भोपाल/दिल्ली : राज्यसभा के सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी ने 58 सांसदों की याचिका पर मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के जज एसके गंगेले के खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव मंजूर कर लिया है. यह पहला मौका है जब यौन उत्पीड़न के मामले में किसी जज को हटाने की कार्यवाही प्रारंभ की गई है. अलबत्ता पहले भ्रष्टाचार के मामलों में ऐसा किया जा चुका है. बेसिर पैर की ख़बरों पर जमीन-आसमान एक करने वाले भोपाल के मीडिया की इस खबर पर चुप्पी हैरान कर रही है.
जनतादल-यू के मुखिया शरद यादव, विख्यात अधिवक्ता के टी एस तुलसी और इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह आरोपी जज गंगेले से न्यायिक जिम्मेदारी वापस ले क्योंकि ऐसा ना करना प्राकृतिक न्याय के खिलाफ होगा. शरद यादव ने सभी पार्टियों से अपील की है कि वे महाभियोग के इस प्रस्ताव पर एकजुट हों.
प्रस्ताव में जस्टिस गंगेले को बर्खास्त करने के लिए संविधान के अनुच्छेद २१७[अनुच्छेद १२४ सहित] के मुद्दों को आधार बनाया गया है. इसमें कहा गया है कि जस्टिस की अनैतिक और नाजायज मांगों को न मानने पर महिला एडीजे को प्रताड़ित ही नहीं किया गया बल्कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के प्रशासकीय जज की हैसियत से अपनी पोजीशन का दुरूपयोग कर उनका ग्वालियर से सीधी तबादला भी कर दिया. इस पर उक्त महिला जज ने पिछले साल अपनी अस्मिता, गरिमा और मान-सम्मान की खातिर नौकरी से इस्तीफा दे दिया था.
महिला जज के आरोपों की जाँच के लिए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने एक कमेटी बना दी. इस जाँच पर सवाल उठाते हुए शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने जाँच रद्द कर कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को जाँच सौंप दी, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आरोपों की और गहराई से जाँच की जरूरत है. इस पर चीफ जस्टिस एचएल दत्तू ने गहराई से जाँच के लिए तीन जजों की कमेटी गठित की, जिसमे दो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और हाईकोर्ट के एक जज शामिल हैं.
मध्यप्रदेश में पदस्थ एक वरिष्ठ न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग जैसा बड़ा मामला सामने आने पर भी सूबे की, विशेष रूप से भोपाल मीडिया की ख़ामोशी ऐसी है, मानो उसे सांप सूंघ गया हो ! इंडियन एक्सप्रेस ने सबसे पहले यह खबर प्रकाशित की थी.