स्त्री अस्मिता की महान रक्षक महाभारतकालीन एक अद्वितीय नायिका द्रौपदी को बलि का बकरा बनाया गया…
महाभारत युद्ध का सारा दोषारोपण उस समय के पितृसत्तात्मक समाज द्वारा द्रौपदी जैसी स्त्री, परन्तु अत्यंत बुद्धिमति व वीरांगना पर जबरन थोपा गया है। महाभारतकालीन साहित्य में द्रौपदी द्वारा दुर्योधन को अपमानित करने वाले ये शब्द कि ‘अंधे का बेटा भी अंधा ही होता है’, इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है, पुरूषवादी सत्ता द्वारा मूल महाभारत में यह बाद में जोड़ा गया है, क्योंकि वास्तव में एक नंबर के मूर्ख और जुआरी तथाकथित धर्मराज युधिष्ठिर (पुरूष) की इज्ज़त बचाने के लिए एक स्त्री द्रौपदी (स्त्री) को ‘बलि का बकरा’ बनाना था।
तथाकथित धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा अपने अनुज अर्जुन द्वारा एक राजा द्वारा आयोजित स्वयंवर में प्रतियोगिता में अनेक प्रतियोगियों में सफलतम् प्रत्याशी के रूप में जीत कर लाई गई उसकी अपनी व्याहता पत्नी (वधू) को माँ से ‘झूठ’ बोलकर कि ‘एक फल ले आए हैं’ उसका हिस्सेदार बनना इतना पतित और नीच कर्म था, जिसका इतिहास में कोई अन्य उदाहरण नहीं है!
दूसरा, समाज में ‘जुआरी ‘ होना कोई गर्व की नहीं, अपितु ‘अत्यन्त शर्म ‘ की बात महाभारत काल में भी थी और आज भी है। इंतिहा तो तब हो गई, जब जुए में कथित धर्मराज युधिष्ठिर खुद को हार गया, स्वयं के हारने के बाद अपनी पांचवीं हिस्से की हक़दार पत्नी तक को हार गया।
द्रौपदी का उस जुआरी और अत्यंत गिरे हुए युधिष्ठिर से यह प्रश्न पूछना कि ‘जो खुद जुए में हार गया, वह अपनी पत्नी (वास्तव में 1/5भाग) को दाँव पर कैसे लगा सकता है?’ बिल्कुल सर्वकालीन न्यायोचित्त, मानवोचित्त तथा स्त्रियोचित्त और न्यायसंगत बात है।
अतः महाभारत युद्ध की असली दोषी द्रौपदी नहीं, अपितु उसका असली सबसे बड़ा दोषी ‘कथित धर्मराज युधिष्ठिर’ था, जिसमें जुआ खेलने, झूठ बोलने आदि के कई अवगुण भरे पड़े थे, उस समय के पुरूषवादी समाज ने द्रौपदी जैसी विलक्षण, विदुषी और वीरांगना स्त्री पर जबरन तरह-तरह के ‘लांछन’ लगाकर युधिष्ठिर जैसे काःपुरूष को बचाने का भरपूर प्रयास किया है।
-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उ.प्र.,9-5-2020
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Amit
May 12, 2020 at 9:31 pm
गजब व्याख्या है….माने न धृतराष्ट्र… न दुर्योधन…या तो द्रौपदी या तो युधिष्ठर