रश्मि ऋचा सिंह : ये है साहित्य का असली चेहरा. यही तो करने आते हैं आप यहाँ? दोस्ती करो तो हद से आगे निकल जाओगे आप… ये आपके मुकेश कुमार सिन्हा हैं ‘हमिंग बर्ड’ वाले. जरा सा कविता क्या पसन्द कर ली. जरा सा दोस्ती क्या कर ली, ये तो अपनी पर ही उतर आये. इनको मेरा ‘किस’ चाहिए. अब यहाँ से मन भर गया. नमस्कार!
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मुकेश कुमार सिन्हा के साथ हुई मेरी चैट को एडिट कर के यहाँ पेश किया जा रहा है. ये मुझे सच्ची दोस्ती का हवाला दे कर बहकाने की पूरी कोशिश कर रहा था….. जब इसने किस की बात कही तभी मैंने इन्हें हड़का दिया! अब यहाँ ग्रुपिंग का खेल हो रहा है मेरे साथ. मुकेश कुमार सिन्हा से कोई ये पूछे की वो ये किस क्या अपनी बहन को कर सकता है? इस नीच ने मेरे हड़काने के बाद भी मुझे आँख मारी. जो लोग पैरवी के लिए यहाँ आ रहे है वो लोग मुकेश से ये पूछे की दोस्ती के नाम पर आप क्या किस तक पहुच जायेंगे? मुकेश कुमार सिन्हा जी का ग्रुप बहुत बड़ा है. इनकी ‘हमिंग बर्ड’ नाम की पुस्तक आ चुकी है. अभी “गूंज” और “तुहिन” नाम के दो काव्य संकलन भी आ चुके हैं. मैं इनसे नहीं जीत पाऊँगी. मुझे जो कहना था कह दिया ऐसे गंगा के सामान पवित्र लोग इनके गैंग को ही मुबारक हो.
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मुकेश जी की खुद की वाल देख आइये आप सभी, जो महिलाये अभी तक चुप थीं मेरी पहल पर, अब एक एक करके सामने आ रही है ये बहुत समय से ऐसा खेल खेल रहे थे यही लगता है. मैंने इनसे जितनी भी बाते की वह सब इनको एक अच्छा कवि मान कर एक मित्र की तरह की. पर ये बिलकुल से खुल गए. आरके भैया, आप सब का साथ ही ऐसी मानसिकता वालो को साहित्य के संसार से दूर रख पायेगा. अभी तक 50 महिलाओं ने ये स्वीकार किया है की मुकेश उनके साथ भी कभी न कभी इस तरह की घटिया हरकत कर चुके हैं. मेरा विरोध करने वालो को सिर्फ ये ही कहना चाहूंगी की अगर आज मैं भी चुप रहती तो शायद आपको ज्यादा अच्छा लगता? फिर शायद अगला नंबर आप अपना ही लगाते.
फेसबुक पर एक्टिव महिला रश्मि ऋचा सिंह के फेसबुक वॉल से.
उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं…
Krishna Pandey : साहित्य के नाम पर फेसबुक पर कुछ लोग ऐसे सक्रिय हैं जो अपने कुत्सित भावनाओं का नंगा नाच इनबॉक्स में चैट के माध्यम से करते हैं। वैसे आपकी बात कितनी सच है ये तो नही पता कौन सही है या कौन गलत। किन्तु आपको जिस दिन पहला अश्लील मैसेज आया था उसी दिन ब्लॉक कर देना चाहिए था, पता नही इतने दिन आपने क्यों बर्दाश्त किया? मेरा कुछ ऐसे लोगों से पाला पड़ा है जो साहित्य से जुड़े हैं / जुडी हैं और काफी नामी लोग हैं ,किन्तु उनके हरकत बहुत ही निम्न स्तर के हैं । मेरे मित्रों के मिले फीडबैक के बाद मैंने उनसे दुरी बना ली और कुछ लोगों को ब्लॉक भी कर दिया।
सुशीला शिवराण श्योराण : ऐसे मंजनू हर क्षेत्र में हैं साहित्य भी अपवाद नहीं। मैं इस शर्मनाक हरकत की भर्त्सना करती हूँ और मुकेश कुमार सिन्हा जी से पूछती हूँ यह दोस्ती कब से है, यह क्यों हुआ क्योंकि कुछ टिप्पणियाँ डिलीट की गई लग रही हैं। सन्तोषजनक जवाब न मिलने पर ये मेरी मित्र सूची से हटा दिए जाएँगे. रश्मि को अपनी तस्वीर नहीं भेजनी चाहिए थी। इससे हिम्मत बढ़ती है लोलुप मर्दों की। किन्तु माँगने पर अगर तस्वीर भेज भी दी तो इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं कि कोई भी पुरुष किसी भी महिला पर खुद को ज़बरदस्ती थोप सकता है। मर्यादा से बाहर जा सकता है। दो कदम के बाद यदि महिला को लगे कि यह आदमी मित्रता के लायक नहीं तो पुरुष को उसकी इच्छा का, उसके निर्णय का सम्मान करना ही चाहिए। मित्रता कैसी, कहाँ तक दो इंसानों का निजी निर्णय है कोई भी एक कह दे कि बस यहीं तक तो दूसरे को शालीनता से स्वीकार करना चाहिए वह निर्णय। कोई भी इंसान ख़ुद को दूसरे पर थोप नहीं सकता…..स्त्री-पुरुष से, लिंग-भेद से ऊपर उठ कर आप क्यों नहीं देखते मित्रता को? मित्रता और लोलुपता व बेशर्मी में अंतर पहचानिए। मैं जब 19 वर्ष की थी तो मुझसे 2 साल बड़े और शरीर से दुगुने लड़के को DTC की बस में उसकी निर्लज्जता के लिए पीटकर पुलिस लॉक अप में बंद करवाया था। पिछले साल सुरेन्द्र साधक को मना किया था सख्ती से कि मेरे चैट बॉक्स में आकर फ़ालतू बकवास न करे। कहने के बावज़ूद नहीं माना था। दूसरी बार फिर घटिया बात कही तो मैंने भी screen shots दिखा कर उस की घटिया हरकत फेसबुक पर सप्रमाण पोस्ट की। ऐसे पाशविक प्रवृत्ति वाले कामुक पुरुषों को बेनकाब करना ज़रूरी है।
Kiran Dixit : कोई भी व्यक्ति जो दो चार किताबें छपवा कर साहित्यकार बनने का दावा करता है जरूरी नहीं वह चारित्रिक दृष्टि से भी सही होगा. इस इन्सान ने मित्र बनते ही अपनी पुस्तक खरीदने का मुझसे भी आग्रह किया था. लेकिन हमने इस तरीके को बिल्कुल सही नहीं माना कि आप मित्र इसलिए बने हैं कि हम आपकी पुस्तक खरीदें. खैर, जो भी हुआ बहुत ही दुःखद और निंदनीय है। इस व्यक्ति की जितनी भर्त्सना की जाये, कम होगी. ऐसे लोग मित्रता के नाम को कलंकित करते हैं. वैसे मेरा मानना है कि हर इन्सान को अपनी हद भी पहचाननी चाहिए. जिस समय ये लगे कि दूसरा इन्सान अपनी हद पार कर रहा है तुरंत ही अपने को विथड्रा कर लेना चाहिए। किसी को भी इतना आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती. बहरहाल उनको तो अपनी हद पार करने का नतीजा तो पता ही चल गया •••••दिन में ही तारे नजर आने लगे होंगे. इससे ज्यादा सजा उनको और कहाँ मिल सकती थी.
Ranjana Singh : अइयो Mukesh Kumar Sinha जी,, हम तो समझते थे कवि हृदय आप केवल काँग्रेस के लिए कमजोर पड़ जाते हैं,,,, लेकिन आप तो …..साहित्य बिरादरी का नमवे माटी में मिलवा दिए…. भेरी भेरी बैड जी।
Veeru Sonker : मुकेश कुमार सिन्हा जी अब माफ़ी मांग रहे है सार्वजानिक रूप से. उनकी पोस्ट देखी मैंने अभी. माफ़ी वाली पोस्ट अभी भी मुकेश की वाल पर है उन्होंने किया तो बहुत गन्दा काम पर अब माफ़ी मांग कर गंगा नहाने की कोशिश कर रहे हैं.
उमाशंकर सिंह परमार : कविता लिखने और कविता जीने मे बहुत बडा अन्तर है तुकबन्दी करके या चन्द वायावी अल्फाजों का जमघट जमा कर कोई भी फेसबुक मे कवि होने का दम्भ भरने लगता है…
Padm Singh : इनकी हरकतों के कारण ही लगभग एक साल पहले ही इनसे दोस्ती टूट गयी थी… दो कौड़ी की कविताएं लिखने वाला ब्लागर एक किताब छपवा कर साहित्यकार बन गया…लेकिन इनकी कांग्रेसी मानसिकता कभी नहीं मरी। धिक्कार है !!
Richa Vimal Kumar : इन पर मुझे पहले से ही शक था !! बीसियों बार fr req भेजा मगर मैंने कभी एक्सेप्ट नहीं किया!! मैं बार बात डिलीट करती रही,, मगर ये जनाब बार बार req भेजते रहे। एक दिन इनबॉक्स में इन्हें हड़का कर ब्लोक कर दिया !! अफ़सोस की बात है कि लोग मुकेश जी की पैरवी में उतर रहे। ऐसे कई दो चार पुस्तकें छपवा लेने वाले तथा कथित साहित्य के पुरोधाओं का असली चेहरा सुंदर महिलाओं के inbox में पता चलता है। ऐसे लोगों का पर्दाफाश होना ही चाहिए। आपने ठीक किया ऋचा जी!
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