Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

अजब-गजब श्रद्धांजलि : पंडित राजन मिश्रा के नाम पर खुला और बंद भी हो गया अस्पताल!

भाष्कर गुहा नियोगी

बनारस। संगीत के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाला बनारस घराना जब अपने अस्तित्व को बचाने का रास्ता तलाश रहा है तो बनारस घराने के जाने-माने गायक स्वगीर्य पंडित राजन मिश्रा के नाम पर बनारस में संगीत विश्वविद्यालय या अकादमी न बनाकर अस्थायी अस्पताल बना उन्हें श्रद्धांजलि दिया गया जिसे फिलहाल बंद भी कर दिया गया है।

पंडित राजन मिश्रा का कोरोना से निधन हो गया था। इलाज की समुचित व्यवस्था कराने में नाकाम सरकारों ने अपनी नाक बचाने के लिए पंडित जी के नाम पर कोरोना ट्रीटमेंट अस्पताल बनवाया था। पर इसे बंद कर सरकार ने अपना काला चेहरा दिखा दिया कि वह बस तात्कालिक और क्षणिक लाभ के लिए काम करती है। आम जन के दीर्घकालीन भले के लिए न तो उसके पास सोच है और न ही कोई योजना।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बेहतर होता पंडित जी के नाम पर काशी में कोई संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना की जाती जिससे न केवल पस्त हो चले बनारस घराने की धड़कन को नई पहचान मिलती बल्कि बनारस के सदियों की समृद्धशाली संगीत परम्परा से नई पीढ़ी रूबरू होती। ये न कर बेसुरे राजनीति के आकाओं ने ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’ के तर्ज पर जल्दबाजी में बीएचयू के एम्फीथियेटर मैदान में डीआरडीओ की ओर से बनाए गए अस्थायी अस्पताल का नामकरण पंडित राजन मिश्रा के नाम पर कर दिया। कोरोना के दूसरी लहर में बड़े पैमाने पर हुई मौतों के बाद गफलत की निद्रा से जागी सरकार ने इसे तैयार करवाया था।

फिलहाल कोरोना की दूसरी लहर के धीमे पड़ने और मरीजों की संख्या में कमी को देखते हुए इसे बंद कर दिया है। इसमें भर्ती कोरोना के दर्जन भर मरीजों को सर सुंदरलाल अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया है। कोरोना के संभावित तीसरी लहर के मद्देनजर इसका मूलभूत ढांचा बरकरार रहेगा ताकि जरूरत पड़ने पर इसे चालू किया जा सके।

प्रश्न ये है संगीत के इस महारथी का नाम अस्थायी अस्पताल से जोड़ने के पीछे क्या मंशा थी, जब अस्पताल को बंद ही होना था? किसी संगीतज्ञ को श्रद्धांजलि देने के इस तरीके के पीछे सरकार की दिवालिया सोच जाहिर होती है। अस्पताल के बाहर लगे विशालकाय होर्डिंग में एक तरफ पं राजन मिश्रा तो दूसरी तरफ बनारस के सांसद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर दरसअल दो अलग-अलग छोर हैं जो संगीत और राजनीति के अंतर्विरोधों को उजागर करता है। एक छोर अगर ज़िंदगी को सुरीला और मन की सीमाओं के परे ले जाकर सत्यम, शिवम्, सुन्दरम की भावना से जोड़ता है तो दूसरा छोर जिंदगी को बेरस बनाकर दिलों में दूरियां और मन में कड़वाहट भरता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसे में किसी सियासतदां से उम्मीद करना नादानी होगी कि वो सुर-ताल के साधकों को यथोचित सम्मान देगा नहीं तो शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब के छोटे साहबजादे और तबला वादक नाजिम हुसैनये न कहते- संगीत के लिए सियासत में कोई जगह है क्या? और न ही सितार वादक पंडित देवब्रत मिश्रा कहते- बनारस घराना है कहां? और पंडित छन्नूलाल मिश्र अपनी पत्नी और बेटी के लिए इंसाफ मांगते सियासत के दर से निराश न लौटते।

भाष्कर गुहा नियोगी
वाराणसी

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास तक खबर सूचनाएं जानकारियां मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group_one

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement