-नीरेंद्र नागर-
कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने विंड टर्बाइन बनाने वाली एक कंपनी के शीर्ष अधिकारी से बातचीत करते हुए पूछा कि क्या उनके वैज्ञानिक ऐसी किसी तकनीक का पता लगाने का काम कर सकते हैं जिसके इस्तेमाल से हवा से ऑक्सिजन अलग की जा सके या उसमें मौजूद नमी को अलग कर पानी निकाला जा सके।
मोदी के इस सवाल पर कुछ लोगों ने बहुत मज़े लिए। कहा कि ऐसा हो ही नहीं सकता। कुछ और लोगों ने कहा कि हो सकता है। कुछ लोगों ने, जिनका राजनीति से ज़्यादा लेना-देना नहीं है लेकिन जो विज्ञान और उसके आर्थिक पहलू की जानकारी रखते हैं, उन्होंने कहा कि ऐसा हो तो सकता है लेकिन महँगा पड़ेगा।
मैं यहाँ मोदी के सवाल/सलाह की व्यावहारिकता पर बात नहीं करूँगा क्योंकि मेरा इस विषय में ज़रा भी ज्ञान नहीं है। लेकिन मुझे लगता है कि मोदी की खिंचाई करने वाले उनके साथ अन्याय कर रहे हैं। मोदी ने क्या यह कहा था कि ऐसा हो सकता है? उन्होंने केवल पूछा था कि क्या ऐसा हो सकता है और क्या ऐसी तकनीक निकाली जा सकती है?
मुझे समझ में नहीं आता कि ऐसा सवाल करने या ऐसी सलाह देने में बुराई क्या है! वे सारे लोग जो सदियों से पृथ्वी की समस्याओं का समाधान खोज रहे हैं, इसी तरह सवाल करते हैं और जवाब खोजा करते हैं। क्या उतनी ही ज़मीन से ज़्यादा पैदावार हो सकती है, किसी ने सोचा होगा और आज हो रही है। क्या कोई फ़सल कम समय में तैयार हो सकती है, किसी ने कभी सोचा होगा और आज हो रही है? क्या किसी तरह से कृत्रिम वर्षा की जा सकती है, किसी ने सोचा होगा और आज हो रही है। क्या गर्भाशय के बाहर किसी भ्रूण का निर्माण हो सकता है, किसी ने सोचा होगा, और आज हो रहा है।
कहने का अर्थ यह कि मानव जगत जानता है कि दुनिया के संसाधन सीमित हैं और उसकी कोशिश रहती है कि कैसे इन सीमित संसाधनों से ही तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से पहले से ज़्यादा और बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकें। मोदी का सवाल उसी दिशा में एक क़दम है।
मोदी दूसरे प्रधानमंत्रियों की तरह वही नहीं बोलते जो उनके सहायक उन्हें बताते हैं, वही नहीं करते जो विशेषज्ञ उन्हें करने को कहते हैं। अपने इसी अति आत्मविश्वासी स्वभाव के कारण जो उन्हें निरंकुश बना देता है, उन्होंने अपने शासन के दौरान नोटबंदी और बिना तैयारी के लॉकडाउन जैसे बहुत-से ब्लंडर किए हैं जिनका दुष्परिणाम उन्होंने ख़ुद तो कम लेकिन जनता और देश ने काफ़ी भोगा है। इसके साथ ही उन्होंने अपने शैक्षणिक और वैवाहिक मामलों में काफ़ी फ़र्ज़ीवाड़ा और लुकाव-छुपाव किया है। मैं उन मुद्दों पर उनके साथ बिलकुल ही नहीं हूँ जैसा कि आपमें से कई लोग जानते भी होंगे।
लेकिन केवल इन्हीं कारणों से उनका तब भी विरोध किया जाए और खिल्ली उड़ाई जाए जब वे हवा से ऑक्सिजन या पानी निकालने की सकारात्मक बात करें, यह मुझे सही नहीं लगता। उनका यह सवाल मेरे समक्ष उनकी एक ऐसे नेता की छवि पेश करता है जो तकनीकी विकास के सहारे किसी समस्या का समाधान खोज रहा है।