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सुख-दुख

बाइडेन ने दिल्ली से वियतनाम पहुँचते ही कर दी मोदी जी की बेइज्जती!

शीतल पी सिंह-

बजट में G20 के आयोजन के लिए खुद मोदी सरकार ने 990 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था लेकिन खर्च किये 4100 करोड़!

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क़रीब तीन गुना अधिक हमारे आपके टैक्स के ज़रिए सरकारी ख़ज़ाने में जमा की गई रक़म चुनाव से पहले मोदी मोदी करवाने में उड़ाई गई ।

और नतीजा, बाइडेन जैसे ही दिल्ली से वियतनाम पहुँचे तो सबसे पहले प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और कहा कि उन्होंने मोदीजी से मानवाधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता और सामुदायिक भेदभाव का मुद्दा उठाया!

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दिल्ली में तो मोदी सरकार ने उनकी प्रेस कॉन्फ़्रेंस होने ही नहीं दी.

BIG STATEMENT BY US PRESIDENT BIDEN in Vietnam

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‘As I always do, I raised the importance of respecting human rights and the vital role the civil society and a free press have in building a strong and prosperous country with Mr Modi’ – @POTUS, addressing a press conference in Vietnam.

Note: Modi govt avoided joint media interaction in New Delhi

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पिछले पांच G20 सम्मेलनों पर हुए ख़र्च का ब्यौरा

India/भारत, 2023: ₹4100 करोड़

इंडोनेशिया, 2022: ₹364 करोड़

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जापान, 2019: ₹2660 करोड़

अर्जेंटीना ,2018: ₹931 करोड़

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जर्मनी, 2017: ₹642 करोड़

भारत की प्रति व्यक्ति आय उपरोक्त सभी से काफ़ी कम है। जर्मनी और जापान के सामने तो शर्मनाक है लेकिन साहेब तो सरकारी खजाने से 2024 के चुनाव की तैयारियां शुरू कर चुके हैं !

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संजय कुमार सिंह-

सम्मेलन खत्म हुआ, प्रचार पूरा हुआ प्रेस कांफ्रेंस वियतनाम में… जी20 की तैयारियां चाहे जो हों, विशेष तौर पर बना मंडप, जरा सी बारिश में डूब गया, प्रेस कांफ्रेंस हुई नहीं, वियतनाम में होने से बदनामी भी कम नहीं हुई लेकिन प्रचारक शायद संभाल लें। पर तैयारियों में कमी यह रह गई कि फिल्म की सूटिंग से पहले सब लोग सामान्य लगे इसलिए सोने-चांदी के बर्तन में खाने की रिहर्सल हुई थी। इस बार वह भी हो सकती थी और होती तो कोई क्या बिगाड़ लेता। तैयारी अच्छी कही जाती। पर सबसे हासिल क्या हुआ यह चुनाव के बाद ही पता चलेगा।

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बहत सारे लोगों को लगता है कि जी-20 सम्मेलन से भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी होगी। तथ्य यह भी है कि सम्मलेन के लिए बने और बहु प्रचारित मंडपम में दूसरे दिन पानी भर गया। दूसरा तथ्य यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन चाहते थे कि एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस हो। अखबारों में खबर छपी थी कि अमेरिका या व्हाइट हाउस ने इसके लिए ‘सर्वश्रेष्ठ’ और ‘दुस्साहसिक’ प्रयास किये पर नाकाम रहा। आखिरकार यह एलान कर दिया गया था कि वे वियतनाम पहुंच कर प्रेस कांफ्रेंस करेंगे। प्रेस कांफ्रेंस हुई भी – ट्वीट देखिये।

वहां उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उन्होंने मानवाधिकार और स्वतंत्र प्रेस के महत्व का मुद्दा उठाया था। खबरों के अनुसार, सम्मेलन खत्म होने से पहले ही वे वियतनाम रवाना हो गये और हनोई में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में यह टिप्पणी की। बीबीसी की एक खबर के अनुसार, आलोचकों का कहना है कि 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद से अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों पर हमले बढ़ गये हैं। उनकी सरकार ने इससे इनकार किया है।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा मई में जारी नवीनतम वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के अनुसार भारत का स्थान पिछले साल के 161 से 11 स्थान नीचे चला गया है।

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रवीश कुमार-

जी 20 के कई देशों में मीडिया की हालत ख़राब नहीं है बल्कि बहुत ही ख़राब हो चुकी है। मीडिया को कुचला जा रहा है मगर इस पर कहीं चर्चा नहीं। फिर भी व्हाइट हाउस के कारण प्रेस का सवाल चर्चा में आ ही गया।

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व्हाइट हाउस ने पूरी दुनिया के सामने इसे उजागर कर दिया कि उसके अधिकारियों ने हर तरह से कोशिश की, पूरी कोशिश की कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बाइडन की आपसी बातचीत के मौके पर सवाल जवाब पूछने का मौका मिले लेकिन मना कर दिया गया।

सरकार के बयान में सब है, मानवाधिकार भी और लोकतंत्र भी, स्वतंत्रता भी है बस प्रेस को कवर करने की स्वतंत्रता नहीं है। लेकिन जो काम G20 नहीं कर सका वो काम द वायर ने 20 मीडिया संस्थानों के संपादकों पूर्व संपादकों से बात कर एक मीडिया-20 का आयोजन कर दिया।

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M20 ने जी-20 के नेताओं को यह संदेश दिया है कि अगर उनके देशों में मीडिया स्वतंत्र नहीं है, तो वे जिन समस्याओं को हल ढूंढने की उम्मीद कर रहे हैं, उनमें से किसी का समाधान नहीं किया जा सकता है.।

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1 Comment

1 Comment

  1. शैलेश श्रीवास्तव

    September 12, 2023 at 10:43 am

    बिक गया क्या भड़ास भी,एक विदेशी राष्ट्रपति के स्टेटमेंट पर अपने देश के प्रधानमंत्री का मजाक बनाना कहाँ तक ठीक है। कभी अमेरिका के राष्ट्रपति को भारत जैसे देश के सामने नतमस्तक होना पड़े , कैसे बर्दास्त कर सकता है, लेकिन अमेरिका की मजबूरी है भारत के सामने झुकना।
    जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने विश्व राजनीति की नई इबारत लिखी है ,उससे अन्य राष्ट्र के पेट मे दर्द होना लाजिमी है।
    अब दिक्कत भारत के मोदी विरोधियों को यह है कि दिन प्रतिदिन मोदी एक नई लकीर खींच रहे हैं। तो अब देश का विपक्ष कभी चीन कभी पाकिस्तान और अब अमेरिका के द्वारा अपनी राजनीति को करने का असफल प्रयास कर रहे हैं।

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