Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

खुद मीडिया ही कटघरे में है!

मनोरंजन सिंह-

मीडिया की निष्पक्षता पर उठते सवाल! मतदाता और ईवीएम के बीच किसी को आने की इजाजत होनी चाहिए या नहीं, इस यक्ष प्रश्न पर इस बार बात मौजूं है। याद कीजिए, चुनाव आते ही राजनीति, राजनीतिबाज, उनके कारकून और उनकी करतूतें ही घेरे में रहते थे। मीडिया की घेराबंदी और मार भी कमोबेश इन्हीं के इर्द-गिर्द होती थी, पर चुनाव दर चुनाव अब मार का यह घेरा तेजी से फैल रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रोचक तो यह है कि एक तरफ से सबको कटघरे में खड़ा करने वाला खुद मीडिया ही कटघरे में है। पिछले कुछ चुनाव के दौरान प्री पोल या एग्जिट पोल जिस कदर संदिग्ध हुए हैं, उस पर अंगुली उठना स्वाभाविक है। शुरुआती दिनों में अपनी सटीकता और निष्पक्षता के कारण चुनावी सर्वे काफी लोकप्रिय हो गए थे। ये सर्वेक्षण इतने सटीक निकले और उनकी तथ्य आधारित भविष्यवाणियां इतनी सही बैठीं कि केवल अटकलों पर चुनावी भविष्यवाणियां करने वालों के होश फाख्ता हो गए। सर्वेक्षणों की सटीकता वह तत्व बनी जो राजनीतिबाजों को नहीं पचा और वह इसे अपने-अपने तरह से निगलने-उगलने के लिए बाध्य हो गए।

सटीक और तथ्यपरक सर्वेक्षण की ताकत को देखते हुए कालांतर में प्री पोल और एग्जिट पोल सर्वेक्षणों की बाढ़ सी आ गई। सर्वेक्षण करवाए गए, अखबारों में छपावाये गए, तो इसमें कोई बुराई नहीं थी, लेकिन बुराई यह थी की यह सर्वेक्षण विभिन्न पार्टियों के हित-अहित की घोषणा करने वाले होने लगे। यह अब बारम्बार हो रहा है कि एक सर्वेक्षण सत्ताधारी गठबंधन को परवान चढ़ा रहा है, तो दूसरा सर्वेक्षण विरोधी गठबंधन को।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सर्वेक्षणों के तौर-तरीके, उनकी कार्य प्रविधियां तकरीबन एक जैसे रहते हैं, लेकिन उनके परिणामों में भारी अंतर रहता है। यहां नाम उल्लेख करने की जरूरत नहीं, लेकिन जहां एक सर्वेक्षण सत्ताधारी दल को बहुमत दिला रहा है, तो दूसरा सर्वेक्षण विरोधी दल को सत्तासीन होने वाला बता रहा है। सर्वेक्षणों का यह अंतर जाहिर सी बात है कि सर्वेक्षणी निष्पक्षता को रौंदकर पैदा हुआ है। इसे पैदा करने में और फिर इसे जनता के बीच प्रचारित-प्रसारित करने में न्यूज चैनलों और अखबारों की भरपूर भूमिका रही।

सीधी बात यह है कि सर्वेक्षणों में मीडिया निष्पक्षता के धुर्रे में उड़ा रहा है और अपने-अपने आकाओं के हित में अपनी-अपनी तालें ठोक रहा है। मीडिया का पाठक-दर्शक इस तमाशे को देख-सुन रहा है और उसके मन में सर्वेक्षण के प्रति संदेह भी उभर रहा है। चुनाव में भारी राजस्व की उगाही के दूसरे तौर-तरीकों को छोड़ भी दें तो मीडिया को कटघरे में खड़ा करने के लिए केवल चुनावी सर्वेक्षण ही काफी हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वस्तुतः राजनीतिक दल अपने पक्ष में आए चुनावी सर्वेक्षणों की सटीकता को भुनाने की कोशिश करते हैं। इन सर्वेक्षणों को प्रचारित-प्रसारित कराके मतदाता के मन में अपने विजय की सनसनाहट पैदा करने की कोशिश करते हैं। मीडिया को संयमित करने के उद्देश्य से भारतीय प्रेस परिषद ने जो मार्गदर्शक सिद्धांत तय किए हैं, उसमें कहीं भी नहीं कहा गया है की मीडिया चुनाव पूर्व सर्वेक्षण या एग्जिट पोल करता फिरे। दरअसल न्यूज चैनलों और अखबार की आड़ में कुछ उसके मालिक चुनावी लाभ हासिल करने में लगे हुए हैं और अपने मुनाफे के लिए सर्वेक्षण और एग्जिट पोल छापने को अपना धंधा बना लिया है।

1998 में 12वीं लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव में मीडिया की भूमिका की पड़ताल के लिए भारतीय जनसंचार संस्थान ने एक सर्वेक्षण कराया था। इसमें लोगों की राय थी कि मीडिया अपने आप में स्वतंत्र नहीं है। जिसकी वजह से वह खबरें परोसने के मामले में ईमानदार और निष्पक्ष नहीं रह पाता है, जबकि उसे स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए। आमजन की राय थी कि चुनाव के दौरान उम्मीदवार और पार्टियों के बारे में विस्तृत जानकारी देनी चाहिए। उनका यह भी मानना था कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए मतदाताओं को चुनाव के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी दी जानी चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सच तो यह है कि आज भी मीडिया संस्थान ऐसा करते भी हैं तो चुनाव आयोग की प्रचार सामग्रियों के जरिये, जिसके एवज में उन्हें पैसा मिलता है। वे इसे अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते। सर्वेक्षण में पाया गया कि अखबार और रेडियो के बनिस्बत टीवी की पहुंच आम लोगों तक ज्यादा है। 76 प्रतिशत लोग विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ते हैं, 36 फीसदी रेडियो के श्रोता हैं, जबकि 92 प्रतिशत टेलीविजन देखते हैं। मीडिया से प्रभावित होकर जो मतदाता अपने वोट का फैसला लेते हैं, उनमें से ज्यादातर वोट देने के बारे में मीडिया द्वारा प्रसारित और प्रकाशित बातों से प्रभावित होते हैं। प्रभावित होने वालों में सर्वाधिक संख्या महिलाओं की होती है।

मतदाताओं को दूसरा सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला कारक मीडिया द्वारा पार्टी और उम्मीदवार के बारे में दी जाने वाली जानकारी है। सर्वेक्षण में पाया गया था कि पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के विचार का बहुत ही कम प्रभाव मतदाताओं पर पड़ता है। पार्टियों द्वारा मीडिया के जरिए किए जाने वाले प्रचार का भी मतदाताओं पर असर नहीं के बराबर पड़ता है। इसका मतलब साफ है कि लोकतंत्र के उत्सव में मीडिया की भूमिका हर हाल में निष्पक्ष होनी चाहिए।
तो क्या इतने भारी अंतर वाले चुनावी सर्वेक्षणों को बंद कर देना चाहिए? हालांकि सर्वे प्रसार करने के पक्ष में भी कई तर्क दिए जा सकते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पहला यह कि इस प्रकार की सूचनाएं चुनाव और मतदान को गणितीय प्रमेय बनाकर एक विश्लेषण योग्य सच्चाई में बदल देते हैं और अफवाहों का खात्मा कर देते हैं। सर्वे की प्रणालियां दुनिया भर में सुविज्ञ हैं और वे कारगर साबित होती हैं। व्यापारी वर्ग और मार्केटिंग वाले उन पर निर्भर करते हैं। सर्वे समाज को समझने का तरीका है। यानी कि वह अफवाहों के मुकाबले सच के ज्यादा नजदीक हो सकता है। सर्वे सच को संरचनाओं में बदलते हैं। समाजशास्त्र के आजमाये तरीके उन्हें बनाते हैं। सर्वे का एक वस्तुगत आधार होता है। वे प्रवृत्तियों और लोगों की रूचियों के बारे में संकेत देने वाले होते हैं।

यहां गौर करने वाली बात यह है कि सर्वे के काम में अगर कोई राजनीति चल रही है, तो वह तटस्थ सर्वे नहीं है। एक ही फार्मूले से किये गए भारी अन्तर वाले सर्वे की पवित्रता संदिग्ध जो जाती है। न्यूज चैनल, अखबार या पत्रिकाओं का काम यही है कि वह जहां भी असत्य, अशिव और असुंदर देखे, उस पर अंगुली रखे। उसको नाम दे। सत्य, शिव और सुंदर की स्थापना करे। इस काम में वह ईश्वर की सत्ता के खिलाफ भी विद्रोह कर सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

राज सत्ता, धर्म सत्ता और कानून की सत्ता के खिलाफ भी आवाज उठा सकता है। वह जिस व्यवस्था में जीता है उसके दोषों को भी उद्घाटित करता है। यदि मीडिया ऐसा नहीं करता है तो वह सही मायने में निष्पक्ष और तटस्थ नहीं है। मेरा तो मानना है कि मतदाताओं को किसी के पक्ष या विपक्ष में प्रभावित करने की जगह मीडिया को अपने 75 साल के प्रौढ़ जनतंत्र को और उसको बनाने वाली जनता के विवेक पर भरोसा करना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement