ध के देश में रहता हूँ .
मेरे घर का पता बदल गया हैं यारो
अब मैं डिजिटल इंडिया में रहता हूँ
न मेरे शहर में कोई कुआं हैं
न गुसलखाने में एक बूँद पानी है
ये आधुनिक भारत की कहानी है
लेकिन मुझे लोगों को नोमिनेट करना है
क्योंकि स्वच्छ भारत में रहता हूँ.
मुझे नींद नहीं आती है
मुझे भूख भी बहुत लगती है
मैं सिर्फ वोट बैंक बन गया हूँ
क्योंकि आदर्श ग्राम में अब रहता हूँ
मैं लिखना नहीं जनता हूँ
मैं सीखना भी नहीं चाहता हूँ
पर संस्कृत जरुर पढता हूँ
मेरा इतिहास बदल गया है यारों
अब मैं प्राचीन भारत में रहता हूँ
न मुझे महंगाई की चिंता है
न नौकरी की जरूरत है
क्योंकि मैं लैपटॉप लेकर चलता हूँ
मेरा भूगोल बदल गया है यारों
मैं शोपिंग मॉल के ठीक पास
गोडसे के फ़्लैट में रहता हूँ
न मैं हिन्दू से नफरत करता हूँ
न मुसलमान से नफरत करता हूँ
मैं संविधान में यकीन करता हूँ
इसलिए चुनाव से पहले दंगा जरूर करता हूँ .
न मैं गांधी के मुल्क में रहता हूँ
न मैं बुद्ध के देश में रहता हूँ
मैं सेल्फी युग का नायक हूँ
ट्विटर से ही इस देश को हैंडल करता हूँ.

तुम आये थे एक दिन मेरे शहर में

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-विमल कुमार-

तुम आये थे एक दिन मेरे शहर में
झूठ की नाव पर सवार होकर
रेत का एक विशाल महल बनाते हुए
सपनो के गुब्बारे हवा में उड़ाते हुए
बांसुरी बजाते हुए तुम आये थे
प्लास्टिक के फूल खिलते हुए
आये थे एक नया तिलस्म रचते हुए
एक नया जादू दिखाते हुए तमाशबीनों को
शब्दों के अर्थ बदलते हुए
गढ़ते हुए एक नयी परिभाषा हर चीज़ की
ध्वस्त करते हुए मीनारों को एक बुर्ज पर खड़े होकर
हवा में हाथ लहराते हुए तुम आये थे
फिर अपनी ही कलम से लिखने लग गए थे
एक तवारीख मुल्क की जिसमे स्याही की जगह खून थी भरी हुई
अपनी तस्वीरों से भरी एक किताब की भूमिका भी तुम लिख रहे थे
तुम्हारे लिए कसीदे भी कढे जा रहे थे
अपनी पताका फहराते हुए
मदमस्त हाथियों की तरह चिघाड़ते हुए तुम आये थे
तुम्हे शेर भी कहा गया था
पर एक दिन तुम गीदड़ ही निकले
बोलती बंद हो गयी तुम्हारी
दूम दबाकर तुम चुप हो गए
आये थे जिस मंच पर तुम करने अपने अभिनय
सयोंग देखो कि तुम्हारा नकाब ही एक झटके में उतर गया
सूत्रधार तुम नहीं थे
तुम तो मुख्य नायक भी नहीं थे
तुम्हारे संवाद भी कंपनियों ने लिखे थे
तुम जिस रस्ते से आये थे यहाँ तक
वो रास्ता सबको मालूम था
पर इस मुल्क की नसीब में बद्नसीबी भी लिखी हुई थी
ये अच्छा हुआ कि तुम्हारा नशा जल्द ही उतर गया
मालूम हो गया कि शराब में कितना पानी है मिला हुआ
जिस तरह तुम आये थे
उसी तरह तुम तुम एक दिन जाओगे भी
इतिहास भी आखिर न्याय कर ता है
देर से ही सही
पर एक दिया जलता है तूफानों में
और रौशनी आती है दरीचों से छान करएक दिन

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जैसे ही तुम सच बोलोगे

-विमल कुमार-

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जैसे ही तुम सच बोलोगे
लोग तुम तुम्हे घेर लेंगे चरों तरफ से
एक चक्रव्यूह रच देंगे
पूछेंगे तरह तरह के सवाल
तुम्हे ही मुजरिम ठहराएंगे
बहुत मुश्किल है सच बोलना 
झूठ हमेशा रहता है साथ ताक़तवरों के
इसलिए जैसे ही तुम सच बोलोगे 
मार दिए जाओगे
फेंक दिए जाओगे तुम किसी झाडी में
किसी दिन सुबह सुबह मिलेगी
नाले में तुम्हारी लाश 
तुम्हारे घर को आग लगा दी जायेगी रात में अचानक
तुम्हारी किताब नहीं छपेगी
तुम्हारा वजीफा भी चीन लिया जायेगा
तुम्हे वंचित किया जायेगा दफ्तर में
तुम्हारे ही अधिकारों से 
नौकरी से बर्खास्त कर दिए जाओगे
किसी झूठे मुकदमे में फंसा दिए जाओगे 
इसलिए जल्दी कोई नहीं चाहता बोलना सच सच 
लेकिन जो बोलता है सच 
वो ही होता है नायक अपने युग का
झूठ बोलने वालेतो तो गीदड़ होते हैं
अब तुम्हे करना है तय
कि तुम आदमी बनना चाहते हो या गीदड़.


कवि और पत्रकार विमल कुमार से फेसबुक पर संपर्क करने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें :

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