-जगदीश सिंह-
धार्मिकता, जाहिलियत, कट्टरता सब एक दूसरे के पोषक! सारे प्रमुख धर्मों की शुरुआत क़बायली समाज में ही हुई। सब के सब भेंड बकरी, गाय चराने वाले चरवाहों ने ही शुरू किये। इसीलिये इनमें आधुनिक सोच एवं दर्शन कम, जाहिलियत ज़्यादा है।
कुछ धर्मों ने कुछ हद तक बदलाव होने दिया। क्रिश्चियन सभ्यता ने बहुत बदलाव कर लिया है। हिंदू धर्म में भी बदलाव को बहुत ज़बरदस्ती रोका नहीं गया। एक से एक दार्शनिक इसमें परिवर्तन की कोशिश करते रहे। वेदांत, आर्यसमाज, ब्रह्मसमाज, बुद्धिज्म वग़ैरह सबने तमाम कोशिशें कीं। बंगाल, महाराष्ट्र, दक्षिण में कई परिवर्तन आये। दिक्कत है कि, रुढ़िवादिययों ने हमेशा अपना वर्चस्व बनाये रखा। पोगापंथी हमेशा हावी होती रही। पर हिंदू धर्म में क्रमिक विकास एवं बदलाव होते रहे हैं, होते रहेगें।
सबसे ज़्यादा समस्या इस्लाम में है। फ़ारस, तुर्की वग़ैरह में बहुत दर्शन विकसित हुए। सूफ़ी धारा भी बहुत नरमपंथी थी। पर इस्लाम की एक शाखा हर बदलाव में रोड़ा अटकाती रही। सबसे ज़्यादा समस्या यह है कि, कट्टर इस्लामी देशों के हाथ अपार दौलत आ गयी। उसका इस्तेमाल करके, उन लोगों ने इस्लाम को घोर परमपंथी बनाकर रखा है।
मस्जिद, मदरसे, मुल्ला, मौलवी सब उन्हीं से पोषित होते हैं। जबतक यह सब चलता रहेगा, इस्लाम में परिवर्तन असंभव है।
अगर इनका वर्चस्व नहीं टूटा तो, या तो इस्लाम सबको ख़त्म कर देगा या बाकी लोग मिलकर, इसे ख़त्म करने पर मजबूर हो जाएँगे। ये सबको ख़त्म कर भी दिए, तो भी आपस में ही लड मरेंगे ।
अशिक्षा, ग़लत शिक्षा, गवाँरपन, जाहिलियत जितनी होगी, धार्मिकता, धार्मिक उन्माद, कट्टरता भी उसी अनुपात में होगी। सभ्यता के सम्यक् विकास से, इन सबका अंत होना है।
कुछ टिप्पणियां ये भी देखें-
Faisal khan
November 2, 2020 at 9:50 am
अपने ज़ेहन की गंदगी को साफ कीजिये,छाज तो छाज छलनी भी बोले जिसमे 70 छेंक??
जो पैदाइशी जाहिल लोग हैं वो आज इस्लाम पर उंगलियां उठा रहे हैं,जिनको हगकर धोने तक कि तमीज़ नही वो इस्लाम के बारे में लिख रहे हैं??
और कौन खत्म होगा कौन बाक़ी रहेगा ये तो वक़्त बताएगा जनाब लेखक साहब
M A
October 23, 2023 at 10:19 am
किसी के मजहब के बारे में बहस करने से पहले पूरी जानकारी ले ली जाए तब बेहतर है व्हाट्सएप और फेसबुक ज्ञान लेकर अपने आप को ज्ञानी समझने वाले लोग से, (इस्लाम जो दुनिया का सबसे बेहतरीन और पाक मजहब है) , के बारे में कोई बहस करना ऐसा है जैसा एक जाहिल से बात करना।
कोशिश करें की अपने मजहब की जो खामियां हैं उनको खतम करें