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उत्तर प्रदेश

जिन शिक्षकों की ड्यूटी पंचायत चुनाव में लगी और मौत हो गई, उन्हें कोरोना से मरा माना जाए!

CHARAN SINGH RAJPUT-

पंचायत चुनाव में दम तोड़ने वाले हर शिक्षक के परिजन मुआवजे के हकदार!

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वैसे तो पूरे देश में कोरोना महामारी ने बुरी तरह से कहर बरपाया है पर उत्तर प्रदेश इस महामारी से सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। प्रदेश में कोरोना महामारी के अधिक असर की वजह स्वास्थ्य सेवाओं के चरमराने के साथ ही योगी सरकार की हठधर्मिता और जबर्दस्ती पंचायत चुनाव कराना माना जा रहा है। गत साल तो कोरोना वायरस का असर महानगरों तक ही सीमित था पर इस बार शहारों से ज्यादा इसका असर गांवों में देखा जा रहा है। वैसे तो कोरोना संक्रमण से मरे हर व्यक्ति की कहानी दर्दनाक है पर जिस तरह से शिक्षकों को पंचायत चुनाव में जबरन धकेला गया और 1620 शिक्षकों की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई, यह एक आपराधिक मामले की तरह है। उत्तर प्रदेश शिक्षक संघ ने कोरोना वायरस का हवाला देते हुए न केवल योगी सरकार बल्कि इलाहाबाद हाई कोर्ट से भी चुनाव टालने की गुहार लगाई थी पर किसी ने उनकी एक न सुनी। मतलब शिक्षकों को जबर्दस्ती मौत के मुंह में धकेल दिया गया।

इसे निर्लज्जता ही कहा जाएगा कि पंचायत चुनाव में मरे प्रत्येक शिक्षक को 50-50 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा करने वाली योगी सरकार चुनाव में मरने वाले शिक्षकों की संख्या मात्र तीन ही बता रही है।

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दरअसल सरकार पंचायत चुनाव में ड्यूटी पर मरने वाले शिक्षकों को ही काउंट करके चल रही है, जबकि कोरोना महामारी का मामला बिल्कुल अलग है। इस महामारी में संक्रमण के 20-25 दिन की अवधि तक में मरीज की मौत हुई है। वैसे भी संक्रमण के कई दिन बाद कोरोना के लक्षण उभरकर सामने आते हैं। स्वभाविक है कि जो शिक्षक चुनाव के दिन संक्रमित हुए होंगे, निश्चित रूप से उन्होंने पहले इलाज कराया होगा। इलाज के दौरान ही अधिकतर शिक्षकों की मौत हुई है। यदि न्यायप्रिय प्रक्रिया अपनाई जाए तो होना यह चाहिए कि जिन शिक्षकों की ड्यूटी पंचायत चुनाव में लगी और उनकी मौत हो गई, उन्हें कोरोना महामारी से मरा माना जाए। मतलब चुनाव में ड्यूटी पर लगे शिक्षकों की मौत चुनाव से एक महीने बाद तक भी होती है तो वह कोरोना संक्रमण से हुई मौत है, यदि मृत्यु सर्टिफिकेट में भी कोरोना से मौत न लिखी हो तब भी।

दरअसल मरने वाले जाने ऐसे कितने शिक्षक होंगे, जो घर पर ही रहकर इलाज करा रहे होंगे। ऐसे भी कितने शिक्षक होंगे, जिनका कोरोना टेस्ट नहीं हुआ होगा। ऐसे भी कितने शिक्षक होंगे जिनकों अस्पतालों में बेड नहीं मिले होंगे। ऐसे में कोरोना से मौत का सर्टिफिकेट वे कहां से लाएंगे? वैसे भी इन दिनों में जिन लोगों ने दम तोड़ा है उनका किसी तरह से अंतिम संस्कार कर दिया गया। एक शिक्षक के मामले में उसे डॉक्टर ने रेमडेसिविर इंजेक्शन दिया पर अस्पताल में कोरोना टेस्ट की सुविधा न होने की वजह से उनका कोरोना से मरने का सर्टिफिकेट न बन सका। अब उनको काउंट ही नहीं किया जा रहा है। जब शहरों में मृत्यु प्रमाण पत्र बनने में तरह-तरह की दिक्कतें आती है तो गांवों क्या हाल होगा बताने की जरूरत नहीं है। वह भी लॉकडाउन के समय।

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दरअसल उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष दिनेश चंद्र शर्मा ने 16 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखकर कहा था कि राज्य के सभी 75 जिलों में पंचायत चुनाव ड्यूटी करने वाले1621 शिक्षकों, अनुदेशकों, शिक्षा मित्रों और कर्मचारियों की कोरोना वायरस संक्रमण से मौत हुई है। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि पंचायत चुनाव की ड्यूटी करते हुए अभी तक तीन शिक्षकों की मौत हुई है। दिलचस्प यह है कि जिलाधिकारियों ने बेशर्मी की हदें पार करते हुए बाकायदा राज्य निर्वाचन आयोग को तीन शिक्षकों की ही मौत की प्रामणिक सूचना भेज दी है।

दिनेश चंद्र शर्मा ने सीएम को जो पत्र लिखा है। उसके साथ सूची भी संलग्न की गई है, जिसके मुताबिक आजमगढ़ जिले में सबसे ज्यादा 68 शिक्षकों-कर्मचारियों की मृत्यु हुई है। गोरखपुर में 50, लखीमपुर में 47, रायबरेली में 53, जौनपुर में 43, इलाहाबाद में 46, लखनऊ में 35, सीतापुर में 39, उन्नाव में 34, गाजीपुर में 36, बाराबंकी में 34 शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत हुई है। शर्मा के अनुसार प्रदेश के 23 ऐसे जिले हैं, जहां 25 से अधिक शिक्षकों-कर्मचारियों की कोरोना वायरस संक्रमण से मौत हुई है।

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हालांकि 2022 में विधानसभा चुनाव को देखते हुए शिक्षकों की मौत पर जारी सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनाव आयोग से नियमों में संशोधन का आग्रह लोगों की सहानुभूति लूटने की कोशिश कीहै। योगी सरकार ने गाइडलाइन में ड्यूटी अवधि में कोविड संक्रमित शिक्षक- कर्मचारियों की मौत को शामिल करने को कहा है। चुनाव आयोग से बात कर यूपी सरकार पंचायत चुनाव में कोविड से जान गंवाने वाले शिक्षक कर्मचारियों की मदद के लिए गाइडलाइंस बदलने की बात कर रही है।

उधर उत्तर प्रदेश में यह मामला सियासी रूप ले रहा है। लोगों की सहानुभूति बटोरने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी आंखें खोली हैं। उन्होंने ट्वीट किया है कि ‘अपनी शिक्षिका पत्नी को खोने वाले गोरखपुर के शिवशंकर प्रजापति के अनुसार ‘यूपी पंचायत चुनाव लोकतंत्र नहीं मौत का त्यौहार है, चुनाव प्रत्याशी व ड्यूटी में लगे शिक्षक अपनी जान गंवा रहे हैं। चुनाव की आड़ में मौत बांटी गयी है। ये हत्याएं हैं, इनकी जवाबदेही तय हो व हर मृतक को इंसाफ मिले।’ अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में भले ही विपक्ष की भूमिका में विफल साबित हो रहे हों पर बिल्ली के भाग से छींका टूटने की फिराक में वह भी हैं। वैसे भी पंचायत चुनाव में योगी सरकार की नाराजगी का फायदा उन्हें मिला है।

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