(पिछले दिनों भड़ास द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में वक्तव्य देते पंकज सिंह जी…. अब सिर्फ यादें शेष है.)
जनवादी लेखक संघ हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता पंकज सिंह के आकस्मिक निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करता है. दिल्ली के अपने आवास में 26-12-2015 को दिल के दौरे से उनका निधन हो गया. अभी, अपनी 68 साल की उम्र में, वे पूरी तरह सक्रिय और सृजनशील थे. गुज़रे महीनों में बढ़ती हिंसक असहिष्णुता के ख़िलाफ़ लेखकों के प्रतिरोध-आन्दोलन में उनकी लगातार भागीदारी रही. 30 से अधिक संगठनों के आह्वान पर प्रो. कलबुर्गी को याद करते हुए 5 सितम्बर 2015 को जंतर-मंतर पर जो बड़ा जमावड़ा और सांस्कृतिक प्रतिरोध-कार्यक्रम हुआ, उसके अध्यक्ष-मंडल में वे शामिल थे.
20 अक्टूबर को प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में हुई प्रतिरोध-सभा और 23 अक्टूबर को साहित्य अकादमी तक अपना ज्ञापन लेकर जाने वाले मौन जुलूस में भी उनकी सक्रिय भागीदारी थी. दोनों मौकों पर उन्होंने इकट्ठा हुए लेखकों-कलाकारों को संबोधित भी किया था. फ़ासीवादी हिंदुत्व के उभार का मुकाबला करने में वे जीवन के अंतिम क्षण तक सन्नद्ध रहे. पंकज सिंह की कविताएं हिन्दी में अपनी पहचान रखती हैं. ‘आहटें आसपास’, ‘जैसे पवन पानी’ और ‘नहीं’—उनके तीन कविता-संग्रह हैं. कविताओं के लिए वे शमशेर सम्मान से सम्मानित हुए थे. एक समय लन्दन में बीबीसी की हिन्दी सेवा में काम कर चुके पंकज सिंह का पत्रकारिता का भी लंबा तजुर्बा रहा. उनके मित्र उन्हें विभिन्न कलाओं के एक संवेदनशील पारखी के रूप में भी जानते रहे हैं. पंकज सिंह का आकस्मिक निधन हिन्दी समाज की एक बड़ी क्षति है. हम उन्हें भरे हृदय से श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं.
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह
महासचिव
संजीव कुमार
उप-महासचिव
जनवादी लेखक संघ
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