दक्षिण भारतीय फ़िल्मों की कामयाबी ने अभिषेक बच्चनों और तुषार कपूरों को औक़ात पर ला दिया!

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दिलीप मंडल-

दक्षिण भारतीय फ़िल्मों की कामयाबी ने बॉलीवुड की अकड़ ढीली कर दी है। करन जौहर उस बीमारी का नाम है, जिसने बॉलीवुड को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुँचाया है।

बड़े लोगों के निकम्मे बेटी-बेटियों को प्रमोट करने के धंधे ने बॉलीवुड को बेजान बना दिया है। Nepotism का अंत हो। पब्लिक थक चुकी है।

वही 12-15 परिवार में घूम घूम कर टैलेंट की तलाश हो रही है। अभिषेक बच्चन और तुषार कपूर तक को एक्टर के तौर पर चलाने की कोशिश की गई। कैसे चल पाएगा? कब तक चलेगा। फेल हो गया है।

स्टार पुत्र या पुत्री होना कोई अपराध नहीं है। वे अच्छे और सफल हो सकते हैं। लेकिन निकम्मे अभिषेक बच्चन को स्टार बनाने की ज़िद में जब उसे लगातार 22 फ़िल्में दी जाती हैं और वह सबमें फ़्लॉप होने के बावजूद उसे 23वीं फ़िल्म दी जाती है, ये नीचता है। बॉलीवुड अपनी ऐसी ही नीचताओं के बोझ के तले दबकर मर रहा है। दक्षिण उसकी जगह घेर रहा है।



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