सत्येंद्र पीएस-
यशवंत सिंह सन्त बन चुके हैं। न्यूजलांड्री पर उनका साक्षात्कार खबर के प्रारूप में आया है। सन्त इसलिए कहा कि वह दम्भ से परे लगे। साक्षात्कार में एक बार कहते हैं कि आम आदमी पार्टी के गोपाल राय के साथी होने की वजह से अन्ना आन्दोलन से नजदीक से जुड़े। भड़ास वेबसाइट ने एक तरह से अन्ना आंदोलन की ब्रांडिंग की।लेकिन वह कोई दम्भ नहीं दिखाते न इसका श्रेय लेते हैं, बल्कि यह कहकर निकल जाते है कि इससे वेबसाइट की व्यूअरशिप बढ़ी। उन्होंने दम्भ नही दिखाया कि उन्होंने आम आदमी पार्टी खड़ी करा दी थी! ऐसे तमाम प्रसंग आते हैं जहां उनके बयान में गांधी सी ईमानदारी झलकती है। हिंदी पट्टी के बेजुबान निरीह पत्रकारों की वह आवाज ही नहीं रहे, बल्कि आर्थिक संकट में फंसे लोगों के लिए क्राउड फंडिंग कराने, व्यक्तिगत रूप से मदद करने में भी आगे रहे।
यह इंटरव्यू उनके गाजीपुर से ग्रेटर नोएडा पहुँचने का दास्तान और एक आम पत्रकार के संघर्षों की गाथा है। ईमानदारी से कहूं तो मौजूदा स्वरूप के परिवारी यशवंत मुझे ज्यादा बेहतर लगते हैं।
एक अवधी भाषी मित्र ने साझा मित्र के लिए एक अवधी कहावत का इस्तेमाल किया था “वह गाँड़ से चवन्नी उठाने वाले लोग हैं।” दिलचस्प कहावत है। अश्लील इसलिए नहीं है कि मैंने अश्लीलता की परिभाषा पढ़ी है। क्रांतिकारियों पर हमेशा मुझे सन्देह रहता है और कहीं न कहीं उनके वेस्टेड इंटरेस्ट पर ध्यान जाता है जो पॉवरफुल के सामने पूंछ हिलाते हैं और कमजोर के सामने शेर बन जाते हैं। ये बेसिकली सेटल होने की कवायद में लगे भटकती आत्मा होते हैं और इनके बीच का कोई कॉमरेड योगी मोदी के साथ यो यो करने लगे तो क्रांति मचाने जुट जाते हैं। लेकिन उनका असल मकसद खुद किसी तरह यो यो करने की मंशा लिए हुए होता है। ऐसे लोगों को यशवंत कुछ ज्यादा ही चुभते हैं। मुझे याद है कि भड़ास जब शुरू हुआ तो करीब सभी हिंदी मीडिया संस्थानों में भड़ास का यूआरएल ब्लॉक कर दिया था और केबिन में बैठने वाले उसके एक एक अक्षर बांचते थे। (और शायद अभी भी ब्लॉक है)। लेकिन कहाँ किसी के रोके यह दुनिया रुकती है!
यशवंत ने निश्चित रूप से कारपोरेट दुनिया मे एक अलग मुकाम बनाया और उनकी यह कहानी महात्मा गांधी की जिंदगी सी खुली किताब लगी कि जो अच्छा लगा वह किया, और जहां खुद को गलत पाया, करेक्शन कर लिया। वह कहते हैं कि उनकी वेबसाइट अब चेक करने लगी है। और मुझे लगता है कि उन्होंने अपने जीवन को भी “चेक” किया है और अब “बैलेंस्ड” हो गए हैं।
तमाम लोग मेरे इस लिखे से नाखुश हो सकते हैं, यशवंत को गालियां देते कमेंट कर सकते हैं, मुझे कह सकते हैं कि यशवंत ने आपको व्यक्तिगत मदद की या आपकी जात के हैं इसलिए लिख दिया है! जिसकी जो मर्जी, कहने को स्वतंत्र है। लेकिन यशवंत का इंटरव्यू उनकी जिंदगी का मुकम्मल बयान है, जो उनके भीतर हाशिये पर खड़े समाज के दर्द व उनके निकट बने रहने के जज्बे को दिखाता है।
इंटरव्यू का लिंक ये रहा- https://www.newslaundry.com/2022/07/07/bhadas4media-hindi-media-watchdog-that-thrives-on-guts-and-gossip
डिस्क्लेमर : यशवंत के साथ एक ही फोटो है मेरी 2014 की। वह बीएचयू के मेरे सीनियर रहे हैं। मेरे बुजुर्गवार हैं लेकिन मुझे ही भैया कहते है। कुल मिलाकर इतना गड्ड मड्ड है कि वह मेरे मित्र हैं, इतना ही जानें। जो मैंने लिखा, वह मेरा तथ्य है। आपका अपना तथ्य दूसरा हो सकता है। विरोध कर सकते हैं, अपना दुःख साझा कर सकते हैं, बदतमीजी नहीं। अदरवाइज गरियाये जाने के बाद फेसबुक पर ब्लॉक किए जाएंगे।
Dr Ashok Kumar Sharma
July 8, 2022 at 2:43 pm
भाई बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने। निश्चित रहिए यशवंत की तारीफ को लेकर, कोई आपको इसलिए नहीं गरियाएगा क्योंकि आप ठाकुर है। भाई, मैं तो ब्राह्मण हूं। मोदी भक्त हूं। तब भी यशवंत पर प्रेम है मेरा। दरअसल यशवंत स्वतंत्र पत्रकारिता की एक ऐसी मशाल हैं जिसमें से कपूर की गंध आती है भले ही कुछ लोगों की नाक में उससे जलते मांस जैसी दुर्गंध आती हो। वह बेचारे हमदर्दी के काबिल लोग हैं जिन्हें अपनी जलती हुई ….नजर नहीं आती।
यशवंत जैसे लोग तारीफ के हकदार हैं और बढ़ावे के भी। मैंने तो यशवंत की तारीफ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक से तब भी की थी जब भड़ास में वह मुख्यमंत्री के विरुद्ध छाप रहे थे।
डॉ. निशंक जी ने भी माना कि कहीं किसी प्रकार की संवादहीनता और आपसी समझ की कमी के कारण कोई और ही तत्व स्थितियां खराब कर रहा है। मुख्यमंत्री जी सही थे।
इसका भान मुझे तब हुआ जब मैंने मुख्यमंत्री की ओर से एक स्पष्टीकरण भड़ास को भेजा। यशवंत ने उसे बिना एक भी शब्द काटे कुछ ही घंटों में प्रकाशित कर दिया। कुछ ही घंटे के भीतर मुख्यमंत्री जी को शिकायत विशेषज्ञों ने यह समझाने की कोशिश की कि देखिए आपके ओएसडी ही भड़ास के जासूस हैं और आप के विरुद्ध खबरें छपवा रहे हैं। मुख्यमंत्री को बहुत हंसी आई क्योंकि हमारी बातचीत उस पर उस मुद्दे पर पहले ही हो चुकी थी।
यशवंत की तारीफ मानिए या कमी। वह दिल से एक संख्या एक मासूम बच्चे की तरह से हैं। उनकी अपनी अवधारणाएं भी है और पूर्वाग्रह भी रहा करते हैं। मुझे ऐसी कोई जरूरत नहीं पड़ी है इसलिए मैंने उन्हें कभी इस तरह के किसी मुद्दे पर घेरने की कोशिश नहीं की है क्योंकि उसका कोई फायदा या नुकसान मुझे है ही नहीं। लेकिन खूबी की बात यह है कि अगर आप तर्कपूर्ण ढंग से तथ्यों के साथ और सच्चाई से अपनी बात रखें तब यशवंत मान जाते हैं और सहयोग भी करते हैं।
यशवंत को सहयोग के लिए आप तब भी मना सकते हैं, जब आप अपनी गलती का प्रतिशत बताते हुए उन पर यह साबित कर दें कि आपकी त्रुटिहीनता का प्रतिशत गलती से अधिक है।
यशवंत जैसे योद्धाओं की तलवारों के मुकद्दर में म्यानें नहीं हुआ करतीं। उनके नसीब में एक मुहिम के बाद दूसरा मुहिम लिखा होता है।
इस तरह की अनवरत जंगों के सिलसिले में यशवंत जैसे महाराणाओं के हिस्से में कोई अकेला कोई सल्तनत और कोई खजाना नहीं हुआ करता है।
जैसा भी है यशवंत मेरा प्यारा भाई है और अभिमान के योग्य दोस्त भी।