कविताओं के जरिए मोदी को लगातार एक्सपोज करने में जुटे हैं कवि और पत्रकार विमल कुमार : हिन्दी के वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार विमल कुमार पिछले दो सालों से लगातार सोशल मीडिया पर मोदी शासन के खिलाफ कवितायें लिखते रहे हैं. उनकी यह रचनाशीलता भवानी प्रसाद मिश्र की याद दिलाती है जब वे रोज तीन कवितायें आपातकाल के विरुद्ध लिखते रहे और बाद में उनकी पुस्तक ‘त्रिकाल संध्या’ भी आयी. 56 वर्षीय विमल कुमार की गत दो सालों में लिखी गयी कविताओं की पुस्तक ‘हत्या से आत्महत्या’ छपकर आयी है. उनकी इन कविताओं ने फेसबुक पर सबका ध्यान खींचा है. आखिर विमल कुमार को किन परिस्थितियों ने इन कविताओं को लिखने के लिए मजबूर किया, इस भेंटवार्ता में जानिए यह खुलासा –
-साहित्य की दुनिया में कहा जा रहा है कि आपने मोदी जी के खिलाफ इतनी कवितायें लिखी कि वह अब एक किताब के रूप में आ गयी है?
-सवाल मोदी का नहीं है. देखिये जब कोई लेखक कोई रचना करता है तो वह व्यक्ति विशेष पर नहीं बल्कि प्रवृतियों पर लिखता है. मोदी जी भी एक प्रवृति के प्रतीक हैं. उनकी कुछ प्रवृतियां इंदिरा गांधी में भी दिखाई दी थी और आज केजरीवाल में भी यह प्रवृति है. यह प्रवृति शक्ति संचयन की है, अधिनायक वाद की है. हम लोगों ने इन्दिरा जी का भी विरोध किया था, जेपी के छात्र आन्दोलन में. मेरी एक कविता कादम्बिनी में आपातकाल में सेंसर हो गयी थी. जब आपातकाल समाप्त हुआ तो वह कविता ‘सेंसर से रुकी कविता’ के रूप में छपी थी. हिन्दी में निराला ने नेहरूजी पर आलोचनात्मक कविता लिखी. बाबा नागार्जुन ने भी इंदिरा जी के खिलाफ कविता लिखी. बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर हिन्दी के अनेक लेखकों ने कवितायें लिखी. सिख दंगे पर लोगों ने कहानियां लिखी. हिन्दी की एक कहानीकार प्रत्यक्षा सिन्हा तो आज भी ८४ के दंगे पर कहानी लिख रही हैं. इस तरह गुजरात दंगे पर भी हिन्दी के कई लेखकों ने कवितायें लिखीं. देवी प्रसाद मिश्र मंगलेश डबराल राजेश जोशी आदि ने शानदार कवितायें लिखीं. मैंने भी एक कविता लिखी जो मेरे पिछले संग्रह में है. इसलिए मोदी जी के खिलाफ ये कवितायें दरअसल उन प्रवृतियों के खिलाफ कवितायें हैं. इन प्रवृतियों का विरोध करना उन्हें उजागर करना बेहद जरुरी है और इसलिए एक लेखाकिये धर्म निभाते हुए ये कवितायें लिखी हैं.
-लेकिन कुछ लोग तो मोदी जी को नायक बता रहे हैं?
-इंदिरा जी को तो लोग देवी और चंडी भी बताते थे. देवकांत बरुआ ने तो ‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा’ का नारा दिया था. उनकी भी खूब जयकार होती थी. जब वह आती थीं तो मैदान में भीड़ जमा हो जाती थी और वह भाड़े की भीड़ नहीं होती थी. मैंने खुद 72-73 में पटना के गांधी मैदान में देखा था, उनका भाषण सुना था. लेकिन तब लेखक गण विरोध कर रहे थे. आज भी कर रहे हैं. मैं कोई अकेला व्यक्ति या लेखक नहीं हूँ जो विरोध कर रहा हूं. फेसबुक पर बहुत सारे कवि लिख रहे हैं. विष्णु नगर, मंगलेश डबराल, देवीप्रसाद मिश्र, प्रियदर्शन, रंजित वर्मा, दिनकर कुमार, स्वप्निल श्रीवास्तव जैसे अनेक लोग मोदी जी की नीतियों के खिलाफ कवितायें लिख रहे हैं.
-आखिर आप लोग क्यों लिख रहे हैं?
-देखिये लेखक का काम सच बताना है. वह अपना काम कर रहा है. वह बता रहा है कि मोदी जी ने लोगों को झूठे सपने दिखाए. उन्होंने जनता के साथ छल किया है. लोगों को बेवकूफ बनाया है. उनकी सरकार लगातार झूठ बोल रही है. सातवें वेतन आयोग को अरुण जेटली ने एतिहासिक बताया. क्या यह सरासर झूठ नहीं है. भ्रष्टाचार दूर करने की बात करते हैं और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित संजीव चतुर्वेदी जैसे इमानदार अधिकारी को लगातार दो साल से परेशान कर रहे हैं. अडानी का दो सौ करोड़ माफ़ कर दिया. अमीरों को टैक्स छूट के नाम पर सब्सिडी और रेल यात्रा करनेवाले बूढों से रियायत को छोड़ने की बात कर रहे. पहले खुद अपनी पार्टी के सांसदों से यात्रा रियायत, टेलीफ़ोन सब्सिडी छोड़ने की बात कहते. पहले कहा गया कि अभी नयी सरकार है, अभी मोहलत दो. अब उनको समय दिया जाय. जनता ने दो साल का समय दिया लेकिन कोई नतीजा नहीं. महंगाई बेरोजगारी के मोर्चे पर विफल. केवल प्रचार से लोगों को दिग्भ्रमित कर रहे.
-लेकिन क्या आपने कांग्रेस की नीतियों के विरोध में कवितायें लिखीं?
-लिखीं. बिलकुल लिखी. आपातकाल में और उसके बाद भी. मनमोहन सिंह ने जब विदेशी पूंजी निवेश शुरू किया तो मैंने एक कविता लिखी– ”मैं इस देश को बेच कर चला जाऊंगा”. दूसरी कविता लिखी ”Miss FDI मेरी जान”. इसलिए यह कहना गलत है कि लेखक कांग्रेस का विरोध नहीं करते थे. सच्चा लेखक हमेशा विपक्ष में, शाश्वत विपक्ष में रहता है. यह सच है कि कुछ लेखक कांग्रेस के साथ थे वहीं निर्मल वर्मा जैसे लोगों ने भजपा का समर्थन किया था. विद्यानिवास मिश्र भी भाजपा के साथ थे. आज भी कमल किशोरे गोयनका, नरेंद्र कोहली सरकार के साथ हैं लेकिन हिन्दी के लेखकों का बड़ा तबका सत्ता के साथ कभी नहीं रहा. जब श्रीकांत वर्मा कांग्रेस के साथ थे तब रघुवीर सहाय और सर्वेश्वर अलग थे. रघुवीर सहाय तो दिनमान के संपादक के रूप में हटाये गए क्योंकि इंदिरा जी नहीं चाहती थीं उन्हें. उनकी जगह नंदन जी को संपादक बनाया गया जिन्होंने आते ही इंदिरा जी पर कवर स्टोरी निकाली लेकिन सहाय जी ने यह काम नहीं किया. धर्मवीर भारती ने भी जयप्रकाश नारायण का साथ दिया था. इसलिए भाजपा का यह तर्क गलत है कि लेखकों ने हमेशा कांग्रेस का साथ दिया. सच तो यह है हिन्दी का कोई बड़ा लेखक संघ परिवार भाजपा का समर्थक नहीं रहा. प्रेमचंद, निराला पन्त, महादेवी, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्ता, नवीन जी, आचार्य शिवपूजन सहाय, राहुल जी, बेनीपुरी, दिनकर भी समर्थक नहीं थे.
-अपने संग्रह के बारे में बताएं? कविताओं के विषय क्या हैं?
-मैंने करीब सौ कवितायेँ फेसबुक पर सीधे लिखीं. मुझे इतनी घुटन हो रही देश की हालत से कि मैं खुद को लिखने से रोक नहीं पाया. दो साल पहले 16 मई के बाद देश वह नहीं रहा जो उसके पहले था. देश की हालत पहले भी ख़राब थी लेकिन आज तो सरेआम झूठ बोला जा रहा है कि अच्छे दिन आ गए, महंगाई ख़त्म हो गयी, लोगों को रोजगार मिल रहा है, देश में बिजली की कमी नहीं है आदि आदि. इसलिए मैंने इस झूठ को बेनकाब किया है कविताओं में. प्रधानमंत्री सेल्समैन और इवेंट मैनेजर सेल्फी युग के नायक हैं. वह नेहरु की तरह राजनेता नहीं, लोहिया की तरह नायक नहीं. हमारे प्रधानमंत्री का कद, उनका ज्ञान, व्यक्तित्व, उनकी भाषा शैली में भी कोई गरिमा नहीं है. वे उन लोगों के नायक हैं जो धीर गंभीर लोग नहीं. जो छिछले लोग हैं. उनमे उर्जा और दमखम तो है पर उसकी दिशा और नीयत क्या है. चुनाव जीतने से लेकर बाँसुरी और ड्रम बजने पर भी कवितायें हैं. लव जिहाद पर भी. ‘स्मार्ट सिटी में हत्या’, ‘गुजरात के शिलालेख’ जैसी कवितायें है. रोहित वेमुला पर भी. यह संग्रह पंसारे कलबुर्गी धभोलकर और वेमुला को समर्पित है. ‘हत्या से आत्महत्या’ तक इन चारों की शहादत का प्रतीक है.
-आप एक पत्रकार हैं. सालों से संसद कवर करते हैं. एक तरफ आप इस तरह की कवितायें लिखते हैं. दूसरी तरफ मोदी जी की खबरें भी लिखते हैं. आप संतुलन कैसे कायम करते हैं?
-देखिये मैं मोदी जी की नहीं बल्कि एक प्रधानमंत्री की खबर लिखता हूं. ख़बरों में हमें तटस्थ होना चाहिए. लेकिन जैसी भक्ति विशेषकर न्यूज चैनलों में दिखाई दे रही है, वह स्तब्धकारी है. मीडिया मनमोहन सिंह की खबरें उस तरह नहीं दिखाता था जिस तरह आज के पीएम मोदी की दिखा रहा है. किसी भी मुल्क में मीडिया ने इतना पक्षपात नहीं किया जितना भारतीय मीडिया कर रहा है. दरअसल 80 प्रतिशत पत्रकारों के पास दृष्टि नहीं है. संपादक भी दृष्टिहीन हैं. इसलिए मैं पत्रकारिता को शब्दों की क्लर्की कहता हूँ. मैंने खुद को कभी पत्रकार होने का दावा नहीं किया. लेकिन हमें निष्पक्षता बरक़रार रखनी चाहिए. मैं हर दल की ख़बरें लिखता हूँ. विरोध अपनी जगह पर है. प्रोफेशन अलग. लेकिन हमें जनता के साथ रहना चाहिए. सत्ता के साथ नहीं. चाहे वह लालू नीतीश या येचुरी की सत्ता क्यों न हो.
कवि और पत्रकार विमल कुमार से संपर्क [email protected] या +91 9968400416 के जरिए कर सकते हैं.
विमल के कविता संग्रह ‘हत्या से आत्महत्या’ तक की कुछ कविताएं पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें…