मीडिया ट्रायल के कारण निर्दोष लोगों की ज़िंदगी में आ जाती है भीषण मुश्किलें
नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने पहली बार मीडिया ट्रायल के नतीजों के बारे में खुलकर बात की. एक दफे मीडिया वालों ने उनके संबंध आतंकियों से होने की बेबुनियाद खबरें चलाईं. तब उनके परिजनों ने उनसे सवाल पूछ लिए थे.
राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि टीआरपी की होड़ में टीवी न्यूज चैनलों द्वारा किए जाने वाले मीडिया ट्रायल से मानसिक प्रताड़तना झेलनी पड़ती है. उन्होंने आपबीती कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि बेबुनियाद आरोपों को लेकर मीडिया में चली खबरों से उन्हें कई बार मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ी।
संजय सिंह पहली बार सार्वजनिक रूप से बोले कि मीडिया में उन पर लगे आरोपों के बाद उनकी मां और बेटी ने भी उनसे सवाल किया। उन्होंने बताया कि उन पर जब आतंकियों से उनके संबंध होने के आरोप मीडिया में लगाए गए तो उनकी बेटी ने उनसे सवाल किया था कि पापा क्या आपके संबंध आतंकियों से रहे हैं… मीडिया वाले तो ऐसा बता रहे हैं?
संजय सिंह दिल्ली में प्रेस क्लब आफ इंडिया में ‘मीडिया ट्रायल और चरित्र हनन’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
इस कार्यक्रम में आम आदमी पार्टी के अलावा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं समेत कई पत्रकारों और बु़द्धिजीवियों ने अपनी बात रखी। सबने हत्या, बलात्कार और मीटू मामले में खबरिया चैनलों पर आरोपी व संदिग्धों के खिलाफ चलने वाले मीडिया ट्रायल की कड़ी आलोचना की।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता आदित्य झा ने भी कुछ उदाहरणों का उल्लेख किया जिनमें मीडिया ट्रायल के चलते संदिग्धों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। दुबे ने बताया कि मीडिया में साक्ष्यों की जांच-परख किए बगैर चलने वाली खबरों के चलते अदालती कार्यवाही पर असर पड़ा।
वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा ने कहा कि मजबूत कानून-व्यवस्था और न्याय-प्रणाली के बगैर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व वाले जीवंत समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है क्योंकि प्रगतिशील समाज के लिए यह बेहद जरूरी है। हालांकि, हत्या, बलात्कार और हाल ही में चर्चा में रहे मी टू के हाई प्रोफाइल मामलों में अक्सर चर्चा इतनी अधिक होती है कि कानून को अमल में लाने वाली एजेंसियां और यहां तक कि न्यायपालिका भी इस ढंग से दबाव में आ जाती है जिसकी कल्पना नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और टीआरपी के लालची खबरिया चैनल अक्सर मामले के सच को तोड़मरोड़ कर पेश करते हैं। कभी-कभी हालात ऐसे बन जाते हैं कि नॉन-स्टॉप मीडिया ट्रायल चलने लगता है जिसमें झूठी कहानी गढ़ी जाती है या फिर किसी निर्दोष की छवि संदिग्ध या आरोपी की तरह पेश की जाती है, जिसका वास्ताविकता से कोई नाता नहीं होता है। मीडिया ट्रायल और पुलिस पर बढ़ते दबाव के कारण कभी-कभी बेबुनियाद सबूतों के आधार पर चार्जशीट बन जाती है। ऐसे मामलों में सुनवाई में तेजी लाने के लिए यह देखा गया है कि अक्सर न्याय नहीं मिलता है। या तो दोषी व्यक्ति स्वतंत्र रूप से चलता है या एक निर्दोष व्यक्ति को दंडित किया जाता है।
कार्यक्रम में प्रेस क्लब आंफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद कुमार दुबे और विनीता यादव ने भी अपने विचार रखे। संचालन विनीता यादव ने किया।