लखनऊ : पत्रकार महेंद्र अग्रवाल ने प्रधानमंत्री, प्रेस काउंसिल, सूचना प्रसारण मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं निदेशक आईबी को बताया है कि मीडिया अपनी कमाई की भूख में तरह तरह की नकली यौनबर्द्धक दवाओं के भ्रामक विज्ञापन छापकर ठगों के कारोबार को बढ़ावा दे रहा है। यह सब करके वह पाठकों के विवेक और अभिरुचि के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है। पिछले दिनो भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित ‘धत्कर्मी विज्ञापनों से आज पटे अखबारों के पन्ने, बेशर्मों को चाहिए सिर्फ धंधा’ शीर्षक खबर का संज्ञान लेते हुए उन्होंने बताया है कि प्रिंट मीडिया की इस करतूत से जनजीवन में अपसंस्कृति को प्रोत्साहन फरेबियों को अवैध दवा के कारोबार बढ़ावा।
आश्चर्य है कि देश के प्रायः सभी प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, भास्कर, प्रभात खबर आदि बेखौफ ऐसी संदिग्ध दवाओं के गंदे विज्ञापन गंदे चित्रों के साथ लगातार छाप रहे हैं और उनके संबंध में न तो स्वास्थ्य विभाग संज्ञान ले रहा है, न शासन और सरकार। यह भी साफ है कि इससे हर जिम्मेदार अधिकारी और सरकार अवगत है कि रोज इन अखबारों में उन्हीं अधिकारियों और नेताओं के खिलाफ खबरें होती हैं तो उनकी निगाह उन गंदे, भ्रामक विज्ञापनों पर भी अवश्य जाती होगी। इस तरह वे जानबूझ कर अवैध दवा बिक्री की खुल्लमखुल्ला धोखाधड़ी के इतने गंभीर किस्म के अपराध की अनदेखी कर रहे हैं।
यह पूरा का पूरा जनता को धोखा देने का कारोबार है, जिसमें मीडिया, विज्ञापनदाता, राजनेता और अधिकारी सबकी सांठगांठ और आपसी सहमति है। हमारी कानून व्यवस्था भी इसके लिए जिम्मेदार है। ये गंदे विज्ञापन रोजाना घरों में महिलाओं और बच्चों की आंखों के सामने से गुजरते हैं। तुरंत ऐसे विज्ञापन छापने वाले अखबारों के मालिकों, अवैध दवा निर्माताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाए। इस तरह से भारतीय संस्कृति का चीरहरण किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शासन और सरकार के स्तर से कार्रवाई नहीं की गई तो इसके खिलाफ सामाजिक बहिष्कार अभियान चलाया जाएगा।
इंसानs
April 26, 2015 at 1:15 pm
B&M डेस्क के प्रबंधकों द्वारा अखबारों में गंदे व अभद्र विज्ञापनों पर आपत्ति व उनके विरुद्ध उचित कार्यवाही की मांग के लिए उन्हें मेरा साधुवाद। स्वयं मेरे लिए हिंदी भाषा में कुछ कहने लिखने व मुद्रित करने में सच्चाई व जनकल्याण के लक्षण होना अति महत्वपूर्ण व आवश्यक है। वर्षों से सयुंक्त राष्ट्र अमरीका में रहते अधेड़ आयु में मुझ गंवार पंजाबी में हिंदी भाषा के लिए रूचि कोई अकस्मात् परिस्थिति नहीं बल्कि इस लिए कि हिंदी भाषा उस पावन भारतीय धरातल पर जी रहे करोड़ों नागरिकों को संगठित कर एक डोर में पिरोती भारत राष्ट्र की सम्भाव्य राष्ट्रभाषा है। मीडिया में खुलकर हिंदी का अंग्रेजी लिप्यंतरण अनुचित है लेकिन गंदे व अभद्र विज्ञापन तो विनाशकारी हैं। इन्हें रोकना होगा।