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सियासत

जिस तरह पचहत्तर प्रकार के हिन्दू हैं, उसी तरह पचहत्तर प्रकार के मुस्लिम भी हैं!

पुनीत शुक्ला-

तालिबानियों के पहले भी अफगानिस्तान में मुसलमानों का ही शासन था। उसके पहले जो सत्ता में थे, वे भी मुसलमान थे। हामिद करजई, अब्दुल्ला अब्दुल्ला आदि भी मुसलमान थे। तालिबान के जन्म से पहले जो राजशाही थी और जो राजा ज़हीर शाह थे, वे भी मुसलमान थे। जो आज वहाँ से जान बचाकर भाग रहे हैं, वे भी मुसलमान हैं।

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जो हवाई जहाज से लटककर मर जा रहे हैं, वे भी मुसलमान हैं। जो तालिबान के विरुद्ध कुछ इलाकों में झंडा फहराकर प्रतिरोध दर्ज करा रहे हैं, वे भी मुसलमान हैं। जो तालिबान के विरुद्ध कुछ बोलने की हिम्मत जुटा रहे हैं, वे भी मुसलमान हैं। जो अफगानी फिल्मकार स्त्री एक खुला पत्र लिखकर दुनिया से अफगानिस्तान बचाने की अपील कर रही है, वह भी मुसलमान है। जो अमेरिका समर्थित राष्ट्रपति वहाँ से भागकर दुबई में शरण लेता है, वह भी मुसलमान है। जो मार रहे हैं, वे भी मुसलमान हैं। जो मर रहे हैं, वे भी मुसलमान हैं।…..

आप कहना क्या चाहते हैं? आपका मतलब क्या है?

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मेरे कहने का मतलब यह है कि जिस तरह पचहत्तर प्रकार के हिन्दू हैं, उसी तरह पचहत्तर प्रकार के मुस्लिम भी हैं। भारत में ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपनी नफ़रतों, पूर्वाग्रहों या भ्रमपूर्ण जानकारी के कारण सब धान बाइस पसेरी तौलने लगते हैं। ये लोग तालिबान के बहाने सारे मुसलमानों को निशाना बनाने लगते हैं। यह बेहद ग़लत बात है।

हाँ, यह सच है कि कुछ मुसलमान तालिबान का समर्थन कर रहे हैं। कुछ अनजाने में समर्थन कर रहे हैं, कुछ उकसाने में समर्थन कर रहे हैं और कुछ धार्मिक लगाव के चलते समर्थन कर रहे हैं। यह अलग बात है कि ये समर्थन करने वाले लोग अगर एक महीने भी उनकी संगति में रहें तो इनके पसीने छूट जाएँगे और वापस भाग आएँगे।

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एक अच्छी बात देखने को मिली कि अभी तक मैंने किसी मुस्लिम स्त्री को तालिबान का समर्थन करते नहीं देखा क्योंकि उनको जन्नत की हक़ीक़त पता है। कब तक कोई भरमायेगा!

बाक़ी सबकी भी आँखें खुलेंगी जिनकी अभी तक बन्द हैं।

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हफ़ीज़ किदवई-

पढ़िए,तालिबान किसके खिलाफ है और किसके साथ और अपने आप को देखिये की आप तालिबान के हिस्से में खड़े हैं या उसके ख़िलाफ़ । यदि मन,वचन,कर्म में ज़रा भी यह विचार आपमें पाए गए,तो इनके भाई बहन ही कहलाएँगे ।

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1)तालिबान सेक्युलरिज्म के ख़िलाफ़ है और कट्टरपंथ के साथ है ।

2) तालिबान सभी धर्मों का सम्मान नही करता है ।

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3) तालिबान हर तरह के विचारों का न स्वागत करता है और न ही बर्दाश्त करता है ।

4) तालिबान अफगानिस्तान में राष्ट्रवाद का चोला पहनकर खड़ा है,अपने ख्याल से अलग दूसरे मुल्कों की तरफदारी के ख़िलाफ़ है ।

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5) महिलाओं का स्कर्ट,जीन्स पहनने के विरुद्ध हिजाब का हिमायती है । अपने मज़हब से जुदा मज़हब में शादी के खिलाफ है । अपनी मर्ज़ी से जीवन जीने,दोस्त चुनने और आज़ाद रहने के विरुद्ध है ।

6) आज तक उसके संगठन की कमान किसी महिला ने नही संभाली, वह महिलाओं को पुरुषों के बराबर बैठाने के खिलाफ है । उसे महिला नकाब में और पुरुष नँगा वहशी चाहिए,वह सहिष्णु, शांत और अहिंसाप्रिय पुरुष के भी उतना ही खिलाफ है, जितना साधारण महिला के ।

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7) तालिबान हिंसा का समर्थन करता है और अहिंसा में उसे कोई विश्वास नही है ।

8) तालिबान लोकतंत्र के विरुद्ध है, उसके हिसाब से अफगानिस्तान उसके धर्म के अनुसार धार्मिक राज्य बने और उस धर्म का कानून उसका संविधान हो ।

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9) तालिबान अपनी भाषा और खानपान को श्रेष्ठ मानता है, वह किसी दूसरे धर्म को ऐसी स्वतंत्रता देने के भी विरुद्ध रहा है,अभी गैर तालिबानी भोजन खाने पर पीट पीट कर मारने के उदाहरण भी आने बाकी हैं, क्योंकि वह अपने से अलग विश्वास के प्रति कभी सहिष्णु नही रहा है ।

10) तालिबान किसी मज़हब का प्रतिनिधित्व नही करता क्योंकि वह स्वयं में एक मज़हब है और हर वह व्यक्ति उसके मज़हब का उपासक है, जो कट्टरपंथी है ।

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11) अपने ही धर्म के उन लोगों को मारता है, जो दूसरे धर्म के प्रति नरम हैं ।

12) अपनी भूमि,अपने मज़हब,अपने विचार,अपने भोजन,अपनी भाषा,अपने रक्त को सर्वश्रेष्ठ मानता है, जिसके कारण दूसरों को परेशान करता है ।

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13) तालिबान को अपने विरुद्ध बोलने,लिखने वाले कभी पसन्द नही आते,वह उनके दमन को सही कहता है ।

14) तालिबान अपने मज़हब पर दूसरी संस्कृति के प्रभाव का डर दिखाकर लोगों को इकट्ठे करता है, उन्हें अपने मज़हब पर मंडराते खतरे को दिखाता है और दूसरों के विरुद्ध हिंसा और अलगाव को लेकर उकसाता है ।

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15) तालिबान अपने विचार के विरुद्ध खड़े लोगों के प्रति बर्बरता,बलात्कार,हिंसा और अन्याय को सही ठहराता है ।

मेरा इसी कारण तालिबान के विरुद्ध हमेशा एक सा सख्त स्टैंड रहा है । मैं इनके इस विचार के विरुद्ध सदैव रहा हूँ । तालिबान के खिलाफ लिखने,बोलने में मेरी ज़ुबान ज़रा भी लरज़ती नही है क्योंकि मैं कर्म और विचार दोनों से ही उपरोक्त तालिबानी सोच के विरुद्ध रहा हूँ । आपसे भी उम्मीद करता हूँ कि तालिबान और उसकी सोच के खिलाफ खड़े होइए ।

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