महेश झालानी-
बिना पैसे इज़्ज़त भी बनाओ और लूटो समाज व सरकार को… क्या आप बेरोज़गार हैं? क्या आप करोड़ों रुपए कमाने के लिए लालायित हैं? क्या आप समाज में रुतबा जमाने के तलबगार हैं? क्या आप यह नहीं चाहते कि पुलिस के आला अफ़सर, नेता और मंत्री आदि आपसे गुफ़्तगू करें? यदि हाँ तो मैं आपको आज एक नुस्ख़ा बताने जा रहा हूँ जो सौ फ़ीसदी क़ामयाब होगा। निवेश? कुछ नहीं। साथ ही मेरा यह दावा है कि मेरा नुस्ख़ा क़ामयाब नहीं हो तो अदालत में दावा किया जा सकता है।
आज समाज में अफ़सर,राजनेता, वकील, डाक्टर,समाजसेवी आदि में सबसे बड़ा किसका रुतबा है, नहीं पता? कोई बात नहीं। मैं बता देता हूँ। पत्रकार आज समाज में सबसे ज़्यादा अपना रुतबा रखते हैं। सीएम से लेकर गवर्नर तक पत्रकारों की ख़ातिरदारी में खड़े रहते हैं। जबकि आइएएस और आइपीएस अफ़सरों की हैसियत पत्रकारों के सामने तुच्छ है। क्या पत्रकार से बेहतर अन्य कोई कारोबार है?
अगर आपको दलाली और चमचागिरी करनी आती है तो बंगला, मर्सडीज़, रजयसभा की टिकट, मंत्री तथा वाइस चांसलर तक का पद मिल सकता है। अगर किसी को मेरी बात ओर शक हैं तो मैं उदाहरण भी प्रस्तुत करने को तैयार हूँ।
अब तफ़सील से बताता हूँ नुस्ख़ा। आप पढ़ें लिखें नहीं हो तब भी बख़ूबी यह धंधा कर सकते हैं। आपको करना यह है कि किसी अख़बार के टाईटल हेतु आवेदन करना होगा। जयपुर में पुलिस आयुक्त तथा अन्य स्थानों पर कलेक्टर के ज़रिए रजिस्ट्रार आफ़ न्यूज़पेपर्स (आरएनआइ) के यहाँ आवेदन किया जा सकता है। इसके लिए एक धेला भी खर्च नहीं करना पड़ता। महीने भर में टाइटल आपके पास आ जाएगा। यदि जल्दी चाहिए तो आरएनआइ में भेंट पूजा करनी होगी। हरिद्वार के पंडों की तरह यहाँ खूब दलाल घूमते मिल जाएँगे।
टाइटल मिलने के बाद कुछ प्रक्रिया पूरी करते ही आपको साप्ताहिक, पाक्षिक या दैनिक अख़बार निकालने का ऐसा लाइसेंस मिल जाता है जिससे किसी की माँ-बहिन की जा सकती है। यानी आप पूरी तरह रजिस्टर्ड पत्रकार बनकर लूटपाट और ब्लैकमेलिंग के धंधे को बखूबी अंजाम दे सकते हो। समाज के सम्माननीय नागरिक बनकर सीएम, पीएम, मंत्री, चीफ़ सेक्रेटरी और डीजीपी की प्रेस कांफ्रेंस में जाकर रुतबे में और इजाफ़ा किया जा सकता है। हर विभाग के मंत्री, सीएस, डीजी, आइजी, कलेक्टर और एसपी आदि के ज़रिए तबादले और पोस्टिंग के धंधे को मुक़ाम पर पहुँचाया जा सकता है।
यदि आप अख़बार निकालने के पचड़े से बचना चाहते है तो कोई भी टटपूँजिए टाइप अख़बार के संवाददाता बनकर साल भर में ही करोड़ों के वारे-न्यारे कर सकते हैं। जो व्यक्ति पत्रकार बन जाता है, वह स्वतः ही हुनरमंद हो जाता है। जो पत्रकार जितना बड़ा नंगा होगा, ब्लैकमेल करने की क्षमता उतनी ही ज़्यादा होगी क्योंकि दुष्ट ग्रह की सबसे पहले पूजा होती है। शनिवार को चौराहे पर लोटा लेकर घूमने वालों को देखते ही स्वतः ही हाथ जुड़ जाते हैं और गिरने लगते हैं लोटे में पैसे। गुरु, बुध, रवि, मंगल या शुक्रवार को कोई लोटे में पैसे नहीं डालते। शनि से भी दुष्ट ग्रह होते हैं आज के पत्रकार। इसलिए इनकी पूजा करना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है।
लगे हाथ यह भी बता देता हूँ कि टाइटल मिलने के बाद विज्ञापन कैसे मिलते हैं। विज्ञापन के लिए पूरे देश में माफ़िया सक्रिय हैं। डीएवीपी द्वारा विज्ञापन की दर और प्रसार संख्या तय की जाती है। जितना ज़्यादा सर्कुलेशन, उतनी अधिक विज्ञापन की दर मुकर्रर की जाती है। रेट तय कराने और प्रसार संख्या अधिक दिखाने के लिए कुछ बुनियादी आवश्यकता होती है। ज़ैसे इंटरनेशनल करेंसी के तौर पर चमचागिरी, खूबसूरत लड़कियाँ, महँगी विदेशी शराब और भेंट स्वरूप मोटी राशि। हर त्योहार, विवाह समारोह और नव वर्ष पर महँगी गिफ़्ट। चालीस अख़बार छापकर भी दो लाख के सर्कुलेशन का प्रमाणत्र हासिल किया जा सकता है इस तरकीब से।
इस सारे खेल में कई किरदार होते हैं। डीएवीपी, आरएनआइ के अलावा प्रेस इंफ़ोरमेशन ब्यूरो (पीआइबी) की सारे फ़र्जीवाड़े में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पीआइबी का यह दायित्व है कि वह प्रत्येक अख़बार का भौतिक रूप से सर्कूलेशन की पड़ताल करे। पड़ताल होती है, लेकिन काग़ज़ों में। जहां प्रज्ञा पालीवाल जैसी अधिकारी तैनात हों, फ़र्ज़ी सर्कुलेशन का पट्टा आसानी से हासिल किया जा सकता है। पालीवाल और प्रेम भारती जैसे लोगों के पास सैकड़ों करोड़ की नक़दी, फ़्लैट, मकान, भूखंड और जवेलरी आदि कहां से आई, यह विस्तृत पड़ताल का विषय है।
फ़र्ज़ी सर्कुलेशन का एक और महत्वपूर्ण किरदार प्रदेश का सूचना और जन सम्पर्क विभाग भी है। पीआइबी की तर्ज़ पर यह भी फ़र्ज़ीवाड़ा करने और फ़र्जियों को संरक्षण प्रदान करने में अव्वल है। क़रीब दो दर्जन अख़बार ऐसे हैं जिनकी वास्तविक प्रसार संख्या मात्र 73 हज़ार है। जबकि काग़ज़ों के हिसाब से इनका सर्कुलेशन है मात्र 8.54 लाख। यह अलग बात है कि कई अख़बार तो केवल पीडीएफ फ़ाइल तक सीमित हैं। ऐसे ऐसे अख़बार भी हैं जिनका शायद ही किसी ने नाम सुना हो, उनकी प्रसार संख्या लाखों में है।
राजस्थान में फ़र्ज़ी सर्कुलेशन की कुछ बानगी भी देख लीजिए। दैनिक नवज्योति की वास्तविक प्रकाशन संख्या है 23000 और काग़ज़ों में प्रदर्शित है 200474, समाचार जगत प्रातःक़ालीन 3600 और काग़ज़ों में 227471, संध्याकालीन समाचार जगत 1400 और काग़ज़ों में 29000, जयपुर महानगर टाइम्स 4500 और काग़ज़ों में 184261, प्रातःकाल 400 और काग़ज़ों में 221841, जागरूक टाइम्स 100 और काग़ज़ों में 75300, राजस्थान स्टेटमेंट 50 और काग़ज़ों में 175300, सीमा संदेश 1500 और काग़ज़ों में 35165, टाइम्स आफ इंडिया 16400 और काग़ज़ों में 88759, पंजाब केसरी 400 और काग़ज़ों में 85098, हुक्मनामा 250 और काग़ज़ों में प्रदर्शित 8535, ईवनिंग प्लस 200 काग़ज़ों में 38670, मोर्निंग न्यूज़ 500 और 45000 तथा नफ़ा नुक़सान ने 4061 प्रसार संख्या दर्शा रही है जबकि वास्तविकता में प्रकाशित होता है 7000 प्रतियाँ।
यह तो फ़र्जीवाड़े की केवल बानगी है। असल खेल अन्य जिलों में भी डीआइपीआर और पीआइबी की निगरानी व संरक्षण में हो रहा है। बक़ौल मुख्यमंत्री, अख़बारों की न तो कोई विश्वसनीयता है और न ही कोई प्रसार संख्या। खेला बहुत बड़ा है। कई धंधेबाज़ तो अनेक जगह से फ़र्ज़ी संस्करण दिखाते हुए प्रति माह लाखों रुपए का विज्ञापन उठा रहे हैं। ऐसे मल्टी संस्करण वालों के पास न कोई प्रेस है और न ही कार्यालय। सरकार की नाक के नीचे यह घिनोना कृत्य हो रहा है। सीबीआई जाँच में उधड़ेगी परत दर परत। सीबीआई की ओर से कतिपय समाचारपत्रों के ख़िलाफ़ प्रकरण दर्ज कर उच्च स्तरीय जाँच प्रारम्भ कर दी गई है । अलवर में डीपीआर वालों ने बिना कार्यालय के ही एक अख़बार का संस्करण हज़ारों में दिखा दिया। ऐसे कई फ़र्जीवाड़े करने वालों की शीघ्र परत उधेड़ने वाली है। फ़र्ज़ीवाड़े के इस खेल में कईयों को जेल भी जाना पड़ सकता है।
अभी इस माफ़िया के ख़िलाफ़ लिखना बहुत कुछ बाक़ी है। अख़बार के अलावा एक ओर बहुत बड़ा माफ़िया है जिसका नाम है – टीवी चैनल माफ़िया। महज़ 500 रुपए का माइक लेकर आप साल भर में करोड़ों कमा सकते हो। सीएम को पता ही नहीं है कि उनकी जानकारी के बिना कैसे फ़र्ज़ी चैनलों को प्रति माह करोड़ों रुपए फूंके जा रहे हैं। लूटपाट के इस धंधे में डीपीआर के आला अफ़सर तक करोड़ों रुपए डकार रहे हैं। असली पोल और परत तब उधड़ेगी जब मेरी रिट सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल होगी। निश्चित रूप से धड़ल्ले से रिकवरी होगी।
मित्रों ! मेरे द्वारा सुझाया धंधा कैसा रहा? छोड़ो ज़लालत भरी नौकरी और पत्रकार बनकर बेरहमी से लूटो जनता को भी और सरकार को भी। उधर ईमानदार पत्रकारों को न वेतन मिल रहा है और न ही पीएफ की राशि। पत्रकारों का मालिक तो शोषण कर ही रहे हैं, लेबर विभाग भी अख़बार मालिकों का रखैल बनकर रह गया है। एक सवाल सरकार से अवश्य पूछने की गुस्ताखी क़र रहा हूँ कि जब विज्ञापन लेने की बात आती है तब सर्कुलेशन लाखों में दर्शाया जाता है। लेकिन वेतन की बात आती है तो कटोरा लेकर खड़े क्यों हो जाते हैं मालिक? दरसल मालिक और सरकार की आपसी साँठगाँठ है जिसमें श्रमजीवी पत्रकार बुरी तरह पिस कर चकनाचूर हो रहे हैं।
शेष फिर कभी। उन तथाकथित अख़बारों की भी धज्जियाँ उड़ाईं जाएंगी जिन्होंने समाज सुधारने की सुपारी ले रखी है। इनका बुनियादी धंधा ही तीयें की बैठक की ख़बर छापकर तिज़ोरी भरना है।
यदि समय रहते मीडिया को वैक्सीन नहीं लगाई गई तो मीडिया का क़ोरोना पूरे समाज को समूल नष्ट कर देगा।
परमवीर
February 6, 2022 at 10:57 pm
आज का लेख बहुत ही सराहनीय है मैं आपके लेख की दिल से प्रशंसा करता हूं
परमवीर सिंह
February 6, 2022 at 10:59 pm
बिल्कुल सच है पर कड़वा है
स्वतंत्र शुक्ला
February 7, 2022 at 10:10 pm
बहुत ही सराहनीय लेख था, हमें तो 4 नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि हम चैनल के हिसाब से नहीं खबर के हिंसाब से काम करने की सोचते हैं।