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सुख-दुख

केजरीवाल पर संपादक ओम थानवी और नरेंद्र मोदी पर पत्रकार दयानंद पांडेय भड़के

Om Thanvi : लोकपाल को वह क्या नाम दिया था अरविन्द केजरीवाल ने? जी, जी – जोकपाल! और जोकपाल पैदा नहीं होते, अपने ही हाथों बना दिए जाते हैं। मुबारक बंधु, आपके सबसे बड़े अभियान की यह सबसे टुच्ची सफलता। अगर आपसी अविश्वास इतने भीतर मैल की तरह जम गया है तो मेल-जोल की कोई राह निकल आएगी यह सोचना मुझ जैसे सठियाते खैरख्वाहों की अब खुशफहमी भर रह गई है। ‘साले’, ‘कमीने’ और पिछवाड़े की ‘लात’ के पात्र पार्टी के संस्थापक लोग ही? प्रो आनंद कुमार तक? षड्यंत्र के आरोपों में सच्चाई कितनी है, मुझे नहीं पता – पर यह रवैया केजरीवाल को धैर्यहीन और आत्मकेंद्रित जाहिर करता है, कुछ कान का कच्चा भी।

<p>Om Thanvi : लोकपाल को वह क्या नाम दिया था अरविन्द केजरीवाल ने? जी, जी - जोकपाल! और जोकपाल पैदा नहीं होते, अपने ही हाथों बना दिए जाते हैं। मुबारक बंधु, आपके सबसे बड़े अभियान की यह सबसे टुच्ची सफलता। अगर आपसी अविश्वास इतने भीतर मैल की तरह जम गया है तो मेल-जोल की कोई राह निकल आएगी यह सोचना मुझ जैसे सठियाते खैरख्वाहों की अब खुशफहमी भर रह गई है। 'साले', 'कमीने' और पिछवाड़े की 'लात' के पात्र पार्टी के संस्थापक लोग ही? प्रो आनंद कुमार तक? षड्यंत्र के आरोपों में सच्चाई कितनी है, मुझे नहीं पता - पर यह रवैया केजरीवाल को धैर्यहीन और आत्मकेंद्रित जाहिर करता है, कुछ कान का कच्चा भी।</p>

Om Thanvi : लोकपाल को वह क्या नाम दिया था अरविन्द केजरीवाल ने? जी, जी – जोकपाल! और जोकपाल पैदा नहीं होते, अपने ही हाथों बना दिए जाते हैं। मुबारक बंधु, आपके सबसे बड़े अभियान की यह सबसे टुच्ची सफलता। अगर आपसी अविश्वास इतने भीतर मैल की तरह जम गया है तो मेल-जोल की कोई राह निकल आएगी यह सोचना मुझ जैसे सठियाते खैरख्वाहों की अब खुशफहमी भर रह गई है। ‘साले’, ‘कमीने’ और पिछवाड़े की ‘लात’ के पात्र पार्टी के संस्थापक लोग ही? प्रो आनंद कुमार तक? षड्यंत्र के आरोपों में सच्चाई कितनी है, मुझे नहीं पता – पर यह रवैया केजरीवाल को धैर्यहीन और आत्मकेंद्रित जाहिर करता है, कुछ कान का कच्चा भी।

अगर षड्यंत्र या भीतर-घात के प्रमाण हैं तो उन प्रमाणों को एक सुलझे हुए राजनेता की तरह संजीदगी से सामने रख दोषियों को पार्टी से निकाल बाहर करना चाहिए। अलग होकर फिर ‘अपने’ विधायकों के साथ नई पार्टी खड़ी कर लेने का विचार भी सामूहिकता की नहीं, एकछत्र राजनीति का संकेत देता है। केजरीवाल शायद भूल गए कि नई किस्म की राजनीति में उनके पराक्रम से लोगों ने गांधीजी, जेपी और क्रांति जैसे प्रतीक जोड़ लिए थे। सरकार या पार्टी आए या जाए, वे सर्वोच्च नेता बने रहें, तब भी उनके मुंह से यह भाषा और अहंकार उन्हें वहां से लुढ़का लाएगा, जहाँ वे शान से – अपने कौशल और उद्यम से सबको साथ रखते हुए – जा पहुंचे थे। यह भाषा, यह तेवर, यह अहंकार तो उसी पुरानी राजनीति के उपादान हैं, अरविन्द भाई। इनसे बचो, अब भी कहने को मन करता है! और हाँ, जिसने यह वार्तालाप टेप किया है, वह भी कम कारीगर नहीं। वह योगेंद्र-प्रशांत खेमे का प्यादा जान पड़ता है। ऐसे लोग भी ‘आप’ में चले आए, कैसा मजा है!

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Dayanand Pandey : तमाम चुनावी वायदों में नरेंद्र मोदी ने एक यह भी वायदा किया था कि चुन कर आए अपराधी सांसदों की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कर उन के मुकदमों की निष्पक्ष सुनवाई कर तीन महीने में ही दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया जाएगा । चाहे वह सांसद भाजपा का ही क्यों न हो ! इस वायदे का क्या हुआ ? लोक सभा भूल गई । तो यह मीडिया भी क्यों भूल गई है ? बिकाऊ है इस लिए ? एक भी वायदा इस आदमी ने पूरा किया हो तो कोई मुझे बताए भी !

वरिष्ठ पत्रकार द्वय ओम थानवी और दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से.

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