Vimal Kumar : दो साल की सज़ा या जुर्माना या दोनों एक साथ का प्रावधान है। ये लोग अदालत को मैनेज कर केवल जुर्माना देकर बच जाएंगे। जिसने विज्ञापन दिया उसे भी जेल की सजा हो। जागरण कोई अख़बार है, भोंपू को अख़बार न कहो प्रियदर्शन!
Vimal Kumar : दो साल की सज़ा या जुर्माना या दोनों एक साथ का प्रावधान है। ये लोग अदालत को मैनेज कर केवल जुर्माना देकर बच जाएंगे। जिसने विज्ञापन दिया उसे भी जेल की सजा हो। जागरण कोई अख़बार है, भोंपू को अख़बार न कहो प्रियदर्शन!
कविताओं के जरिए मोदी को लगातार एक्सपोज करने में जुटे हैं कवि और पत्रकार विमल कुमार : हिन्दी के वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार विमल कुमार पिछले दो सालों से लगातार सोशल मीडिया पर मोदी शासन के खिलाफ कवितायें लिखते रहे हैं. उनकी यह रचनाशीलता भवानी प्रसाद मिश्र की याद दिलाती है जब वे रोज तीन कवितायें आपातकाल के विरुद्ध लिखते रहे और बाद में उनकी पुस्तक ‘त्रिकाल संध्या’ भी आयी. 56 वर्षीय विमल कुमार की गत दो सालों में लिखी गयी कविताओं की पुस्तक ‘हत्या से आत्महत्या’ छपकर आयी है. उनकी इन कविताओं ने फेसबुक पर सबका ध्यान खींचा है. आखिर विमल कुमार को किन परिस्थितियों ने इन कविताओं को लिखने के लिए मजबूर किया, इस भेंटवार्ता में जानिए यह खुलासा –
वरिष्ठ पत्रकार और कवि विमल कुमार का मानना है कि राज्यसभा टीवी के खिलाफ निगेटिव खबरें एक बड़ी साजिश का हिस्सा है. उन्होंने फेसबुक पर इस बारे में लिखा है कि केंद्र सरकार अपने लोगों को इस चैनल पर काबिज कराने के लिए चैनल को लेकर नकारात्मक खबरें छपवा रही है. विमल कुमार ने जो कुछ लिखा है, उसे पढ़िए…
”मुक्तिबोध के बाद की हिन्दी कविता में जो ओज, जो ऊर्जा, जो संभावना दिखाई देती है, वह आठवें दशक के बाद की हिंदी कविता में मुझे दिखाई नहीं देती। परंतु आठवें दशक के बाद जिन कवियों ने हिंदी कविता की चमक को बचाए रखा है उन कवियों में कवि विमल कुमार भी हैं.” यह वक्तव्य वरिष्ठ आलोचक डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ‘बिहार प्रगतिशील लेखक संघ’ द्वारा आयोजित दिल्ली से पधारे कवि विमल कुमार की प्रतिरोधी कविताओं के पाठ के समय दिया।
Abhishek Srivastava : मुझे इस बात की खुशी है कि रायपुर साहित्य महोत्सव के विरोध से शुरू हुई फेसबुकिया बहस, बनारस के ‘संस्कृति’ नामक आयोजन के विरोध से होते हुए आज Vineet Kumar के सौजन्य से Samvadi- A Festival of Expressions in Lucknow तक पहुंच गई, जो दैनिक जागरण का आयोजन था। आज ‘जनसत्ता’ में ‘खूब परदा है’ शीर्षक से विनीत ने Virendra Yadav के 21 दिसंबर को यहीं छपे लेख को काउंटर किया है जो सवाल के जवाब में दरअसल खुद एक सवाल है। विनीत दैनिक जागरण के बारे में ठीक कहते हैं, ”… यह दरअसल उसी फासीवादी सरकार का मुखपत्र है जिससे हमारा विरोध रहा है और जिसके कार्यक्रम में वीरेंद्र यादव जैसे पवित्र पूंजी से संचालित मंच की तलाश में निकले लोगों ने शिरकत की।”
: लडाई के और भी तरीके होते हैं… असहमति का सम्मान भी करना सीखो : मैं यहाँ अपनी बात बनारस में साहित्य अकेडमी के समारोह में काव्यपाठ को उचित ठहराने के लिए नहीं कह रहा हूँ बल्कि जिस युग में हम जी रहे हैं उसकी विडम्बनाओं को रेखांकित करने और चुनौतियों को रखने के लिए कह रहा हूँ. पहले मैं स्पष्ट कर दूँ कि साहित्य अकेडमी से जो पत्र आया उसमे मोदी का कहीं नाम नहीं था, जो कार्ड छापा उसमे भी नाम नहीं था, यहाँ तक कि मालवीय जी और वाजपेयी की जयंती का जिक्र तक नहीं था. टेलीफ़ोन पर भी साहित्य अकेडमी के उपसचिव ने भी ऐसी कोई जानकारी नहीं दी.
Vimal Kumar : जब अर्जुन सिंह जिन्दा थे तो लेखक और पत्रकार उनके आगे पीछे घूमा करते थे लेकिन उनके मरने के बाद उनके नाम पर शुरू पुरस्कार समारोह में अब कोई नहीं झांकता. पिछले साल भी इस समारोह में कम लोग थे. इस बार तो और कम लोग. अज्ञेय जी के निधन के बाद में यही हुआ. अज्ञेय जी जब जीवित थे तो उनका जलवा था. लेकिन मरने के बाद सब भूल गए.
#VimalKumar
Vimal Kumar : करीब 15 साल पहले मैं राष्ट्रपति भवन में भारतीय भाषा परिषद् के पुरस्कार समारोह को कवर करने गया था तो मैंने कृष्णा सोबती जैसी बड़ी लेखिका को भी पुरस्कार लेने के लिए रिहर्सल करते देखा तब मुझे झटका लगा था. तब प्रभाकर श्रोत्रिय परिषद् के निदेशक थे. मैंने जनसत्ता में पुरस्कारों का रिहर्सल शीर्षक से एक लेख लिखा था. गिरिराज किशोर ने रिहर्सल को जायज़ ठहराते हुए मेरे लेख के जवाब में एक लेख लिखा. उस दिन मैं समझ गया कि हमारे देश के लेखकों में आत्मस्वाभिमान नाम की कोई चीज़ नहीं है. वे किसी के हाथों कोई पुरस्कार ले सकते हैं उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं. इसमें हमारे कुछ वामपंथी दोस्त भी शामिल हैं.