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सियासत

कुसुम राय से निकटता ने बाबू जी की छवि को बहुत नुक़सान पहुँचाया था!

बद्री प्रसाद सिंह-

जाना एक जुझारू योद्धा का… पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व राज्यपाल मां. कल्याण सिंह जी का लम्बी बीमारी के पश्चात निधन हो जाने से भाजपा एवं उत्तर प्रदेश की अपूरणीय क्षति हुई है।१९७७ के बाद के उ.प्र. के मुख्यमंत्रियों में उन्हें मैं सर्वश्रेष्ठ मानता हूं।

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अलीगढ़ के अतरौली क्षेत्र के निवासी श्री सिंह १९७७ के बाद एक चुनाव को छोड़कर सदैव अविजित रहे एवं अपनी प्रशासनिक क्षमता एवं दृढ़ता के लिए सदैव विख्यात रहे। १९७७ की जनता सरकार में चिकित्सा मंत्री के रूप में लम्बे समय से जमें दिग्गज डाक्टरों का एक झटके में स्थानांतरित करने के बाद उन्होंने किसी का स्थानांतरण निरस्त न कर अपनी दृढ़ता का परिचय दिया था।

१९९१ में पुलिस अधीक्षक, सिख आतंकवाद निरोधक अभियान, पीलीभीत के समय मैं उन्हें नजदीक से जाना, जब सिख आतंकियों द्वारा बड़ी बड़ी घटना कारित करने के बाद भी वह हताश नहीं हुए और प्रभावित जनपदों में जाकर सदैव पुलिस बल एवं जनता का मनोबल बढ़ाया और पुलिस बल की संसाधन बढ़ाने को कहा कि यह फील्ड से ही खाना खाकर बातें करते थे जो चुनाव णोजैओ जाने का मांग पर ध्यान देते रहे।

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१९९४ में सपा शासन में मैं जब पुलिस अधीक्षक ग्रामीण, अलीगढ़ हुआ तब वह नेता प्रतिपक्ष थे और प्रायः अलीगढ़ आते रहते थे। उन्होंने SSP से कह दिया था कि बद्री उनका स्थानीय प्रतिनिधि हैं। पुलिस के स्थानीय मामलों में वह मुझ पर विश्वास करते थे।एक हत्या के मामले में तो उन्होंने अपने पुत्र राजवीर सिंह की अपेक्षा मुझे तरजीह दी।एक बार शहर में AMU के पास भमोरा मुहल्ले में एक मुस्लिम की हत्या पर मुस्लिमो द्वारा आगजनी एवं तोड़फोड़ की घटना के एक माह बाद वह रात्रि में अलीगढ़ आए थे।

प्रातः ५.३० पर SP City सुभाष चन्द्र ने फोन कर मुझे बताया कि मैं तुरंत निरीक्षण गृह पहुंच कर कल्याण सिंह जी को भमोरा ले जाऊं,मैंने कहा कि वह क्षेत्र शहर में है आप जाएं,तो उन्होंने बताया कि स्थानीय हिंदू उनसे नाराज़ हैं,मैं चला जाऊं तो बेहतर होगा।मैं उठा और तत्काल वर्दी पहन कर निरीक्षण गृह पहुंच कर कल्याण सिंह जी से अनुरोध किया कि भमोरा में साम्प्रदायिक तनाव है,कृपया वहां न जाएं।उन्होंने कहा कि वहां हिंदुओं के साथ ज्यादती हुई है और डीयम ने तत्काल न आने का अनुरोध किया था इसीलिए वह अब आए हैं।मेरे पुनः अनुरोध करने पर कहा कि अभी सब सो रहे होंगे,वह पांच मिनट वहां रहकर चले जाएंगे।मैं उन्हें पायलट कर वहां ले गया। वहां एक पतली गली में एक तरफ हिंदू, दुसरी तरफ मुसलमान रहते थे।

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माननीय गली में पैदल चलकर हिन्दुओं से मिलने लगे।उनके आगमन की पूर्व सूचना न होने से हिन्दू अचंभित थे।वह हर घर गए लेकिन बहुत आग्रह के बाद भी कहीं नहीं रुके और कहा कि आज वह केवल संवेदना प्रकट करने आए हैं, बाद में फिर आएंगे। अंतिम मकान के बाद वह मुझसे बोले, बद्री कितने मिनट हो गए? मैं घड़ी देखा तो ठीक पांच मिनट हुए थे।उनकी समयबद्धता पर मैं स्तब्ध रह गया। वहां से वह अतरौली के लिए प्रस्थान कर दिया।जबतक स्थानीय मुस्लिम इकत्र होते या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र हंगामा करते,वह मुहल्ले से निकल गए थे।

शहर से निकलते ही वह मेरी कार रुकवा कर बुलाकर स्नेह से समझाया कि वह मुख्यमंत्री रह चुके हैं,प्रशासन की दिक्कत समझते हैं,वह नहीं चाहते कि कहीं दंगा फसाद हो।फिर मुझसे कहा कि अब मैं घर जाकर मुंह हाथ धो लूं क्योंकि मैं सोकर उठते ही वहां आया हूं,वह अपने घर चले जाएंगे।मैंने आग्रह किया कि मैं उन्हें घर छोड़ कर आ जाऊंगा, उन्होंने पुत्रवत स्नेह से झिड़क कर मुझे वापस भेज दिया।

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आज जब राजनेता अपनी रोटी सेंकने के लिए जनता की चिंता किए बगैर सांप्रदायिक ,जातिगत दंगा कराने में नहीं हिचकते, माननीय कल्याण सिंह जी बड़ी शिद्दत से याद आते हैं।

१९९६-९७ में मैं SP City लखनऊ था।उस समय राष्ट्रपति शासन था।वह २ माल एवन्यू में रहते थे जिसमें कभी मेरे भाई अरुण कुमार सिंह मुन्ना रहा करते थे। मैं प्रायः उनसे मिलने जाया करता था और वह सदैव स्नेहवश पास बिठाकर नाश्ता कराते थे। मैं डायबिटिक था तो वह घोर डायबिटिक थे लेकिन मेरे मना करने पर भी वह मुझे मिठाई खिलाते एवं स्वयं भी खाते। उनके पुत्रवत स्नेह के कारण मैं उन्हें बाबूजी कहता था।

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मार्च १९९७ में दोपहर में सूचना मिली कि भाजपा -बसपा में गठबंधन हो गया है और विशेष विमान से मायावती जी मुख्यमंत्री की शपथ लेने लखनऊ आ रही हैं,पूरा जिला प्रशासन अमौसी हवाई अड्डे भागा। जहाज से कुमारी मायावती जी तथा बाबूजी उतरे। जहां मायावती जी के चेहरे तथा चाल में आत्मविश्वास था ,बाबूजी हारे सेनापति की तरह निस्तेज धीरे-धीरे चल रहे थे।

बड़ा दल होने के बाद भी भाजपा , मायावती जी की जिद से पीछे हट कर ६-६ महीने मुख्यमंत्री वाले फार्मूले पर सहमत हुई थी। प्रशासन तो मायावती जी के साथ भागा,मैं बाबूजी के साथ चल रहा था। मैंने पूछा कि वह इस फार्मूले पर सहमत क्यों हुए, उन्होंने फीकी मुस्कान के साथ कहां कि वह भी मेरी तरह एक अनुशासित सिपाही है,हाई कमान का आदेश शिरोधार्य किया है। मैं उन्हें उनकी गाड़ी में बिठाकर विदा किया।

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मायावती जी के सरकार गठन के एक सप्ताह बाद मेरा स्थानान्तरण SP अल्मोड़ा के पद पर होने पर मैं सुबह उनके आवास आया तो वह मा. राजनाथसिंह जी के साथ ड्राइंग रूम में बैठे वार्ता कर रहे थे।उनके यहां मैं बेरोकटोक जाता रहता था,सो मैं भीतर चला गया।मुझे देखते बोले कि आज के अखबार में मेरा कहीं ट्रांसफर छपा है।मैंने अल्मोड़ा का बताया।उन्होने छूटते ही कहा कि वह ट्रांसफर रुकवाने के लिए मायावती जी से नहीं कहेंगे। मैं अल्मोड़ा जाऊं,छ माह बाद वह मुझे वांछित पद पर नियुक्त कर देंगे।

मैंने हंस कर कहा कि मैं स्थानान्तरण रुकवाने नहीं, आशीर्वाद लेने आया हूं।उन्होंने मिठाई खिलाकर सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया।पास बैठे मां. राजनाथ जी ने उनसे पूछा कि क्या वह मुझे जानते हैं,तो बाबू जी ने पीलीभीत की नियुक्ति के कार्य की प्रशंसा की तथा अलीगढ़ में मुझे अपना प्रतिनिधि बताया। फिर मां.राजनाथ जी ने बताया कि मैं उनका निकट संबंधी हूं तब बाबूजी ने मुझसे पूछा कि यह बात मैंने क्यों छिपाई,तो मैंने कहा कि कभी इसका अवसर ही नहीं आया।

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जब वह छ माह बाद मुख्यमंत्री बने तब मैं SP बदांयू था।मुझे बाबू जी पर बहुत विश्वास था और इसी अभिमान के कारण मैंने एक हिस्ट्रीशीटर भाजपा विधायक को एक प्रकरण में धमका दिया ।२०-२५ दिन बाद वह सांसद राजबीर सिंह जी के जन्मदिन समारोह पर बरेली आए थे उस विधायक ने मेरी शिकायत की जिसे उन्होंने अनसुना कर दिया जिसपर वह जेब में रखा त्यागपत्र हम सबके सामने ही दे दिया और बाध्य होकर उन्होंने मुझे हटाने का आदेश मेरे सामने ही अपने सचिव पालीवाल को दे दिया।बसपा से हुई दूरी के कारण उस समय एक एक विधायक महत्वपूर्ण था।

अगले दिन मैं SP पौड़ी गढ़वाल बना दिया गया।इसी समय से कल्याण सिंह जी तथा राजनाथ सिंह जी की दूरी बढ़ी और मुझे इसका नुकसान उठाना पड़ा। यद्यपि मुझे जिले में ही रखा गया लेकिन अच्छी नियुक्ति नहीं मिली।पौड़ी से मिर्जापुर, वहां से सिद्धार्थ नगर टहलता रहा और तभी वह मुख्यमंत्री पद से हटाए गए। मैं उनसे लखनऊ मिलने का कभी प्रयास नहीं किया था। मिर्जापुर आने फर इइआआआ मुझसे प्रेम से बात करते लेकिन हम दोनों में वह संबंध नहीं रह गया था।

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मां.कल्याण सिंह के इस कार्यकाल में उनकी कुसुम राय से निकटता ने उनकी छवि को बहुत नुकसान पहुंचाया।बाबू जी मिर्जापुर प्रायः आते और मां विंध्यवासिनी के दर्शन करते।दर्शन के समय प्रायः कुसुम राय जी उनके साथ रहती। अधिकारियों के स्थानांतरण को प्रभावित करने के कारण श्रीमती राय के राजाजीपुरम के घर पर वरिष्ठ अधिकारियों, विधायकों की भीड़ लगने लगी।कुछ समय के लिए वह सत्ता की दूसरी केंद्र बनने लगी थी। लोकतंत्र में लोकमत महत्वपूर्ण होता है और बाबूजी ने इस प्रकरण में लोकमत की अवहेलना की।इसका फायदा उठाकर बाबूजी के विरोधियों ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटवा दिया।

मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में सम्मिलित न होकर अलग दल बनाना उनकी सबसे बड़ी राजनैतिक भूल थी।यदि वह केंद्र में मंत्री बन गए होते तो कुछ समय बाद फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते।वह भाजपा के पिछड़ों के निर्विवाद नेता थे।उनके त्यागपत्र देने के बाद मैं उनसे मिलने २,माल एवन्यू आवास पर गया जहां वह स्नेह से मिले, चाय पिलाई लेकिन चेहरे का तेज गायब था। मैंने निवेदन किया कि मेरी ऐसी स्थिति नहीं है कि मैं उनकी कोई मदद कर सकूं लेकिन भविष्य में जब कभी भी कोई काम मेरे लायक हो, निसंकोच कहना , मैं आपका बेटा हूं और रहूंगा।उस समय भीड़ से भरी रहने वाली उनकी कोठी में नीरवता व्याप्त थी। बाद में उनके दल का एक स्थानीय नेता की हत्या होने पर वह सिद्धार्थ नगर आए थे,मैंने उनका स्वागत, सम्मान मुख्यमंत्री की ही तरह किया। डाक-बंगले में बड़ी देर तक बतियाने रहे ।उस समय कुसुम राय जी भी उनके साथ थी।

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अपने मुख्यमंत्री रहने के समय प्रशासन पर उनकी जबरजस्त पकड़ थी तथा उनका इकबाल बुलंद था।बाबरी मस्जिद का विध्वंस उनकी हिन्दुओं के लिए सबसे बड़ी देन है जिसके लिए उन्होंने कुर्सी को लात मार दी और भाजपा को बहुत आगे ले गए।उस समय हिंदू जनमानस में उनके कद का कोई नेता नहीं था,वह महानायक बन गए थे। राम मंदिर के भूमिपूजन के समय अयोध्या में उन्हें न बुलाकर उनकी अवहेलना अनुचित थी।लेकिन मुख्यमंत्री के पद पर रहते बाबरी मस्जिद के विध्वंस को मैं संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर सबसे गहरी चोट मानता हूं।जैसे स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण के बाद हिंदू- सिख संबंध सबसे खराब स्तर पर पहुंचा और सिख आतंकवाद पनपा,वैसे ही बाबरी मस्जिद विध्वंस पर हिन्दू- मुसलमान संबंध सबसे खराब हुए और पूरे उप महाद्वीप में दंगे फसाद तो हुए ही,देश में मुस्लिम आतंकवाद को भी बढ़ावा मिला।

आज माननीय कल्याण सिंह जी हमारे बीच नहीं हैं, ईश्वर उन्हें चिरशांति प्रदान करें। उन्हें शत-शत नमन।

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